सुरंग में फंसे मजदूरों का बचाव, धैर्य से जीती जा रही जिंदगी की जंग

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जिंदगी की जंग हमेशा धैर्य, मनोबल व सूझबूझ से जीती जाती है. उत्तराखंड की सिलक्यारा टनल में 11 दिनों से फंसे 41 मजदूर यदि सही सलामत हैं तो इसी वजह से कि उन्होंने अपना हौसला कायम रखा और उम्मीद का दामन थामे रहे. इस क्षेत्र में होनेवाले विकास कार्य अत्यंत उपयोगी होने के बावजूद बेहद चुनौतीपूर्ण हैं. वहां खतरे से खेलने की तैयारी रखनी पड़ती है. पहाड़ों से भूस्खलन होना सामान्य सी बात है क्योंकि चट्टानें भुरभुरी हैं. यह इंजीनियरिंग का कमाल ही है कि वहां सुरंगें बनाई जा रही हैं. यह बहुत बड़ी बात है कि मजदूरों ने हिम्मत कायम रखी वरना अंधेरा, भूख-प्यास और सुरंग की कैद उनके धीरज का लगातार इम्तेहान ले रहे थे.

इन्हें बचाने और सकुशल बाहर निकालने के प्रयत्नों में कोई कसर बाकी नहीं रखी गई. एक लंबा और मैराथान अभियान चलता रहा. सबसे अच्छा कदम यह रहा कि पाइप के जरिए मजदूरों तक ऑक्सीजन और खाने-पानी के पैकेट भेजे गए. 6 इंच की पाइप लाइन के माध्यम से चावल-दाल और सब्जी पहुंचाई गई. वीडियो के जरिए देखा गया कि सभी ने खाना खाया. मजदूरों ने वीडियो कैमरे के सामने एक के बाद आकर अपने परिजनों को आश्वस्त किया कि हम सकुशल हैं और जल्द ही बाहर आएंगे. इसमें कोई शक नहीं कि बचाव अभियान के सामने चुनौतियां आती रहीं.

एक वैकल्पिक सुरंग खोदी गई जिससे मजदूरों को बाहर लाया जा सके. पाइप की वेल्डिंग कर इसे बनाया जा रहा है. जब ऑगर मशीन अपना काम कर रही थी तब रास्ते में लोहे की छड़ों (आयरन राड्स) से दिक्कत होने लगी. मशीन का रास्ता इन रॉड्स ने रोक दिया. इन छड़ों को काटने के लिए डायमंड ब्लेड का इस्तेमाल किया जा सकता था लेकिन उससे काफी कंपन होता. इस वजह से गैस कटर की मदद से मैनुअली काटने का निर्णय लिया गया.

बचाव दल के सदस्य पीठ पर ऑक्सीजन सिलेंडर बांधकर राड्स तक पहुंचे. सुरंग के लिए लगाए गए पाइप्स मजदूरों के काफी निकट पहुंच गए. कुछ पाइप और जोड़ने की प्रक्रिया के बाद मजदूरों को सुरंग से एक-एक कर निकाला जाना सुनिश्चित हो जाएगा. प्रयत्नों की पराकाष्ठा की जा रही है जो दिखाती है कि इंसान अपने अस्तित्व के लिए विपरीत हालातों से भी टक्कर लेता है और हार नहीं मानता.