Historical journey of Goddess Mahakali begins with Ghatasthapana, shops decorated in temple premises

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  • भाविकों के लिए की गई व्यापक व्यवस्था

चंद्रपुर. विदर्भ में जागृत देवी के रूप में विख्यात देवी महाकाली की ऐतिहासिक यात्रा सोमवार 27 मार्च से घटस्थापना के साथ तथा मंदिर प्रबंधक सुनिल महाकाले के हाथेां देवी की महाआरती के पश्चात शुरू की गई. भाविकों की सुविधा के लिए मंदिर प्रबंधन और मनपा, पुलिस प्रशासन की ओर से व्यापक व्यवस्था की गई है. 

ऐतिहासिक देवी महाकाली मंदिर में चैत्र माह में शुरू होनेवाली इस ऐतिहासिक यात्रा के लिए देवी भक्तों का आगमन गुढीपाडवा से आरंभ हो जाता था. यात्रा की चैत्र पूर्णिमा को मुख्य पूजा होगी. इस दौरान पूरा मंदिर परिसर पूरी तरह से सजाया गया है, यह जत्रा कुछ वर्षों पूर्व एक से लेकर डेढ माह तक चलती थी. अब सिमटकर 8-10 दिन की रह गई है.

जत्रा में नांदेड़, परभणी, सोलापुर, कोल्हापुर, मराठवाडा आदि स्थानों से हर वर्ष लगभग एक से डेढ लाख से अधिक श्रध्दालुओं का देवी महाकाली के दर्शनों के लिए यहां आगमन होता है. जत्रा में आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, लातूर, जालना, उस्मानाबाद, परभणी आदि स्थानों से भी श्रध्दालुओं का आगमन शुरू होने की संभावना है. यह जत्रा चैत्र शुक्ल षष्ठी से चैत्र पोर्णिमा तक जारी रहेंगी.

उल्लेखनीय है कि लगभग 300 से अधिक वर्ष पुराना देवी महाकाली मंदिर जागृत मंदिर के रूप में प्रसिध्द है. गोंडराजाओं द्वारा बसाई गई इस नगरी में रानी हिराई ने 1672 से 1691 तक अपने कार्यकाल में पुराने महाकाली मंदिर का जीर्णोध्दार कर मंदिर को भव्य रूप प्रदान किया गया. उसी समय से रानी हिराई द्वारा चैत्र पूर्णमासी से इस मंदिर में शुरू की गई देवी की जत्रा अब तक अबाधित रूप से चल रही है. हिंदवी साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज ने इस मंदिर पहुंचकर दर्शन किए थे और मुगल शासकों पर अपन वर्चस्व स्थापित किया था.

लगभग 1916 से नांदेड जिले के तलेगांव उमरी निवासी आदिशक्ति की उपासिका राजाबाई के सपने में देवी महाकाली ने दर्शन देकर उसे चंद्रपुर स्थित मंदिर में दर्शन देने और अपनी भक्ति का प्रसार करने का कहा था. तब वह जत्रा में एक बड़ा जत्था लेकर यहां पहुंची और देवी महाकाली के दर्शन किए. तभी से उस परिसर और मराठावाडा के श्रध्दालु बड़ी संख्या में यहां आने लगे. आज भी राजाबाई के वशंज यहां परंपरा को निभाते आ रहे है. उसी तरह नांदेड़ निवासी यमुनाबाई का प्रतिवर्ष पोहा अर्थात जत्था यहां पूरे गाजे-बाजे और सवारी के साथ आता है. इस जत्रा के महत्व को देखते हुए 1955 में नगर प्रशासन ने विशाल स्वरूप प्रदान किया और तब से अब तक यहां बड़े पैमाने पर जत्रा का आयोजन होने लगा है.

श्रध्दालुओं के लिए व्यवस्था

श्रध्दालुओं के लिए मंदिर परिसर में धर्मशाला है जिसमें चालीस कमरे और दो बड़े सभागार है. जहां श्रध्दालुओं के ठहरने की व्यवस्था की गई, साथ ही मंदिर परिसर, बैलबाजार परिसर में बड़ा शामियाना बनाया गया है. कतारों खड़े होकर दर्शन की प्रतीक्षा करनेवाले श्रध्दालुओं के लिए पेयजल, भीषण गर्मी से बचने के लिए पंखों और कूलरों की व्यवस्था की गई है. मंदिर परिसर में 30 से 35 कैमरे लगाये गए है. नि:शुल्क भोजन और औषधि उपचार की व्यवस्था की गई है.

मंदिर परिसर में सजी दूकाने 

मंदिर परिसर में देवी के लिए लगनेवाली पूजा साहित्य की दूकाने सज गयी है. मंदिर परिसर में भाविकों को आकर्षित करने के लिए साहित्य खरिददारी के लिए बुलाया जा रहा है. पूजा साहित्यों में देवी को चढाने के साडी, ब्लाऊज पीस, कुमकूम, हलदी, फोटो फ्रेम समेत अन्य साहित्यों से दूकाने सजायी गई है. 

माता महाकाली दर्शन हेतु पहुचे गोंडराजा विरेंद्रशहा आत्राम व पूर्व विधायक दिपकदादा आत्राम

प्रति वर्ष की तरह इस वर्ष भी गोंड राजे विरेंद्रशहा आत्राम सपत्नी माता महाकाली के दर्शन व पूजा हेतु पहुचे. इस दौरान भव्य शोभायात्रा राजवाडा से निकाली जाती है. यह शोभायात्रा विधिवत पूजा कर मुख्य मार्ग से महाकाली मंदिर पहुची. मंदिर में माता की विधिवत पूजा अर्चना की गई. इस समय सैकडों शेकडो गोंडियन समाज बांधव व पूर्व विधायक दिपक दादा आत्राम उपस्थित थे.