जब बंटती है मीठी रेवड़ी वोटों की जुड़ जाती कड़ी

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, ठंड के मौसम में तिल का सेवन बहुत लाभकारी होता है. तिल के लड्डू, तिल की गजक या तिल की रेवड़ी से अच्छा-खासा पोषण मिलता है.’’

    हमने कहा, ‘‘यह सब तो ठीक है लेकिन लड्डू का गजक खाइए, रेवड़ी का भूलकर भी नाम मत लीजिए. आपको मालू्म होना चाहिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रेवड़ी बांटने के साफ खिलाफ हैं. इनसे लोगों की आदत बिगड़ती है और सरकारी खजाने पर अनावश्क बोझ आता है.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, आपकी बात हमारे पल्ले नहीं पड़ी. भीनी-भीनी रेवड़ी स्वादिष्ट होती है. उसमें तिल और शक्कर की मीठी चाशनी का गठबंधन होता है. गुलाबजल की भीनी-भीनी सुगंधवाली रेवड़ी खाइए तो तबियत बाग-बाग हो जाएगी. गुड़ की रेवड़ी भी वेरी गुड होती है. आपने कहावत सुनी होगी, अंधा बांटे रेवड़ी, अपने-अपने को दे. इसलिए रेवड़ी चाहिए तो किसी ‘आख के अंध, नाम नयनसुख’ के पास जाइए.’’

    हमने कहा, ‘‘पीएम ने रेवड़ी बांटने का आरोप आम आदमी पार्टी पर लगाया है. केजरीवाल का फार्मूला है कि रेवड़ी बांटो और सत्ता हासिल करो. किसी टॉफी या चाकलेट से रेवड़ी हमेशा बेहतर होती है. दिखने में चपटी और गोल छोटी-छोटी रेवड़ी से किसी का भी मुंह मीठा किया जा सकता है.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, रेवड़ी की बजाय गजब का स्वाद देनेवाली गजक का सेवन कीजिए जो मुंह में तुरंत घुल जाती है. अगले महीने तिल संक्रांत आ रही है. महाराष्ट्र में कहा जाता है- तिल-गुड़ घ्या आणि गोड-गोड बोला. अर्थात तिलगुड़ लो और मीठी-मीठी बातें करो.’’

    हमने कहा, ‘‘अगले वर्ष देश के 9 राज्यों के चुनाव हैं फिर मई 2024 में लोकसभा चुनाव है. नेता आएंगे और लुभावने मीठे वादों से जनता को बहलाएंगे. इसलिए हमारी सलाह है कि मीठी-मीठी बातों से बचना जरा, दुनिया के लोगों में है जादू भरा.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, आम आदमी पार्टी की रेवड़ी का असली मतलब है- मुफ्त बिजली पानी, मोहल्ला क्लीनिक, बुजुर्गों को मुफ्त तीर्थयात्रा. इसके बावजूद केंद्र सरकार की गरिबों को मुफ्त अनाज योजना को भूलकर भी रेवड़ी मत समझना. वह आदर्श जनकल्याणकारी कदम है. आप चाहें तो इसे बीजेपी का अन्नदान मान सकते हैं.’’