गोंडवाना विश्वविद्यालय की भूमिका महत्वपूर्ण : डॉ. विजय जोशी

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    • गोंडवाना विश्वविद्यालय में 5 दिवसीय कार्यशाला का समापन 

    गड़चिरोली. गड़चिरोली तथा चंद्रपुर जिले के दुर्गम क्षेत्र में हमने समाजिक प्रकल्पों का अनुभव लिया है. उस क्षेत्र के सांस्कृतिक इतिहास हमने जाना है. चार दिवारी के भितर ली शिक्षा तथा प्रत्यक्ष अनुभव से ली शिक्षा इसमें काफी फर्क है. इस कार्यक्रम के आयोजक के रूप में गोंडवाना विवि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. ग्रामीण लोगों की स्थिती तथा आदिवासी लोगों के जीवन पर विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं का प्रभाव इस विषय पर करीब से जाना जा सका है. ऐसा कथन रुसा के महाप्रबंधक डा. विजय जोशी ने किया. 

    गोंडवाना विश्वविद्यालय में आयोजित ‘आदिवासी गौरव सफर- अनुभव से नेतृत्व’ इस विषय पर 5 दिवसीय कार्यशाला के समापन के उपलक्ष्य में वे बोल रहे थे. इस समय गोंडवाना विश्वविद्याल के कुलगुरू डा. प्रशांत बोकारे, प्र -कुलगुरू डा. श्रीराम कावले, डा. अनिल चिताडे तथा महाराष्ट्र के 14 प्राचार्य तथा 2 प्राध्यापक उपस्थित थे. 

    दुसरों को बाटेंगे यहां के अनुभव 

    वरोरा का आनंदवन क्या है? सोमनाथ का प्रोजेक्ट क्या है ? अभय बंग का ‘सर्च’ कैसे कार्य करता है? पेठा का प्रोजेक्ट क्या है? लोकबिरादरी प्रकल्प क्या है? इथलं वनवैभव कैसा है? लेखामेंढा में देवाजी तोफा का कार्य कैसे चलता है? यहां के आदिवासी, उनकी संस्कृति क्या है? यह 5 दिवसीय कार्यशाला से सिख पाए. यह अनुभव अब हम दुसरों को भी दे सकते है. ऐसी बात भी डा. विजय जोशी ने कहां. 

    यहां हुई 5 दिवसीय कार्यशाला 

    उक्त कार्यशाला का उद्घाटन 28 मार्च को आनंदवन वरोरा में किया गया. 29 मार्च को सोमनाथ में कौस्तुभ आमटे तथा पल्लवी आमटे के मार्गदर्शन में यहां के स्वयंसेवकों से संवाद किया. 30 मार्च को अहेरी में डा. डांबोले ने पेठा प्रोजेक्ट पर विस्तृत जानकारी दी. 31 मार्च को डा. दिगंत आमटे के मार्गदर्शन में लोकबिरादरी प्रकल्प को भेट दी गई. 1 अप्रैल को डा. अभय बंग तथा डा. राणी बंग के मार्गदर्शन में ‘सर्च’ तथा ‘लेखामेंढा’ को भेट दी गई.