NCP entry in Uttar Pradesh Assembly Elections, preparing to fight together with SP

  • ब्राह्मण बना वोट बैंक, हर दल को लगने लगा प्यारा
  • पूर्वांचल में जगह-जगह हो रहा सम्मेलन

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मुंबई. लोकतंत्र में जिसकी जितनी संख्या भारी, उतनी उसकी हिस्सेदारी, वाली कहावत फिलहाल उत्तर प्रदेश विधानसभा सभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Elections) में गलत साबित होने जा रही है। ब्राह्मणवाद, मनुवाद और न जाने इस तरह के किन- किन उपमाओं से नवाजा जाने वाला यह समाज अब अचानक सभी को प्यारा लगने  लगा है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में संख्या बल के हिसाब से देखें तो ब्राह्मणों (Brahmins) की संख्या मात्र 14 प्रतिशत है, लेकिन सत्ता की बेचैनी ऐसी कि कमावेश सभी पार्टियां ब्राह्मणों का हमदर्द होने का दावा करने लगी हैं। बीजेपी (BJP), सपा (SP), बसपा (BSP) और आप (AAP) के बाद अब महाराष्ट्र की जमीं से उठकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भी मैदान में कूद गयी है।

एनसीपी (NCP) के राष्ट्रीय महासचिव के.के. शर्मा (K.K. Sharma) और राष्ट्रीय कोआर्डिनेटर पारसनाथ तिवारी कहते हैं कि वैसे तो उनकी पार्टी सभी वर्गों को साथ लेकर चुनाव में उतरेगी, लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार के निर्देशानुसार हमने ब्राह्मणों पर विशेष फोकस किया है। बीजेपी सरकार में ब्राह्णणों को सताया जा रहा है, नेतृत्व खत्म करने की साजिश हो रही है, एनसीपी इस मुद्दे को लेकर ब्राह्मणों के बीच जा रही है। अब तक कानपुर, वाराणसी, गोरखपुर और देवरिया के बाद 26 सितंबर को बलिया में ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित किया गया है। मुंबई दौरे पर आए शर्मा ने दावा किया कि बीजेपी सरकार के उत्पीड़न से परेशान यह समाज बड़ी तेजी से एनसीपी के साथ आ रहा है।  

सपा गठबंधन में शामिल होगी एनसीपी

विधानसभा चुनाव से पहले पार्टियों का फोकस बीजेपी के खिलाफ मजबूत गठबंधन के साथ मैदान में उतरने का है। एनसीपी को भी एक मजबूत गठबंधन की तलाश है। समाजवादी पार्टी और एनसीपी नेताओं के बीच बातचीत चल रही है। शर्मा बताते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और प्रो. रामगोपाल यादव के साथ कई दौर की बातचीत हो चुकी है। दोनों दलों के नेता साथ लड़ने पर सहमत हैं। वैसे जमीनी हकीकत को देखें तो उत्तर प्रदेश में एनसीपी का कोई आधार नहीं है, लेकिन इतने बड़े प्रदेश में कई ऐसे नेता पार्टी के साथ जुड़े हैं, जो अपने- अपने क्षेत्र में मजबूती से चुनाव लड़ सकते है। सपा का साथ मिला तो जीत की संभावना बढ़ जाएगी।

 सवर्ण जातियों पर फोकस

प्रदेश में सरकार बनाने के लिए सपा को यादव और मुस्लिम वोटरों के अलावा सवर्णों का भी समर्थन चाहिए। इसीलिए एनसीपी ब्राह्मणों सहित सभी सवर्ण जातियों को अपने साथ लाना चाहती है। किसान आंदोलन और रालोद के जयंत चौधरी के साथ आने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा की स्थिति मजबूत है। पार्टी के लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश एक कमजोर कड़ी है। पिछड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व करने वाली  पार्टियों से सपा का गठबंधन है, लेकिन सपा के पास सवर्णों को साधने का कोई साधन नहीं बन पाया है। संभवत: इस काम में एनसीपी उसकी मदद कर रही है।                  

बीजेपी के बागियों को टिकट

दरअसल एनसीपी की नजर अन्य दलों से बगावत करने वाले नेताओं पर है। अंदरुनी हलकों से आ रही खबरों के अनुसार कम से कम एक तिहाई विधायकों का टिकट बीजेपी काटेगी। कई मंत्रियों का भी पत्ता कटने वाला है। ऐसे विधायकों पर एनसीपी की नजर है। एनसीपी के सिंबल पर मौजूदा विधायक मैदान में उतरता है तो निश्चित रूप से बीजेपी के सामने तो चुनौती खड़ी होगी ही, एनसीपी को एकाध सीट पर लाटरी भी लग सकती है।

चुनाव में उत्तरभारतीय एंगल

एनसीपी की नजर पूर्वी उत्तर प्रदेश के उन वोटरों पर है, जिनकी फैमिली मुंबई सहित महाराष्ट्र के विभिन्न शहरों में रहती है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपेक्षित सफलता नहीं भी मिली तो, वहां के संबंधों का उपयोग पार्टी महाराष्ट्र की राजनीति में करेगी। वर्षों तक राज्य की सत्ता में रहने के बावजूद मुंबई में तो एनसीपी की जमीन नहीं बन पाई, लेकिन ठाणे, नवी मुंबई, पुणे, पिंपरी-चिंचवड़ और नासिक जैसे शहरों में पार्टी का आधार काफी मजबूत है। यहां रहने वाले उत्तरभारतीय यदि एनसीपी के साथ जुड़े तो भविष्य में यहां पार्टी को  लाभ हो सकता है।

मैं पूरे प्रदेश का दौरा कर रहा हूं। जगह-जगह रैलियां हो रही हैं। ब्राह्मण सहित सवर्ण जातियों का जिस तरह का समर्थन मिल रहा है, उसके आधार पर मैं कह सकता हूं कि हमारी स्थिति काफी अच्छी रहेगी। सहयोगी दलों के सहयोग से इस बार हम कई सीतें जीतने जा रहे हैं।

-के. के. शर्मा, राष्ट्रीय महासचिव, प्रभारी यूपी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी