बेरोजगार को नहीं रही पैसों की कड़की, दूसरों के बदले लगाता गंगा में डुबकी

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    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, कितने ही युवा बेरोजगारी से परेशान हैं लेकिन हरिद्वार में आशुतोष शुक्ला नामक युवक ने बिना किसी लागत के स्वयंरोजगार योजना शुरू की है. इस तीर्थ स्थान पर पहुंचकर भी कड़ाके की ठंड में गंगा में डुबकी लगाने की हिम्मत न जुटा पाने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए आशुतोष का ऑफर रहता है कि सिर्फ 10 रुपया दो मैं तुम्हारे नाम से गंगा में डुबकी लगाता हूं. लोग पैसा देते हैं और वह लगातार दूसरों के ऐवज में डुबकियां लगाते रहता है.’’ 

    हमने कहा, ‘‘यह भी क्या बात हुई. व्यक्ति को सिर्फ अपने कर्मों का फल मिलता है. बदले में कोई दूसरा व्यक्ति डुबकी लगाए तो गंगा स्नान का पुण्य कैसे मिलेगा? क्या पैसा देकर पुण्य भी खरीदा जा सकता है?’’ 

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, यह कोई नई बात नहीं है. एवजी में दूसरों से बहुत से काम करवाए जाते हैं. एक विद्यार्थी के बदले कोई दूसरा होशियार छात्र जाकर परीक्षा देता है एक छात्र के अनुपस्थित रहने पर उसका दोस्त ‘यस सर’ कहकर हाजिरी लगा देता है. सफाई कर्मचारियों में भी एवज में काम करनेवाले दिख जाएंगे. फिल्मों में खतरनाक स्टंट सीन हीरो की बजाय डुप्लीकेट कर लेता है. पैसेवाले लोग अपने हाथ से एक्सीडेंट होने पर खुद की जगह ड्राइवर को जेल भिजवा देते हैं और उसके परिवार को मोटी रकम दे देते हैं.’’ 

    हमने कहा, ‘‘बात सांसारिक प्रपंच की नहीं, बल्कि धर्म की हो रही है. लोग गंगा तट पर पहुंचकर भी डुबकी न लगाएं और दूसरे से ऐसा करवाते हुए पुण्य अर्जित करें, क्या यह सही है?’’ 

    हमने कहा, ‘‘ऐसा क्यों नहीं हो सकता. कितने ही सेठ लोग अपने बदले राम नाम जपने के लिए भजन मंडली को बैठा देते हैं और खुद व्यापार में लगे रहते हैं. लोग धन खर्च कर यज्ञ अनुष्ठान व श्रीमद्भागवत करवाते हैं लेकिन वहां पूरे वक्त मौजूद नहीं रह पाते. वे धर्म और कर्म दोनों में संतुलन रखते हैं. एक व्यक्ति कर्म करता है तो दूसरे को फल मिलता है इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है कि आलीशान इमारत बनानेवाले मजदूर कभी उस घर में नहीं रहते. वहां रहने उसका मालिक आ जाता है. धन से सबकुछ खरीदा जा सकता है.’’