Ajit Pawar claims that Raksha Bandhan is 'Motha Bhau' in Mahavikas Aghadi

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महाराष्ट्र की राजनीति में राकां ने सचमुच अपने प्रभुत्व के कारण बड़े भाई का दर्जा बनाए रखा है. 10 जून 1998 को जब शरद पवार ने पार्टी तोड़ी तभी से राकां राज्य में ‘मोठा भाऊ’ की भूमिका में आ गई. 1999 के विधानसभा चुनाव में राकां को 72 और कांग्रेस को 71 सीटें मिली. राकां ने बड़े भाई के समान बड़ा दिल करके कांग्रेस को मुख्यमंत्री पद दिया. शरद पवार के इस फैसले को उनके भतीजे अजीत पवार ने भारी मन से स्वीकार कर लिया. कांग्रेस को सीएम पद देकर राकां ने मंत्रिमंडल में मलाईदार पद ले लिए. इस तरह बड़े भाई ने इसकी कीमत वसूल की. इसके बाद से ही बड़ा भाई राजनीतिक सक्रियता बरकरार रखते हुए बड़ा होने के प्रयासों में लगा रहा और विभिन्न अवसरों पर अपना दबदबा कायम रखते हुए कांग्रेस को नीचा दिखाता रहा. 2004 से 2009 तक कांग्रेस की अहमियत बनी रही लेकिन टक्कर में राकां भी मजबूती दिखाती रही. 2012 ऐसा वर्ष रहा जब कांग्रेस देश-प्रदेश में कमजोर होती चली गई. तब आघाड़ी की सरकार में पृथ्वीराज चव्हाण सीएम और अजीत पवार डीसीएम थे. आपसी सिर फुटव्वल में यह हाल हुआ कि महाराष्ट्र में सरकार विदा हो गई. इसके बाद कांग्रेस लगातार कमजोर होती देखी गई लेकिन अजीत पवार राकां को मजबूती देते चले गए. 2019 के चुनाव के बाद महाविकास आघाड़ी बनी. तब 2 सीटें ज्यादा होने के कारण राज्य में नया समीकरण बना. शिवसेना, राकां व कांग्रेस की महाविकास आघाड़ी में बड़े भाई की भूमिका निभाने को आतुर अजीत पवार को फिर से त्याग करना पड़ा और 56 सीट जीतनेवाली उद्धव ठाकरे की शिवसेना को सीएम पद देना पड़ा. यह बात अलग थी कि प्रशासकीय अनुभवहीनता के चलते सरकारी फैसलों में उद्धव ठाकरे की अनुभवी अजीत पवार पर निर्भरता बढ़ गई. अजीत फिर एक बार दूसरे नंबर पर रहते हुए भी ‘मोठा भाऊ’ की भूमिका में आ गए. 24 साल से उनके मन में जो बात थी वह जुबान पर आ गई. अब उन्होंने खुलकर बोल दिया कि आघाड़ी में राकां की भूमिका बड़े भाई की है. अब महाराष्ट्र की जनता यह देखने का इंतजार कर रही है कि बड़ा भाई आघाड़ी को संभालकर रखता है और एकजुटता से बीजेपी का मुकाबला करता है या बड़े भाई होने का उसका दावा आघाड़ी में नई कलह पैदा करता है.