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    नागपुर. राज्य में सत्ता परिवर्तन के साथ ही अधर में लटकी मनपा चुनाव की प्रक्रिया के कारण तमाम राजनीतिक दलों में असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है. हालांकि राज्य सरकार ने तो सदस्य संख्या को लेकर कैबिनेट की बैठक में निर्णय ले लिया लेकिन सरकार का ही भविष्य सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर टिका हुआ है. यहीं कारण है कि राज्य चुनाव आयोग ने भी सतर्क कदम उठाया है. 5 अगस्त को ओबीसी आरक्षण के साथ प्रभाग आरक्षण की अंतिम घोषणा करनी थी. किंतु राज्य चुनाव आयोग ने इसकी घोषणा पर रोक लगा दी.

    जानकारों के अनुसार राज्य चुनाव आयोग की ओर से 3 सदस्यीय प्रभाग पद्धति को खारिज नहीं किया गया है. जब तक राज्य की राजनीति को स्थिरता नहीं मिलती, तब तक इस तरह के कदम उठाना तर्कसंगत नहीं है. यहीं कारण है कि आयोग भी फूंक-फूंककर कदम उठा रहा है. प्रशासन की ओर से दबी आवाज में 4 सदस्यीय प्रभाग होने का दावा किया जा रहा है लेकिन जब तक आयोग की ओर से दिशा-निर्देश नहीं मिलते, तब तक कुछ भी बोलने से इनकार किया जा रहा है.

    हर प्रभाग में 2 महिला, 2 पुरुष

    राजनीतिक जानकारों के अनुसार 3 सदस्यीय प्रभाग पद्धति में जो आरक्षण निर्धारित किए गए थे. उसके अनुसार कुछ प्रभागों में 2 महिलाएं तो कुछ प्रभागों में 2 पुरुष और एक महिला की सीट निर्धारित हुई थी. जिस प्रभाग में 2 महिला सीट निकली, वहां दूसरे पुरुष प्रत्याशी की नाराजगी उजागर हो रही थी. इसी तरह जहां 2 पुरुष की सीटें निकलीं, वहां पर कुछ महिला इच्छुक प्रत्याशियों में नाराजगी दिखाई दे रही थी. इस तरह से कई प्रभागों में खुलकर पार्टी के भीतर ही संघर्ष शुरू हो गया था. अब 4 सदस्यीय प्रभाग होने से कम से कम भाजपा के लिए सिरदर्दी खत्म होने का अनुमान लगाया जा रहा है. 15 वर्षों से लगातार मनपा में सत्ता में रहने के कारण तथा केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के नेतृत्व के चलते कई कार्यकर्ता राजनीतिक रोटियां सेंकने में जुट गए हैं. किसी न किसी तरह से टिकट पाने की जुगाड़ में दमखम लगाया जा रहा है.

    नेताओं के संकेत से सकते में कई पार्षद

    सूत्रों के अनुसार हाल ही में केंद्रीय मंत्री गडकरी की ओर से वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं की बैठक ली गई थी. बैठक में मनपा का चुनाव ही केंद्र बिंदु में था. गडकरी ने बैठक के दौरान स्पष्ट संकेत दिया कि टिकट पाने के लिए कोई कोटा नहीं चलेगा. न तो सांसद कोटा और न ही विधायक कोटा काम करने वाला है. यदि टिकट चाहिए तो जनता का समर्थन होना चाहिए. अन्यथा केवल हर समय पार्टी के कार्यक्रमों में हाजिरी लगानेभर से टिकट की आशा करना भूल होगी. नेताओं की ओर से मिले संकेतों से कई पूर्व पार्षद सकते में हैं. 

    अन्य दलों का ‘वेट एंड वॉच’

    राज्य में सत्ता पाने के बाद स्थानीय निकाय चुनावों को लेकर किस तरह से आगे बढ़ा जाए, इसे लेकर भाजपा के बड़े नेताओं के बीच लगातार मंथन हो रहा है. किंतु कांग्रेस, राकां और अन्य राजनीतिक दल वेट एंड वॉच की भूमिका में ही है. इन दलों का मानना है कि स्थानीय चुनाव होने से जो मतदाताओं के बीच होगा, उसे ही लाभ होगा. अत: अभी से प्रत्याशी तय करना तर्कसंगत नहीं है. राज्य सरकार ने चुनाव की पुरानी प्रक्रिया पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है. 4 सदस्यीय पद्धति से भी यदि चुनाव कराना हो तो काफी लंबा समय लगेगा. यही कारण है कि राजनीतिक दलों के बीच गठबंधन आदि को लेकर भी किसी तरह की हलचल नहीं है.