अगले वर्ष होने वाले बंगाल (West Bengal) विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को अपनी पार्टी के असंतुष्टों और राज्य में पूरा जोर लगा रही बीजेपी से मुकाबला करना पड़ेगा. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda)के काफिले पर हमले को पार्टी ने बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश की. केंद्रीय गृहमंत्री व बीजेपी के चुनाव रणनीतिकार अमित शाह ने भी बंगाल दौरा किया. इस तरह केंद्र और बंगाल की जंग शुरू है. बीजेपी के लिए सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि उसके पास बंगाल के मुख्यमंत्री पद के लिए कोई चेहरा नहीं है. यही स्थिति बिहार में उसके साथ थी.
यही वजह है कि ज्यादा सीटें जीतने के बावजूद बीजेपी (Bharatiya Janata Party) (BJP)को बिहार में फिर नीतीश कुमार (Nitish kumar) को ही सीएम बनाना पड़ा. सुबेंदु अधिकारी या टीएमसी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए नेताओं का कद इतना बड़ा नहीं है कि ममता का विकल्प बन सकें. बंगाल के चुनाव में बीजेपी किसी बड़े लाभ की उम्मीद नहीं कर सकती क्योंकि वहां पार्टियों का वोटबैंक निश्चित रहता है. लेफ्ट के वोट, टीएमसी के वोट अपनी जगह कायम हैं. जब अभी से वहां हिंसा व हमले शुरू हैं तो चुनाव के समय भी कम उत्पात नहीं होगा. राज्य के 70 फीसदी हिंदुओं के वोट पर उम्मीद लगाए हुए बीजेपी सिर्फ यह देख रही है कि इस चुनाव में उसका बंगाल में कुछ आधार बन जाए और उसके बाद वह आगे बढ़ सके.
यह सही है कि तृणमूल के 10 वर्षों के शासन में हिंसा, भ्रष्टाचार व कुशासन बढ़ा और लोग परिवर्तन भी चाहते हैं, लेकिन यह इतना आसान नहीं है. ममता के पास 27 प्रतिशत मुस्लिम वोटबैंक है. ऐसा नहीं लगता कि एआईएमआईएम के नेता ओवैसी उसमें कोई फूट डाल पाएंगे. हैदराबाद और बंगाल की राजनीति में बहुत फर्क है. यह बात सही है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 42 में से 18 सीटें जीती लेकिन जनता को पता है कि केंद्र में किसे जिताना चाहिए और राज्य में किसे! विधानसभा चुनाव में अलग मानसिकता काम करती है.