ममता की जीत, BJP की किरकिरी

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    यह बात सूर्य की रोशनी की तरह साफ थी कि भवानीपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में बीजेपी प्रत्याशी प्रियंका टीबरेवाल बंगाल की मुख्यमंत्री व टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी के लिए दूर-दूर तक कोई चुनौती नहीं थीं. आखिर बंगाल की शेरनी कहलाने वाली ममता ने प्रियंका को 58,832 वोटों से हरा दिया. इस पराजय के बावजूद प्रियंका टीबरेवाल ने मुंहजोरी करते हुए कहा कि इस गेम की मैन ऑफ द मैच मैं हूं. यह मैंने साबित किया. उस गढ़ में जाकर इलेक्शन लड़ा और 25,000 वोट मुझे मिले.

    प्रियंका भूल रही हैं कि प्रतिपक्षी से 1 वोट भी कम मिले तो उसे हार कहा जाता है. बंगाल में ममता की लोकप्रियता का कोई जवाब बीजेपी के पास नहीं है. बीजेपी की सबसे बड़ी किरकिरी तो उसी समय हो गई थी जब बंगाल में 8 चरणों के चुनाव में बीजेपी ने धुआंधार प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी तथा प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा की तमाम रैलियों के बावजूद टीएमसी भारी बहुमत से जीती थी. देश के 28 राज्यों में से एक राज्य की मुख्यमंत्री के खिलाफ प्रधानमंत्री ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था. अपनी सभाओं में बार-बार ‘दीदी ओ दीदी’ कहकर ललकारा लेकिन फिर भी टीएमसी से सत्ता छीन नहीं पाए. बाद में बीजेपी के कितने ही नेता, जिनमें केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो भी शामिल थे, टीएमसी में लौट गए.

    चुनाव आयोग की मेहरबानी

    विधानसभा चुनाव में टीएमसी तो जीत गई थी लेकिन अपने दुस्साहस की वजह से ममता नंदीग्राम में शुभेंदु अधिकारी से 1736 वोटों से चुनाव हार गई थीं. इसके बाद वे अपनी पार्टी की मेजारिटी की वजह से सीएम तो बन गईं लेकिन 6 माह के भीतर उन्हें विधानसभा के लिए निर्वाचित होना संवैधानिक बाध्यता थी. कोरोना संकट के चलते उपचुनाव की अनुमति दी जाएगी या नहीं, इसे लेकर संदेह व्याप्त था. बंगाल में विधान परिषद नहीं है, इसलिए ममता के लिए ऐसी भी कोई गुंजाइश नहीं थी कि एमएलसी बन जाएं. आखिर चुनाव आयोग ने भवानीपुर की सीट पर उपचुनाव का ऐलान किया और वहां से ममता की नैया पार लग गई. यह सीट टीएमसी विधायक शोभनदेव चट्टोपाध्याय ने ममता के लिए खाली की थी. यदि चुनाव आयोग महामारी को देखते हुए उपचुनाव लटका देता तो ममता को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ता और उस हालत में वे पार्टी के किसी अन्य नेता को अपनी जगह मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपने को विवश हो जातीं. ऐसा कुछ नहीं हुआ. इसीलिए ममता ने जनता के साथ-साथ चुनाव आयोग के प्रति कृतज्ञता जताई है.

    मोदी को चुनौती देनेवाले नेताओं में अग्रणी

    2024 के आम चुनाव में बीजेपी को कांग्रेस से नहीं, बल्कि क्षेत्रीय पार्टियों से चुनौती है. क्षेत्रीय दल जैसे कि टीएमसी, सपा, बसपा, एनसीपी, शिवसेना, बीजद, टीआरएस, टीडीपी, डीएमके, जदसे, नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी आदि यदि एकजुट गठबंधन बना लेते हैं और कांग्रेस उन्हें समर्थन देती है तो बीजेपी के लिए खतरा पैदा हो जाएगा. ममता बनर्जी ने बंगाल के चुनाव में बीजेपी के शीर्ष नेताओं को कड़ी चुनौती दी थी, इसलिए माना जा रहा है कि क्षेत्रीय दलों का गठबंधन उन्हें आगे करेगा. वैसे यह तथ्य भी अपनी जगह है कि फिलहाल ममता का बंगाल के बाहर प्रभाव नहीं है लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले मोदी भी तो गुजरात तक सीमित थे, इसके बाद वे राष्ट्रीय नेता बने. ममता की हिंदी अच्छी नहीं है तो प्रधानमंत्री बने देवगौड़ा को तो जरा-सी भी हिंदी नहीं आती थी. ममता को केंद्रीय मंत्रिमंडल में रहने का अनुभव है. वे अटल और मनमोहन सिंह, दोनों की सरकारों में रहीं. यह ममता बनर्जी ही थीं जिन्होंने बंगाल में 3 दशक से शासन कर रहे लेफ्ट को उखाड़ फेंका था. ऐसी जुझारू नेता पर विपक्ष भरोसा कर सकता है.