कांग्रेस में घुमड़ते असंतोष के बीच 2 दिग्गज नेताओं का जाना

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ऐसे गाढ़े समय पर जब कांग्रेस में घमासान मचा हुआ है तथा हर तरफ दिशाहीनता देखी जा रही है तभी 2 दिग्गज नेताओं तरुण गोगोई (Tarun Gogoi) और अहमद पटेल (Ahmed Patel) का निधन हो जाना पार्टी पर वज्राघात के समान है. एक ओर जहां असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई पूर्वोत्तर में कांग्रेस(Congress) के वरिष्ठ नेता थे वहीं अहमद पटेल तो पार्टी के प्रमुख रणनीतिकार या मास्टर स्ट्रेटेजिस्ट माने जाते थे. वे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी(Sonia gandhi)के राजनीतिक सलाहकार थे और कितने ही नाजुक मौकों पर उन्होंने पार्टी को संकट से उबारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

लोकसभा चुनाव हों या राज्यसभा चुनाव, अहमद पटेल से हमेशा परामर्श लिया जाता था. वे बड़े ही शातिर तरीके से चुनावी गोटियां बिठाते थे. यदि प्रणब मुखर्जी यूपीए के लिए सामने दिखाई देने वाले संकट मोचक थे तो अहमद पटेल यही काम बैकग्राउंड में या पर्दे के पीछे रहकर करते थे. उन्हें बैकरूम स्ट्रेटजिस्ट कहा जाता था. जब कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है और आतंरिक चुनौतियां बढ़ती जा रही है तभी सोनिया गांधी ने अपने एक मजबूत सिपहसालार को खो दिया. वे दीर्घकाल से सोनिया की आंख और कान बने हुए थे. यद्यपि अहमद पटेल कभी भी मनमोहन सिंह सरकार में मत्री नहीं रहे लेकिन वे किसी कैबिनेट मंत्री से भी अधिक ताकतवर थे.

पार्टी के प्रमुख रणनीतिकार व संकट मोचक थे अहमद पटेल

सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने जो शानदार दिन देखे, उनमें अहमद पटेल की उल्लेखनीय भूमिका थी. 2004 और 2009 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत के पीछे जो रणनीतिक सेनापति रहे उनमें अहमद पटेल प्रमुख रहे. उनकी सोनिया के प्रति निष्ठा असंदिग्ध रही. पार्टी के लिए आर्थिक साधन जुटाना हो या किसी संकट से निपटने का काम हो, पटेल इसमें माहिर थे. वे ऐसे गिने चुने नेताओं में थे जिनकी तमाम दलों के भीतर तूती बोलती थी. असंभव को संभव कर दिखाने की खूबी की वजह से काग्रेस में उनकी वजनदार हैसियत थी. गुजरात से पांचवीं बार राज्यसभा की सदस्यता हासिल करते हुए उन्होंने कई राजनीतिक-कानूनी बाधाएं पार कीं. अहमद पटेल कुल 8 बार सांसद रहे. उन्होंने पहला लोकसभा चुनाव 1977 में जनता पार्टी की लहर के बावजूद जीता था. तब कांग्रेस की हालत बेहद कमजोर थी. वे 3 बार लोकसभा के लिए चुने गए. राजनीति के बदलते मौसम को अहमद पटेल ने 4 दशक से ज्यादा समय क देखा. सोनिया के निकटवर्ती होने की वजह से अहमद पटेल का यूपीए सरकार में काफी दबदबा था. तब उनका इशारा ही काफी था.

फंड जुटाने में माहिर थे

कारपोरेट व राजनेताओं तक पहुंचने की अपनी क्षमता की वजह से कांग्रेस में अहमद पटेल की गहरी पैठ थी. 2019 के लोकसभा चुनाव के पहे कांग्रेस का खजाना खाली हो चुका था. संभवत: नोट बंदी भी इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार थी. ऐसे मौके पर पटेल के ऊपर सभी क्षेत्रों तथा उद्योग जगत की हस्तियों से फंड जुटाने की जिम्मेदारी थी. चाहे डीएमके नेताओं का 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला हो या 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौते को लेकर लेफ्ट पार्टियों का यूपीए से अलग हो जाना, मनमोहन सरकार को बचाने में अहमद पटेल ने ही प्रमुख भूमिका निभाई थी. वे हमेशा विपक्ष के निशाने पर रहे. पटेल का राष्ट्रीय स्तर पर कद बढ़ने के बावजूद गुजरात में कांग्रेस कमजोर होती चली गई. इस वर्ष जुलाई में मनी लांड्रिंग तथा गुजरात के स्टर्लिंग ग्रुप से  जुड़े बैंक धोखाधड़ी मामले से ईडी ने अहमद पटेल से पूछताछ की थी जिसे पटेल ने बदले की कार्रवाई बताया था.

राज्यसभा चुनाव में बीजेपी को मात दी

अगस्त 2017 में अहमद पटेल समूची बीजेपी पर भारी पड़े थे. अमित शाह और स्मृति ईरानी को 2 सीटों पर मनोनीत करने के बाद बीजेपी तीसरी सीट कांग्रेस प्रत्याशी को नहीं देना चाहती थी. बीजेपी ने न केवल तीसरा उम्मीदवार खड़ा किया बल्कि चुनाव के कुछ दिन पूर्व कांग्रेस के 6 विधायकों से इस्तीफा भी दिलवा दिया. इतने पर भी अहमद पटेल ने चुनाव जीत कर दिखाया था.