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बंबई उच्च न्यायालय File Photo

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    मुंबई: मुंबई महानगरपालिका चुनाव (Mumbai Municipal Corporation Election) को लेकर मुंबई (Mumbai) के लोगों की नजरें अब मुंबई उच्च न्यायालय के फैसले पर टिकीं हुईं हैं। बीएमसी में वार्डों की संख्या घटाने को लेकर बुधवार को हाईकोर्ट (Mumbai High Court) में सुनवाई होनी है। शिंदे-फडणवीस सरकार ने पिछली महाविकास आघाड़ी सरकार के फैसले को पलटते हुए वार्डों की संख्या वर्ष 2017 की ही तरह  227 रखने का निर्णय लिया है। जिसे शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे पार्टी के पूर्व नगरसेवक राजू पेडणेकर ने चुनौती दी है। हाइकोर्ट ने बुधवार 16 नवंबर को सुनवाई निश्चित किया है। पेडणेकर ने इसके पहले सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने पेडणेकर की याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय में जाने के लिए कहा था।

    सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद पेडणेकर ने वकील जे. एल. कार्लोस के मार्फत  उच्च न्यायालयात में याचिक दाखिल की है। अदालत ने याचिक को स्वीकार करते हुए सुनवाई सुनिश्चित की है। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास आघाड़ी सरकार ने मुंबई की जनसंख्या के आधार पर महानगरपालिका में वार्डों की संख्या 236 करने का निर्णय लिया था। इसके तहत वार्डों की संरचना की गई थी। यही नहीं वार्डों के आरक्षण की प्रक्रिया भी पूरी कर ली गई थी। राज्य चुनाव आयोग की तरफ से इस संदर्भ में अधिसूचना भी जारी कर दी है थी, लेकिन इसी बीच राज्य में सत्ता परिवर्तन हो गया। नई सरकार ने पिछली सरकार के फैसले को पलटते हुए वर्ष 2017  के वार्ड संरचना के महानगरपालिका चुनाव कराने का निर्णय लिया। जिसे पहले सर्वोच्च न्यायालय अब मुंबई उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है।

    समय और पैसे की बचत होगी

    अदालत में दी गई चुनौती में कहा गया कि वार्डों की संख्या जब बढ़ा कर 236 किया गया था तब भी उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी। तब अदालत ने अपने निरीक्षण में कहा था कि वार्डो की संख्या बढ़ाने में दिक्कत नहीं है। पेडणेकर ने कहा है कि 236 वार्डों पर चुनाव कराने से समय और पैसे की बचत होगी।

    इन्हें लगाया था जुर्माना

    महाविकस आघाड़ी सरकार ने जब वार्डों की संख्या 236 करने की अधिसूचना जारी किए था तब कांग्रेस और बीजेपी ने विरोध किया था। सरकार के फैसले को नितेश राजहंस सिंह और मनसे के सागर कांतिलाल देवरे ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। अदालत ने दोनों याचिकाओं को खारिज करते हुए नितेश राजहंस सिंह और सागर देवरे पर  25-25 हजार का जुर्माना भी लगाया था।