राष्ट्रभक्ति में असीम शक्ति, फिर भी चुनाव में चाहिए युक्ति

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पड़ोसी ने हमसे कहा, “निशानेबाज, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मुंबई की रैली में शक्ति से लड़ने की बात कही।  इसे लेकर बीजेपी ने चुनाव आयोग से मांग की है कि वह राहुल के खिलाफ एक्शन ले और उन्हें बिनाशर्त माफी मांगने को बाध्य करे।  राहुल को समझना चाहिए कि उनका मुकाबला मोदी से है जो उनके शब्दों को पकड़कर बाजी उलट देते हैं।  प्रधानमंत्री ने कहा कि यह लड़ाई शक्ति के विनाशकों और शक्ति के उपासकों के बीच है।  4 जून को स्पष्ट हो जाएगा कि किसे शक्ति का आशीर्वाद प्राप्त है।  ये लोग शक्ति के विनाश का बिगुल फूंक रहे हैं।  माताएं-बहनें शक्तिस्वरूपा हैं।  क्या आप ऐसे लोगों को शक्ति का विनाश करने का मौका देंगे? इसके बाद राहुल ने कहा कि मेरी बातों का अर्थ बदल दिया गया।  मैं उस शक्ति से लड़ने की बात कर रहा था जिसने सभी संस्थाओं और संवैधानिक ढांचे को अपने चंगुल में दबोच रखा है और उसका मुखौटा प्रधानमंत्री खुद हैं। ” 

हमने कहा, “राहुल गांधी शक्ति की बजाय ‘ताकत’ शब्द का इस्तेमाल करते तो मोदी को मुद्दा नहीं मिलता।  चुनाव में ताकत की आजमाइश होती है।  लोग ताकत बढ़ाने के लिए टॉनिक पीते हैं। ” पड़ोसी ने कहा, “निशानेबाज, शक्ति, भक्ति और युक्ति शुद्ध हिंदी के शब्द हैं।  चुनाव में सभी शक्ति नेता प्रार्थना करेंगे- इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो ना! एक फिल्म अभिनेता का नामभी शक्ति कपूर है, ताकत कपूर नहीं! पुराण में भी शक्ति शब्द का उल्लेख मिलेगा।  महर्षि वशिष्ठ के पुत्र का नाम शक्ति था जिसे विश्वामित्र ने मार डाला था।  शक्ति के बेटे पाराशर ऋषि थे और पाराशर के पुत्र वेदव्यास थे।  उपनिषद में संदेश है कि अपनी आत्मशक्ति जागृत करो! आप तो जानते हैं कि विलपॉवर के भरोसे हर क्षेत्र में तरक्की की जा सकती है। ” 

हमने कहा, “पुराने राजा-महाराजा अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए राजसूय और अश्वमेध यज्ञ करते थे तथा पड़ोसी राजाओं को पराजित करते थे।  आज के जमाने में चुनाव यज्ञ में वोटों की आहुति डालकर प्रतिपक्षी को परास्त किया जाता है।  रावण इतना शक्तिशाली था कि उसने नवग्रहों को कैद कर रखा था।  देवता भी उससे डरते थे।  वह इसलिए पराजित हुआ क्योंकि उसमें राम के समान चरित्रबल नहीं था। ” 

पड़ोसी ने कहा, “निशानेबाज, जब कांग्रेस अत्यंत शक्तिशाली थी तो 1984 के चुनाव में बीजेपी को जैसे- तैसे लोकसभा की सिर्फ 2 सीटें मिली थीं।  एक सीट गुजरात से और एक अविभाजित आंध्रप्रदेश से मिल पाई थी।  हमें वह वक्त भी याद है जब बीजेपी के पूर्ववर्ती रूप जनसंघ के ‘दीया’ चुनाव चिन्ह वाले नेता अपनी हार अवश्यंभावी मानते हुए लाउडस्पीकर पर गाना बजाते थे- निर्बल से लड़ाई बलवान की, ये कहानी है दीये की और ED CBT EC महामुकाबला तूफान की !”