पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, क्रिकेट के ‘किंग’ कोहली 3 वर्ष बाद पुराने फॉर्म में लौट आए हैं. उनका बल्ला फिर बोलने लगा है. वे गेंदों पर प्रहार कर रनों की बौछार करने लगे हैं. उनके चहेते या प्रशंसक उनसे बहुत खुश हैं. जब कोई खिलाड़ी फॉर्म में आ जाए तो उसके मुरीद कहने लगते हैं- हो गई है बल्ले-बल्ले हो जाएगी बल्ले-बल्ले!’’
हमने कहा, ‘‘खिलाड़ियों का सारा चार्म उनके फॉर्म पर निर्भर करता है. जब वे तूफान की गति से रन बनाते हैं, हाफ सेंचुरी और सेंचुरी बनाते हैं, तभी तक उनकी पूछ रहती है. जब किस्मत साथ नहीं देती और बार-बार सस्ते में विकेट गंवा देते हैं तो उन्हें चाहनेवाले मुंह मोड़ लेते हैं. उनकी फैन फालोइंग एकदम से घट जाती है.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, क्रिकेट को गेम आफ चान्स कहा जाता है. जब किस्मत बुलंद रहती है तब तक गेंदबाज ढेर सारे विकेट लेता है और बल्लेबाज रनों का पहाड़ लगा देता है. जब उसके भाग्य का खराब दौर आता है तो वह सस्ते में आउट हो जाता है.’’
हमने कहा, ‘‘नेताओं और पार्टियों के साथ भी ऐसा ही होता है. प्रधानमंत्री मोदी जिस तरह 8 वर्षों से फुल फॉर्म में चल रहे हैं, उससे विपक्ष हतप्रभ और दिशाहीन हो गया है. पदयात्रा निकालकर विपक्ष सचमुच रास्ते पर आ गया है.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, विराट कोहली ने जब क्रिकेट से एक-डेढ़ माह अवकाश लिया और पूरा समय अपने परिवार को दिया तो उसके बाद उनका फॉर्म लौट आया. इस तरह का इंटरवल लेने से फायदा होता है. उसकी दिलचस्पी और एकाग्रता लौट आती है. वह फिर से अच्छा फरफार्मेंस देने लग जाता है.’’
हमने कहा, ‘‘जब लेखक अच्छा लिख नहीं पाते और नामी हीरो की फिल्में लगातार बॉक्स आफिस पर पिटने लगती हैं तो समझ लेना चाहिए कि इनका फॉर्म चला गया है. ऐसा ही वीर अर्जुन के साथ हुआ था. जब वे द्वारिका से गोपियों को लेकर हस्तिनापुर आ रहे थे तो लुटेरों के सामने उनकी एक नहीं चल पाई. इसीलिए कहा गया- भिल्लन लूटी गोपिका, वही अर्जुन वही बाण!’’