Nagpur High Court
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    नागपुर. सरकारी जमीन को अपने नाम करने के उद्देश्य से की गई कार्यवाही को उजागर करते हुए कमल सुरेखा की ओर से हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई. याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई के बाद न्यायाधीश सुनील शुक्रे और न्यायाधीश अनिल पानसरे ने राज्य के राजस्व विभाग, अकोला जिलाधिकारी, सहधर्मदाय आयुक्त, अमरावती के विभागीय आयुक्त, रजिस्ट्रार सोसाइटी, मित्र समाज क्लब, रवीन्द्र खंडेलवाल, विधान परिषद सदस्य विप्लव गोपीकिशन बाजोरिया, पल्लवी राठी, सचिन खंडेलवाल, श्वेता खंडेलवाल, विधान परिषद सदस्य गोपीकिशन बाजोरिया, सुप्रिया खंडेलवाल, सुमन खंडेलवाल, रमेश बजाज, पद्मा गोपीकिशन बाजोरिया, राशि विप्लव बाजोरिया को नोटिस जारी कर 2 सप्ताह में जवाब दायर करने के आदेश दिए. याचिकाकर्ता की ओर से अधि. तुषार मंडलेकर और सरकार की ओर से अति. सरकारी वकील केतकी जोशी ने पैरवी की.

    वर्ष 1896 को आवंटित हुई थी जमीन

    याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधि. मंडलेकर ने कहा कि वर्ष 1896 में ब्रिटिश सरकार की ओर से मित्र समाज क्लब को 1.75 एकड़ जमीन का आवंटन किया गया था. उसी समय से अकोला में क्लब की गतिविधियां चल रही हैं. यह जमीन सरकार की है. जिलाधिकारी के अनुसार भले ही क्लब को लीज पर जमीन दी गई हो लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में लीज के कोई भी दस्तावेज नहीं है. क्लब के अध्यक्ष रवीन्द्र खंडेलवाल और सचिन खंडेलवाल ने 7177.7 वर्ग मीटर की जमीन उनके नाम से घोषित करने के लिए दिवानी दावा पेश किया था.

    इस सम्पत्ति को लेकर किसी भी तरह के आदेश नहीं देने के आदेश राज्य सरकार, भूमि लेखा विभाग के जिला अधीक्षक, उप अधीक्षक को देने का अनुरोध दावे में किया था. इस दिवानी दावे के साथ ब्रिटिश सरकार द्वारा आवंटित लीज के दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए जा सके. अस्थायी रूप से राहत देने से इनकार कर 29 मार्च 2019 को दिवानी न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश में इसका उल्लेख भी किया गया.

    किसी के नाम नहीं हो सकती सरकारी जमीन 

    अधि. मंडलेकर ने कहा कि सरकारी जमीन जो मित्र समाज क्लब को आवंटित की गई है, नियमों के अनुसार उसे अध्यक्ष के नाम नहीं किया जा सकता है. यहां तक कि क्लब की वैधानिकता भी उजागर नहीं हुई है जिससे यह जमीन किसी व्यक्ति या क्लब को आवंटित होने पर ही प्रश्नचिन्ह है. क्लब के पास कोई कानूनी अधिकार नहीं होने के कारण ही संभवत: अध्यक्ष की ओर से पहली बार 2 जून 2020 को सोसाइटी रजिस्ट्रर के पास क्लब के रजिस्ट्रेशन के लिए अनुरोध किया गया था. यहां तक कि केवल 16 दिनों के भीतर ही सर्टिफिकेट आफ रजिस्ट्रेशन भी दिया गया. याचिकाकर्ता की ओर से सम्पूर्ण मामले की न्यायिक जांच सेवानिवृत्त न्यायाधीश के माध्यम से कराने के आदेश देने का अनुरोध भी किया गया. सुनवाई के बाद अदालत ने उक्त आदेश जारी किए.