भक्त पर हुए निहाल रोज स्कूल जाते हैं लड्डू गोपाल

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, कैसी अचंभे की बात है कि मथुरा में बाल स्वरूप भगवान लड्डू गोपाल 4 वर्षों से लगातार स्कूल जा रहे हैं. वृंदावन के एक आश्रम में रहने वाले रामगोपाल तिवारी नामक भक्त की दिनचर्या अपने लाडले लड्डू गोपाल की सेवा से शुरू होती है और रात्रि में शयन आरती के बाद वहीं पूरी हो जाती है. 4 वर्ष पहले इस भक्त के ध्यान में आया कि जब सारे बच्चे स्कूल पढ़ने जाते हैं तो उनके लड्डू गोपाल क्यों नहीं पढ़ सकते? इस दलील के साथ वे वृंदावन स्थित संदीपनी मुनि स्कूल में अपने लड्डू गोपाल का दाखिला कराने पहुंचे.

    वहां की प्रधान शिक्षिका उनकी बात सुनकर हैरान हुईं. पहले तो वह सहमत नहीं हुईं लेकिन तिवारी जिद पर अड़ गए. आखिर थक-हार कर स्कूल प्रबंधन ने लड्डू गोपाल को स्कूल आने की अनुमति दे दी. इसके बाद से वे रोज लड्डू गोपाल को लेकर स्कूल आते हैं और छुट्टी होने पर वापस घर ले जाते हैं. स्कूल में उनका नाम ‘मच्चू गोपाल’ रखा गया है. वे हर साल स्कूली नतीजे में अच्छे नंबर से पास हो जाते हैं लेकिन बैठते नर्सरी में ही हैं.’’

    हमने कहा, ‘‘जगत के पालनहार, गीता का ज्ञान देने वाले भगवान को स्कूल जाने की क्या जरूरत?’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, भगवान राम भी वशिष्ठ मुनि के यहां पढ़ने गए थे और फिर विश्वामित्र ने भी उन्हें शिक्षा दी थी. आपने चौपाई पढ़ी होगी- गुरु गृह पढ़न गए रघुराई, अल्पकाल विद्या सब आई. कृष्ण-बलराम भी उज्जैन में संदीपनी मुनि के आश्रम में पढ़ने गए थे. भक्त के मन में प्रभु ने ही संकेत दिया होगा कि दिन भर पूजा घर में बैठकर क्या करूंगा, मुझे स्कूल ले जाया कर!’’

    हमने कहा, ‘‘वैष्णव भक्त तो यह भी मानते हैं कि विट्ठलनाथ गोसाई के साथ बाल रूप में आकर कृष्ण भगवान खेला करते थे. वात्सल्य भक्ति में वे कृष्ण को ‘लाला’ कहते थे और कृष्ण उन्हें ‘जय-जय’ के नाम से संबोधित करते थे. बंगाल में ऐसा रिवाज है कि शादी के बाद पुत्र जन्म की कामना के लिए महिलाएं हमेशा बालकृष्ण की मूर्ति साथ रखती हैं ताकि उनकी गोद में भी लाला जल्दी से आ जाएं. यह भी भक्ति का एक अनोखा रूप है. भगवान भी अपने भक्तों के वश में हैं.