‘गोदी मीडिया’ शब्द पर सवाल, व्यापक हो चला इसका जाल

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पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, झारखंड की कोल्हान यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र की परीक्षा में छात्रों से सवाल पूछा गया कि ‘गोदी मीडिया’ (Godi Media) क्या है और वे इसके बारे में क्या समझते हैं? कुछ विद्यार्थियों ने यह प्रश्न छोड़ दिया। उन्हें समझ में नहीं आया कि इसका क्या जवाब लिखें लेकिन एक छात्र ने स्पष्ट रूप से लिखा कि गोदी मीडिया वह है जो केंद्र या राज्य सरकार की गोद में बैठा हो। जो सरकारों के पक्ष में रिपोर्ट पेश करता है वह गोदी मीडिया है। एक छात्रा ने लिखा कि जो मीडिया सरकार के नियंत्रण में है और केवल सरकार की उपलब्धियों के बारे में लिखता है और गलतियों को छुपाता है वह गोदी मीडिया है। इस बारे में आपकी राय क्या है?’’ 

हमने कहा, ‘‘अपने यहां गोद लेने या एडॉप्शन का पुराना रिवाज है। अगर किसी निस्संतान नेता ने स्वार्थवश मीडिया को गोद ले लिया तो क्या बुरा किया? ऐसा मीडिया जिसका खाता है, उसी का राग दरबारी गाता है। मीडिया को अपनी मुट्ठी में रखना दूरदर्शिता है। ऐसा गोदी मीडिया अपने आका की ‘तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता’ वाली आरती उतारता रहता है और उसकी शान में कसीदे काढ़ता है। ऐसे मीडिया में रीढ़विहीन केंचुओं या चमचों की बहुतायत रहती है। ’’ 

पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, इमरजेंसी के समय भी इने-गिने अखबारों को छोड़कर बाकी मीडिया की बोलती बंद हो गई थी। बाद में लालकृष्ण आडवाणी ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि मीडिया को झुकने को कहा गया था लेकिन वह तो रेंगने लगा था। ’’ 

हमने कहा, ‘‘मीडिया को निष्पक्ष रहकर गलत को गलत कहने का साहस रखना चाहिए। उसे लोकमान्य तिलक, बालशास्त्री जांभेकर, गणेश शंकर विद्यार्थी, पं। माधवराव सप्रे, बाबूराव विष्णु पराडकर जैसे निर्भीक व मूर्धन्य पत्रकारों की विरासत का ध्यान रखना चाहिए। जेम्स लॉवेल ने कहा था कि वे लोग गुलाम हैं जो सत्य की राह पर चलनेवाले 2 या 3 लोगों का साथ देने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। सत्य कितना भी कड़वा हो उसे सामने लाने में हिचकना नहीं चाहिए। जो पत्रकारिता के आदर्शों को मतलब परस्ती या चापलूसी के लिए बेच दे वही गोदी मीडिया कहलाता है। निर्भीक पत्रकारों के बारे में कहा गया है- जो कलम सरीखे टूट गए पर झुके नहीं, उनके आगे ये दुनिया शीश नवाती है, जो कलम किसी कीमत पर बेची नहीं गई, वो तो मशाल की तरह उठाई जाती है!’’