हर तरफ फैला समस्याओं का जाल

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पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज हम कहीं भी जाएं, अपने को तरह-तरह के सवालों से घिरा पाते हैं. सवाल हमारा पीछा ही नहीं छोड़ते. ऐसा लगता है सवाल की वजह से ही जैसवाल और ओसवाल जैसे सरनेम बने है. एक ऐसा सवाल सदियों से चला आ रहा है जिसका सही जवाब आजतक किसी ने नहीं दिया. वह सवाल है- पहले अंडा हुआ या मुर्गी?’’

हमने कहा, ‘‘आपको छोटे-मोटे सवालों में उलझने की बजाय यह देखना चाहिए कि जी-20 शिखर सम्मेलन में विश्व के बड़े-बड़े नेता किन ज्वलंत सवालों पर विचार कर रहे हैं. ये सवाल जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण, ग्लोबल इकाई सिस्टम, खाद्य और पोषण समस्या से जुड़े हुए है. ऐसे कितने ही सवालों का जवाब कौन देगी?’’

पड़ोसी ने कहा, ‘‘मेजबान को ही मेहमानों के सवालों का जवाब देना पड़ता है. भारत विश्वगुरु है. हमारी भारत माता मदर ऑफ डेमोक्रेसी है. शिष्यों को गुरु और बच्चों को माता ज्ञान देती है. जब हम जी-20 के प्रेसीडेंट बने है तो जवाब भी हम ही देंगे. वैसे भी प्रधानमंत्री मोदी अपने वाकचातुर्य की वजह से लाजवाब माने जाते हैं.’’

हमने कहा, ‘‘ऐसा है तो जी-20 में आए राष्ट्रनेताओं के नाम के साथ ‘जी’ जरूर लगाना चाहिए. यह भारत की संस्कृति के अनुरूप है. इसलिए संबोधित करते हुए जोसेफजी बाइडन, सुनकजी ऋषि कहना चाहिए. प्रस्ताव पर राय जताते समय यस-नो की बजाय पंजाबियों की तरह हां जी- ना जी कहना चाहिए. जी-सम्मेलन के नेताओं को बताना चाहिए कि यहां रिश्तों को निभाते हुए पिताजी, माताजी, चाचाजी, मामाजी, नानाजी, जीजाजी कहने का रिवाज है. जी शब्द हमारी नस-नस में है. पति के आवाज देने पर किचन से पत्नी कहती है- अभी आई जी!’’

पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज हमारी बात सवालों को लेकर शुरू हुई थी? बताइए गरीबी, बेरोजगारी और महंगाई के सवाल पर सरकार का क्या जवाब है? महाराष्ट्र सरकार भी मराठा आरक्षण के सवाल का जवाब खोज रही है.’’

हमने कहा, ‘‘आमतौर पर सरकार के पास असुविधाजनक सवालों का कोई जवाब नहीं होता. आप भी सवालों के चक्रव्यूह में घिरे हैं तो श्रद्धापूर्वक गाइए- शिरडीवाले साईबाबा, आया है तेरे दर पे सवाली!’’