ST BUS
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    भंडारा. सोमवार को 11 वे दिन भी एसटी कर्मचारी आंदोलन पर होने से भंडारा जिले के सभी एसटी डीपो के सामने आंदोलन शुरू ही है.  एसटी सरकारीकरण के मांग पर कर्मचारी ठाम है. किंतु सदर आंदोलन की वजह से यातायात ठप हुई है. ऐन दिवाली में एसटी बंद होने से यात्रियों को बडी परेशानियों का सामना करना पड रहा है.

    कर्मचारियों के आंदोलन की वजह से कुछ डीपो से कुछ एसटी बस शुरू है. किंतु अभी संपूर्ण महाराष्ट्र में एसटी बंद होने से अनेक नागरिक निजी वाहनों का उपयोग कर रहे है. किंतु निजी वाहन धारक ऐसे समस्याओं के समय यात्रियों की ओर से दुप्पट, तिप्पट पैसे ले रहे है. जिससे यात्रियों के जेब का काटा जा रहा है. 

    इस समय सरकार क्या निर्णय लेता है इस ओर सभी का ध्यान लगा है. कर्मचारियों के इस राज्यव्यापी आंदोलन पर से अनेक चर्चाएं व्याप्त है. आंदोलन अधिक तीव्र होकर जबतक मांगों की आपूर्ति नहीं होती तबतक आंदोलन शुरू ही रहने का दिखायी दे रहा है. 

    एसटी कर्मचारी एवं सरकार के झगडे में पिस रही जनता

    सफेद हाथी बन चुकी एसटी महामंडल की कमर लंबे चले कोरोना लाकडाउन में टूटी. खर्च की तुलना में आमदनी बेहद कम है. इसमें एसटी कर्मचारियों का दावा है कि अगर महामंडल का सरकारीकरण कर लिया जाए तो कई खर्चों में कटौती हो सकती है. इससे होने वाली बचत से न सिर्फ कर्मचारियों का कल्याण होगा. बल्कि यात्रियों को अच्छी सुविधाएं दी जा सकेगी. कर्मचारी यहां तक दावा करते है कि अगर सरकारीकरण होता है, टिकट के दाम भी कम हो सकेंगे. बहरहाल एसटी कर्मचारी एवं सरकार के बीच चल रहे झगडे में बेचारी जनता पिस रही है.

    क्या करें? सभी है विवश

    ट्राफिक पुलिस के आंखों के सामने यात्रियों को काली पीली में ठूंस ठूंस कर भर कर ले जाया जा रहा है. गाडी के सामने वाली सीट पर ड्रायव्हर के अलावा 5 लोग बैठते है. इन गाड़ियों में बैठने वाले मानते है कि यह खतरनाक है. लेकिन क्या करें? मजबूरी है? इसलिए जान हथेली पर रख सफर करने के लिए विवश है. ट्रैफिक पुलिस भी दबे जुबान में कहती है कि अगर ईमानदारी से कार्रवाई हो तो लगभग सभी गाड़ियां चालान हो सकती है. लेकिन यात्रियों को सुविधा कौन देगा? इसका जवाब किसी के पास में नहीं है. यही कारण है ट्रैफिक पुलिस भी नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए देखने के लिए विवश है.

    गोद में बच्चा : प्यासी मां

    दीवाली का त्यौहारी सीजन चल रहा है. मायके आने वाले एवं ससुराल लौटने वाली महिलाओं की भारी भीड़ बस स्टैंड परिसर के बाहर में देखी जा सकती है. बसें नहीं चल रही है. कालीपिली को छोड दिया जाए तो कोई विकल्प भी नहीं है. कौन सी गाड़ी कहां जा रही है. इसकी जानकारी नहीं है. बस स्टैँड के सामने कुछ दूरी पर अलग अलग हिस्से में निजी गाड़ियां लगती है. जिसकी जानकारी लोगों को नहीं रहती है. यही कारण है कि गोद में बच्चा लेकर भूखी प्यासी मां यहां से वहां चक्कर काटती है. पहले से खचाखच भरी गाडी में अपने एवं अपने बच्चों के लिए सीट तलाशती है.

    अनिश्चितता का सफर

    एक ठाकरे नामक यात्री ने बताया कि वह लगभग डेढ़ घंटे खड़ा रहा. तब जाकर उसे नागपुर की बस मिली. बस आएगी भी या नहीं इसको लेकर कोई निश्चितता नहीं है.

    दिवाली पर बडा नुकसान- चंद्रकांत वडस्कर 

    भंडारा विभागीय यातायात अधिकारी चंद्रकांत वडस्कर ने बताया कि कर्मचारियों ने इसके पहले जो मांगे रखी थी उन मांगों को राज्य परिवहन महामंडल द्वारा मंजूर की गयी थी. उसके पश्चात कृति समिति ने आंदोलन पिछे लिया था. किंतु कृति समिति पर अविश्वास दिखाकर कर्मचारियों ने यह आंदोलन शुरू रखा है. 

    सरकारीकरण की मांग को लेकर अभीतक उन्होंने आंदोलन ओर तीव्र करते हुए राज्यभर में एसटी यातायात ठप की गयी है. महामंडल का जिससे दिवाली पर बडा नुकसान हुआ है. नागरिकों को भी बडी परेशानियों का सामना करना पड रहा है. इसकी दखल लेकर कर्मचारियों ने आंदोलन पिछे लेना चाहिए. 

    इतने एसटी कर्मचारियों ने आत्महत्या की- पंकज वानखेडे 

    रापम भंडारा के यांत्रिक कर्मचारी पंकज वानखेडे ने बताया कि इतने एसटी कर्मचारियों ने आत्महत्या करने के बावजूद भी प्रशासन को हमारी मांगे नहीं दिखी क्या. जिससे आखिर हम लोगों ने आंदोलन को स्वीकारा है. हमकों भी लगता है कि यात्रियों को परेशानी नहीं हो किंतु हम कुछ नहीं कर सकते. हमारी मांगे जबतक मंजूर नहीं होती तबतक पिछे नहीं हटेंगे.