Wheat- Crop

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    आसेगांव. गेंहू के दामों में बढ़ोत्तरी होने से तथा राशन कार्डो के माध्यम से गेंहू वितरण का कोटा कम हो जाने के कारण गरीब परिवार को गेहूं की रोटी खाने से अब मुंह में चटके लगने का अहसास होने लगा है. गेहूं के सार्वजनिक दाम लगभग गत वर्ष की तुलना में इस वर्ष दस रुपए से भी अधिक बढ़ने का मामला सामने आया है. किराना दूकानों पर तो खुले गेहूं की कीमत 30 रुपए प्रति किलो के ऊपर पहुंच गई है. इस के अलावा गरीब लोग मजदूरी कर गेहूं को खरीदकर उसे खाने में भी हिचकिचा रहे है. 

    ग्रामीण इलाकों में रबी मौसम के दौरान गेहूं उपज में बढ़ोत्तरी होने से गेंहू के दाम समान्य दर के अनुसार रहा करते थे. परंतु बीते वर्ष किसानों ने गेहूं फसल को प्राथमिकता देने की बजाए अन्य उपज को प्राथमिकता दी. जिस कारण गेहूं उपज आधे से भी कम रही इस के अलावा बेमौसम बारिश ने भी किसानों की गेहूं फसल को हानि पहुंचाई थी.

    ऐसे अनेकों कारणों के चलते उपज कम रह गई. जिन किसानों ने उपज ली थीं उन किसानो ने उपज मंडियो में फसल बेचकर अपना काम किया लेकिन अब गेहूं का शॉर्टेज समान्य लोगो के निवाले का चटका बना हुआ है. 300 रुपए प्रति डे मजदूरी कमाने वाले गरीब के लिए गेहूं को खरीद कर खाना बेहद चुनौती बन गया. इतना ही नहीं जिन कार्ड धारकों को राशन दूकानों से चावल से अधिक गेहूं प्राप्त होता था अब उन्हें भी सरकर द्वारा गेहूं का कोटा कम कर दिया गया है. 

    पूर्व में एक लाभार्थी को राशन दूकानों के माध्यम से 3 किलो गेहूं, 2 किलो चावल वितरित किए जाते थे. अब इस के उल्टा कार्य शुरू हुआ है. अब कार्ड धारक एक लाभार्थी को 2 किलो गेहूं, 3 किलो चावल प्रति माह वितरित किए जा रहे है. सरकार जितना भी चाहे जन कल्याण के नाम से वितरित अनाज की गवाही देकर अपनी इमेज जनता के सामने बढ़ाने की कोशिश कर लें लेकिन जो पीड़ा वर्तमान में गरीबी को रोटी खाने के लिए हो रही है. उसने सभी को सरकार के प्रति रोषित करने का कार्य किया है. राशन दूकानों में चावल कोटा कम कर गेहूं कोटा बढ़ाए जाने की मांग जोर पकड़ने लगीं है.

    कैसे खरीदी कर खाए गेहूं की रोटी 

    समान्य परिवार से जुड़े एक दिहाड़ी मजदूर ने अपनी व्यथा सुनाते हुए बताया कि गांव में कामकाज का अभाव है, मजदूरी के लिए निजी ठेकेदारों के चक्कर काटने पड़ते है, मजदूरी के पैसे सप्ताह में एक बार मिलते है, ऐसे में परिवार के पालन पोषण हेतु 10 किलो गेहूं का एक सप्ताह में उठाव होता. बाजार से सब्जियां खरीदकर लाने में पैसे खर्च होते है. सप्ताह का पहला दिवस आने तक किसी तरह से 100 रु. बैंक बैलेंस भी जमा नहीं हो पाता है. अब करें क्या सब कुछ समझ से परे है. इस तरह की बात एक व्यक्ति ने बताते हुए अपनी व्यथा सुनाई और सरकार को सभी के लिए जिम्मेदार ठहराया.