पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, माफी मांग लेना विनम्रता का लक्षण है। माफी बिनाशर्त मांगने से कोई छोटा नहीं हो जाता। पतंजलि के एमडी आचार्य बालकृष्ण ने गुमराह करनेवाले विज्ञापनों के मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट से बिनाशर्त माफी मांग ली और आश्वासन दिया कि ऐसी गलती भविष्य में नहीं होगी। ’’
हमने कहा, ‘‘पतंजलि ने ठीक किया। फंदे में फंसी गर्दन को बचा लेने में ही समझदारी है। अदालत की अवमानना के मामले से बचने के लिए क्षमा याचना कर ली गई। असल में पतंजलि ने एलोपैथी को निशाना बनाया था और अपनी आयुर्वेदिक दवाओं को मधुमेह, ब्लडप्रेशर, थाइराइड के इलाज में कारगर बताया था। अपनी दवा का प्रचार करने में दिक्कत नहीं है लेकिन एलोपैथी की आलोचना करना महंगा पड़ गया। आपको याद होगा कि कोरोना के इलाज के लिए पतंजलि ने ‘दिव्य कोरोनिल’ नामक दवा लान्च की थी। तब बाबा रामदेव का दावा था कि 3 दिन के भीतर 69 प्रतिसत और 7 दिन के भीतर सभी 100 प्रतिशत मरीज इस दवा से ठीक हो गए। ’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, कितने ही पेशेंट ऐसे होते हैं जो किसी चिकित्सक या उसकी दवा पर विश्वास रखकर ठीक हो जाते हैं। आपने लोगों को कहते सुना होगा कि वह डाक्टर अच्छा है। उसकी दवा असर करती है। इसमें कोई शक नहीं कि पतंजलि ने आयुर्वेद के प्रति देश में लोगों का भरोसा बढ़ाया है। योग से शुरू कर स्वदेशी की बात करते हुए दवा का व्यापार करनेवाले बाबा का बड़ा कारोबार है। यदि कोई वैक्सीन न लगाकर सिर्फ कोरोनिल खाकर मर गया तो यह उसकी जिम्मेदारी। अपना माल तो कोई भी व्यापारी अच्छा ही बताएगा। ’’
हमने कहा, ‘‘उस समय आयुष मंत्रालय ने पतंजलि को सैंपल, साइज, स्टडी डेटा जैसी सूचना देने को कहा था। यह भी कहा गया था कि दवा बनाने से पहले पतंजलि को औषधि अनुसंधान की अनुमति देनेवाली संस्था आईसीएमआर यानी इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च से विधिवत परमिशन लेनी थी। दूसरी इलाज पद्धति की आलोचना करते हुए अपनी दवाओं को शतप्रतिशत सही व प्रभावी बताना 1954 के विज्ञापन कानून का उल्लंघन है। ’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज कानून अपनी जगह है और विश्वास अपनी जगह। आपको याद होगा कि उस समय तत्कालीन केंद्रीय आयुष मंत्री श्रीपाद नाईक ने कहा था कि बंगलुरु के एक आयुर्वेद चिकित्सक के फार्मूले से ब्रिटेन के प्रिंस चार्ल्स वायरस के संक्रमण से मुक्त हो गए थे। भरोसा हो तो कुछ लोग बाबा की भभूति खाकर भी ठीक हो जाते हैं। यदि विश्वास न हो तो अच्छी से अच्छी दवा भी काम नहीं करती!’’