RTMNU, nagpur University

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    नागपुर. कोरोना की वजह से 2 वर्ष तक आरटीएम नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा ऑनलाइन परीक्षा लिये जाने से साधन-सुविधाओं के अभाव में चलने वाले कॉलेजों को संजीवनी मिल गई लेकिन जैसे ही ऑफलाइन परीक्षा की शुरुआत हुई ऐेसे कॉलेजों की असलियत सामने आने लगी है. विवि से संलग्नित करीब 200 कॉलेज ऐसे हैं जहां साधन-सुविधाओं का अभाव है. कुछ किराये की इमारत में तो कुछ 1-2 कमरों में चल रहे हैं. विवि के पास इन कॉलेजों की सूची तैयार है. भविष्य में इन कॉलेजों को कारण बताओ नोटिस जारी किया जाएगा. 

    बुधवार को परीक्षा मंडल के संचालक प्रफुल साबले द्वारा खामला के श्रीराधे महाविद्यालय का निरीक्षण करने पर उसकी असलियत सामने आ गई. जुपिटर कनिष्ठ महाविद्यालय में चल रहे उक्त नाइट कॉलेज में साधन-सुविधाओं का अभाव है. नाममात्र का स्टाफ है. छात्रों को प्रवेश देने तक ही कॉलेज सीमित है. न नियमित क्लासेस होती हैं और न ही प्राध्यापकों की भर्ती की गई है. विवि ने इस मामले को काफी गंभीरता से लिया है. अब श्रीराधे महाविद्यालय को कारण बताओ नोटिस जारी किया जाएगा.

    होम सेंटर होने से असलियत आई सामने

    इस बार विवि द्वारा होम सेंटर बनाए जाने के बाद कॉलेजों में साधन-सुविधाओं के बारे में जानकारी सामने आ रही है. 200 कॉलेजों में सुविधाएं ही नहीं हैं. होम सेंटर होने से पेपर शुरू होने से पहले ही छात्रों को जानकारी मिल जाती है. कई जगह तो प्राध्यापकों द्वारा ही छात्रों को नकल कराई जा रही है. अपने कॉलेज का रिजल्ट अच्छा बनाने के लिए छात्रों का नुकसान किया जा रहा है. इस तरह की डिग्री लेकर निकलने वाले छात्र रोजगार के लिए कितने सक्षम बन पाएंगे, यह भी गंभीर सवाल है. 

    एलईसी की बोगस कार्यप्रणाली

    कुछ वर्ष पहले विवि ने करीब 300 कॉलेजों को बैन किया था. इन कॉलेजों में साधन-सुविधाओं का अभाव पाया गया था. मामला हाई कोर्ट तक पहुंचा था. हालांकि कुछ दिनों बाद कॉलेज फिर से चलने लगे. इनमें नेताओं के कॉलेजों की संख्या अधिक थी. दरअसल विवि प्रशासन की कमजोरी का फायदा कॉलेजों द्वारा उठाया जा रहा है. कॉलेजों को संलग्नता देने के लिए स्थानीय जांच समिति को अधिकार दिये गये हैं. समिति वहां जाकर साधन-सुविधाओं का जायजा लेती है. समिति की सकारात्मक रिपोर्ट के आधार पर ही विवि द्वारा संलग्नता प्रदान की जाती है लेकिन समिति की बोगस कार्यप्रणाली की वजह से साधन-सुविधाओं के अभाव में चल रहे कॉलेज चांदी काट रहे हैं. बताया जाता है कि साइंस फैकल्टी वाले महज 50 फीसदी कॉलेजों में ही प्रयोगशाला है. कहीं एक तो कहीं 2 प्राध्यापक ही हैं. इसके बावजूद वर्षों से कॉलेज चल रहे हैं.