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    नागपुर. घोगली-बेसा रोड पर एक स्कूल वैन अनियंत्रित होकर नाले के पानी में जा गिरी. संयोग से वैन पलटी नहीं वरना हादसा बहुत भयानक हो सकता था. इस हादसे में 2 छात्र जख्मी हो गए, जबकि 14 को सकुशल बाहर निकाल लिया गया. जख्मी छात्रों में जयवंतनगर निवासी देवांश माणिक लांजेवार (14) और लावण्या अजय पोपरे (13) का समावेश है. पुलिस ने वैन के चालक ज्ञानेश्वरनगर निवासी प्रकाश मूर्तिकर (51) को हिरासत में ले लिया. स्कूल वैन में देवांश और लावण्या सहित 16 विद्यार्थी सवार थे.

    सभी घोघली स्थित पोद्दार इंटरनेशनल स्कूल के छात्र हैं. सोमवार को तेज बारिश के चलते स्कूल परिसर में पानी भर गया था और छात्र भी देरी से पहुंच रहे थे. इसीलिए स्कूल प्रशासन ने छुट्टी दे दी. प्रकाश बच्चों को लेकर वापस लौट रहा था. घोघली परिसर में स्थित नाले के पहले उसकी गाड़ी के स्टेयरिंग में गड़बड़ी आ गई.

    वैन अनियंत्रित होकर रास्ते से उतर गई और पानी में जा फंसी. पास ही स्थानीय लोग खड़े थे. तुरंत सभी मदद के लिए दौड़ गए. वैन का पिछला कांच फोड़कर सभी विद्यार्थियों को बाहर निकाला गया. अन्य 14 ठीक थे लेकिन देवांश और लाव‍ण्या को चोट लगी थी. तुरंत दोनों को निजी अस्पताल रवाना किया गया.

    खबर मिलते ही बेलतरोड़ी और हुड़केश्वर पुलिस मौके पर पहुंची. प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक वैन चालक प्रकाश बैलेंस बनाए रखने के लिए अपनी सीट पर ही बैठा रहा. यदि वह उतर जाता तो शायद वैन पानी में पलट जाती. सबसे आखिरी में उसे  वैन से बाहर निकला. इस घटना से न केवल पालकगण बल्कि स्कूल प्रशासन भी सकते में आ गया. क्रेन के जरिए वैन को बाहर निकाला गया. प्रकाश का कहना है कि गाड़ी की स्टेयरिंग फ्री हो गई थी और उसके कंट्रोल में नहीं थी. इसी वजह से यह हादसा हुआ. 

    कोई ध्यान देने वाला नहीं

    इस घटना से प्रशासन की लापरवाही की पोल खुल गई है. प्राइवेट स्कूल वैन में बच्चों को ठूंसा जाता है. एक वैन में 16 बच्चे सवार थे. लेकिन निगरानी रखने वाला कोई नहीं है. स्कूल वैन और बस चालक क्षमता से अधिक बच्चों को बैठाते हैं. लेकिन पुलिस ध्यान नहीं देती. सबसे महत्वपूर्ण बात तो ये है कि जिन वाहनों को चालकों ने स्कूल वैन बनाया है उनके पास सही में परमिट है भी या नहीं. स्कूल वैन में फायर एक्सटिंग्विशर होना जरूरी है. बैठक की सही व्यवस्था होनी चाहिए. ज्यादातर स्कूल वैन चालकों ने क्षमता से अधिक छात्र बैठाने के लिए अलग से सीट लगवाई है लेकिन आश्चर्य की बात ये है कि कोई कार्रवाई नहीं करता. 

    पालकों की भी जिम्मेदारी 

    ऐसे हादसों के लिए केवल स्कूल वैन संचालकों को जिम्मेदार ठहराना सही नहीं है. यह तो पालकों की भी जिम्मेदारी है कि अपना बच्चा वैन में कैसे जाता है इसकी जांच करें. स्कूल वैन चालक वाहन कैसे चलाता है. बच्चों को कैसे बैठाता है. इस पर पालक ध्यान नहीं देते. कुछ स्कूलों में प्राइवेट वैन चालकों का वेरिफिकेशन करवाना अनिवार्य है लेकिन अधिकांश लोग इस पर ध्यान नहीं देते. प्राइवेट स्कूल वैन लगाने की मुख्य वजह सस्ता किराया है. स्कूल द्वारा दी जाने वाली बस सेवा का शुल्क इतना ज्यादा है कि लोग प्राइवेट वैन में बच्चों को स्कूल भेजते हैं. यह उनकी मजबूरी भी है. 

    घर तक नहीं पहुंचातीं स्कूल की बसें 

    स्कूल की निजी बसों से ज्यादा संख्या प्राइवेट स्कूल वैन की है. इसका मुख्य कारण ये है कि स्कूल की बसें बच्चों को घर तक नहीं पहुंचातीं. घर से दूर केवल मुख्य मार्गों पर पिकअप और ड्राप प्वाइंट तय किया जाता है. कामकाजी दंपति बच्चों को पिकअप के समय तो पहुंचा सकते है लेकिन उन्हें लेने कौन जाएगा? यह बड़ा सवाल होता है. उस पर भी मोटी फीस वसूली जा रही है. कुछ स्कूल तो 7 किमी की दूरी के लिए 28,000 रुपये सालाना लेते हैं, जबकि इतनी ही दूरी के लिए प्राइवेट वैन चालक मात्र 20,000 रुपये लेते हैं. स्कूल प्रबंधन का कहना है कि आरटीओ के नियमों के तहत रिहायशी इलाकों की छोटी सड़कों पर बस नहीं ले जा सकते.