जनकल्याण की दुहाई, मलाईदार विभाग के लिए मंत्रियों की लड़ाई

    Loading

    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, मंत्री मलाईदार विभाग पाने के लिए क्यों लालायित रहते हैं? साथ ही वे यह भी चाहते हैं कि मलाई मोटी होनी चाहिए. इस लालसा की क्या वजह है?’’ 

    हमने कहा, ‘‘बड़े भाग्य से मानव का तन मिलता है जिसे धन की आवश्यकता होती है. कुंडली में राजयोग होने से मंत्री पद मिलता है और राजयोग में सत्ता के साथ अपार संपदा योग भी जुड़ा होता है. इसलिए मंत्री चाहता है कि उसकी पांचों उंगलियां घी में और सिर कड़ाही में रहे. इसीलिए मलाईदार पद के लिए उसकी लार टपकती रहती है. वह निस्वार्थ सेवा के नाम पर मलाई चाटता चला जाता है.’’ 

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, यह तो हम भी समझते हैं कि सत्ता का दूध उबलने पर उसमें मलाई की मोटी परत जम जाती है. उस दूध से दही, मक्खन, घी, पनीर, छेना, चीज बहुत कुछ बनाया जा सकता है फिर मंत्री मलाई पर ही क्यों अटक कर रह जाते हैं?’’ 

    हमने कहा, ‘‘जनता की भलाई के लिए मंत्री को मलाई चाहिए तभी तो वह पुष्ट होगा और ऊर्जा के साथ काम कर सकेगा. भगवान कृष्ण माखनचोर थे तो आज के मंत्री मलाईचोर कहे जा सकते हैं. बालकृष्ण कहते थे- मैया मोरी कसम तोरी मैं नहीं माखन खायो, ग्वाल-बाल सब बैर पड़े हैं, बरबस मुख लिपटायो! अब मंत्री मलाई खाकर नेपकिन से मुंह पोछ लेते हैं जिससे मलाई खाने का कोई सबूत नहीं मिल पाता.’’ 

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, अब हम समझे कि गृह, वित्त, राजस्व, पीडब्ल्यूडी और स्कूली शिक्षा जैसे विभागों पर मंत्रियों की नजर क्यों रहती है. मलाईदार विभाग का दावा ठोकनेवाले मंत्री यह क्यों नहीं समझते कि ज्यादा मलाई खाने से धमनियों में कोलस्ट्रोल जमा हो जाता है और हार्ट की बीमारी होने का खतरा बढ़ता है.’’ हमने कहा, ‘‘मंत्री दिमाग से काम लेता है, दिल से नहीं. हृदयहीन मंत्री को हार्ट की बीमारी हो ही नहीं सकती!’’