कश्मीर जमीन घोटाला 370 हटने के बाद सामने आ रही गड़बड़ियां

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जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) से अनुच्छेद 370 (Article 370) हटाए जाने के पहले वहां भ्रष्टाचार चरम पर था. विशेष राज्य का दर्जा समाप्त किए जाने के बाद वहां की गड़बड़ी खुलकर सामने आ रही है. जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के निर्देश के बाद सीबीआई जांच में जम्मू-कश्मीर के रोशनी जमीन घोटाले (Roshni land scam) का पर्दाफाश हुआ है. सीबीआई ने सरकारी जमीन के बड़े हिस्से को हड़पने वाले नेताओं, लोकसेवकों व अफसरों का भी भूमिका को उजागर किया. 25,000 करोड़ रुपए के इस घोटाले में अब तक 3 अलग-अलग मामले दर्ज किए गए हैं. घोटाले में लिप्त जिन नेताओं के नाम सामने आए हैं उनमें जम्मू-कश्मीर के वित्त मंत्री रह चुके पीडीपी के बड़े नेता हसीब दराबू, कांग्रेस के बड़े नेता के के अमला (K.K Amla) के अलावा मुख्य सचिव रैंक में अधिकारी रह चुके मोहम्मद श्फी पंडित का समावेश है. हसीब दराबू जम्मू-कश्मीर बैंक के चेयरमैन भी रह चुके हैं. इन लोगों ने अपने और अपने परिवार के सदस्यों के नाम काफी सरकारी जमीन आवंटित करवाई थी. इस माह की शुरुआत में जम्मू-कश्मीर राज्य भूमि अधिनियम जिसे रोशनी एक्ट भी कहा जाता है, निरस्त घोषित कर दिया गया था क्योंकि आदलत ने इसे असंवैधानिक करार दिया था.

400 लोगों ने अवैध लाभ उठाया

पूर्व पीडीपी नेता हसीब दराबू, उनके 3 रिश्तेदारों, कांग्रेस नेता के अमला और उनके परिवार के 3 सदस्यों, नेशनल कांफ्रेंस के 4 नेताओं जिनमें सज्जाद किचलू व हारून चौधरी सहित 400 लोगों पर सरकारी जमीन हड़पने का आरोप है. इस कानून (रोशनी एक्ट) में जमीन के उपयोग में बदलाव का नियमितीकरण करने के लिए निर्धारित दरों में अनावश्यक रियायतें दी गईं. यह दरें बेहद कम थीं. साथ ही कट-आफ वर्ष भी बार-बार बदला जाता रहा. जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के निर्देश पर तैयार की गई घोटालेबाजों की सूची में पूर्व कांग्रेस मंत्री तथा डोडा के पूर्व विधायक अब्दुल मजीद वानी तथा जे एंड के बैंक के पूर्व चेयरमैन एमवाय खान के नाम भी शामिल हैं. अदालत ने निर्देश दिया कि घोटालेबाजों के नाम सार्वजनिक से वेबसाइड पर जारी किए जाएं. कुछ और नाम सामने आने की संभावना है.

सैकड़ों एकड़ जंगल व सरकारी जमीन हड़पी गई

जम्मू-कश्मीर में सैकड़ों एकड़ जंगल व सरकारी जमीन प्रभावशाली राजनेताओं, व्यावसायियों, नौकरशाहों तथा न्यायिक अधिकारियों को हस्तांतरित की गई. इस सूची में होटल व्यवसायी मुश्ताक अहमद छाया, चीफ सेक्रेटरी रैंक के आईएएस अधिकारी मो. शफी पंडित, उनकी पत्नी निगहत, नेशनल कांफ्रेंस के नेता व एडवोकेट जनरल असलम गोनी, कई सरकारी अधिकारियो व पूर्व विधायकों का समावेश है. पूर्व पीडीपी नेता हसीब साबू ने दलील दी कि 1956 में उनके दादा ने 4 कनाल (आधा एकड़) जमीन एक हाईकोर्ट जज से खरीदी थी और उसकी स्टैम्प डयूटी तथा अन्य फीस सरकार के पास जमा काई थी. यह जमीन उत्तराधिकार में मुझे मिली. इसके कोई घोटाला नहीं है.

रोशनी एक्ट का क्या उद्देश्य था

रोशनी एक्ट का उद्देश्य जल विद्युत परियोजना के लिए संसाधन जुटाना था. इसमें सरकार को जमीन नियमितीकरण से 25,000 करोड़ रुपए शुल्क मिलने की उम्मीद थी. 2014 की कैग रिपोर्ट ने कहा कि अतिक्रमण की गई भूमि के हस्तांतरण से केवल 76 करोड़ रुपए ही मिल पाए. इस कानून में कहा गया था कि 1990 के कट आफ वर्ष के पहले तक जिन लोगों के पस अवैध रूप से सरकारी जमीन थी उन्हें बाजार मूल्य के बराबर रकम लेकर उसके स्वामित्व का अधिकार दे दिया जाए. मुफ्ती मोहम्मद साईद की सरकार ने यह कट आफ वर्ष बढ़ाकर 2004 कर दिया. जब गुलाम नवी आजाद के नेतृत्व वाली कांग्रेस पीडीपी की संयुक्त सरकार सत्ता में आई तो कट आफ ईयर 2007 कर दिया गया.

क्या-क्या धांधली होती रही

जांच में यह बात सामने आई कि जमीन का कम मूल्य तय किया गया. बिना किसी रकम का भुगतान किए जमीन का मालिकाना हक दिया गया. जंगल की जमीन पर अवैध कब्जे को नियमित कर दिया गया. 2007 में कृषि की भूमि कुछ लोगों को मुफ्त दे दी गई. शहरी जमीन को भी भारी रियायती मूल्य पर दिया गया. कानून में बदलाव कर कृषि भूमि और वन भूमि को व्यावसायिक भूमि के रूप में बदल दिया गया. कैग द्वरा भंडाफोड़ किए जाने पर 2011 में एक रिटायर्ड प्रोफेसर एस के भल्ला ने इस मामले में जनहित याचिका दायर कर जांच की मांग की. 28 नवंबर 2018 को तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक के अधीन राज्य प्रशासनीय कौंसिल ने रोशनी कानून को रद्द किया तथा एंटीकरप्शन ब्यूरो ने 17 एफआईआर दर्ज कीं. इस वर्ष 9 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने भी भल्ला की पीआईएल पर फैसला देतेहुए रोशनी एक्ट को शुरुआत से ही अवैध घोषित करते हुए रद्द कर दिया तथा इसके जरिए दी गई सारी जमीनें वापस लेने का आदेश् दिया.