Water did not reach the tribals of Karnataka
कर्नाटक के आदिवासियों तक नहीं पहुंचा पानी (सौजन्य: सोशल मीडिया)

कर्नाटक के नागरहोल के जंगलों में बेस आदिवासियों के परिवार बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। यहां चुनाव से पहले वोट नेताओं ने आधे अधूरे काम कर इन्हें बस वोट के लिए फुसला रखा है।

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बेंगलुरु: कर्नाटक (Karnataka) में नागरहोल के जंगलों में जेनू कुरुबा (Jenu Kuruba Tribe) जनजाति के करीब 60 परिवारों की बस्ती नागरहोल गड्डे हाडी में एक छोटे-से कमरे में बैठकर करीब पांच से छह घंटों तक पढ़ाई करना ही बच्चों के लिए सबकुछ नहीं है लेकिन बस्ती में एक नयी आंगनवाड़ी (Anganwadi) में बैठे तीन से 10 वर्ष की आयु के करीब सात बच्चों की खुशी जाहिर है। बच्चे जानते हैं कि यह ऐसी सुविधा है जो उनसे पहले किसी को नहीं मिली। यह आंगनवाड़ी वन्य बस्ती में बनी इकलौती पक्की संरचना है। आंगनवाड़ी कार्यकर्जा जे के भाग्या ने बताया कि 12 फुट लंबा और 12 फुट चौड़ा यह कमरा कई वर्षों की खुशामद के बाद संभवत:चुनाव नजदीक आने के कारण पिछले साल जुलाई में बना था। उन्होंने बांस की एक संरचना दिखाते हुए कहा, ‘‘हमें शौचालय भी मिल गया है। इससे पहले हम खुले में काम कर रहे थे।”

यह बस्ती वर्षों से कई बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रही है और चुनाव के नजदीक आते ही राजनीतिक दलों के नेता यहां के मतदाताओं को आधे-अधूरे प्रलोभनों के जरिये फुसलाने की कोशिश करते हैं। इस बस्ती के प्रमुख जे के थिम्मा ने बताया कि जेनू कुरुबा समुदाय दशकों से मूलभूत सुविधाओं जैसे कि भूमि अधिकार, पानी तथा बिजली तक पहुंच के लिए सरकार से लड़ रहा है। थिम्मा ‘नागरहोल बुडाकट्टू जम्मा पाली हक्कुस्थापना समिति’ के भी अध्यक्ष है जिसके बैनर तले यह समुदाय अक्सर अपने बुनियादी अधिकारों की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन करता है। नागरहोल बाघ अभयारण्य की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, यह वन 45 आदिवासी बस्तियों या जेनू कुरुबा, बेट्टा कुरुबा, येरावास और सोलिगा समुदायों के 1,703 परिवारों का घर है। इसमें कहा गया है कि वन में रह रहे आदिवासियों के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने कई कल्याणकारी योजनाएं बनायी हैं।

हालांकि, थिम्मा का कुछ और ही कहना है। उन्होंने कहा, ‘‘वर्षों तक, उन्होंने हमें कुछ भी न देकर इन जंगलों से निकालने की कोशिश की है। इतने वर्षों में, हम यह सीख गए हैं कि कागज पर कई कल्याणकारी योजनाएं हैं लेकिन इनका लाभ बमुश्किल ही हम तक पहुंचता है। हमारे साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय से निपटने के लिए 2006 में वन अधिकार कानून पारित किया गया।”थिम्मा ने कहा, ‘‘हमने 2009 में इसके प्रावधानों के अनुसार, अपने आवेदन जमा कराए थे लेकिन हम अब भी इंतजार कर रहे हैं। जिन लोगों को इन योजनाओं को लागू करने के लिए नौकरी पर रखा गया है उन्हें वक्त पर अपना वेतन मिल जाता है लेकिन हमें बमुश्किल ही ये लाभ मिल पाते हैं।”

अब लोकसभा चुनाव से पहले जल जीवन मिशन के तहत छह महीने पहले प्रत्येक घर को नल कनेक्शन दिया गया और ज्यादातर को पीएम जनमन के तहत 400 वर्ग फुट पक्का मकान की स्वीकृति दी गयी है। जे एस रामकृष्ण (43) ने कहा, ‘‘लेकिन अभी तक नल में पानी नहीं आ रहा है। मुझे उम्मीद है कि हमें अगले चुनाव तक पानी मिल जाएगा।” नागरहोल से करीब 70 किलोमीटर दूर एक छोटे से शहर इरुमद में रहने वाले लोगों के लिए स्थिति अलग नहीं है। यहां रहने वाले कुरुम्बा ने हड्डी जोड़ने के अपने पारंपरिक कौशल के कारण स्थानीय लोगों और आसपास के शहरों में प्रसिद्धि हासिल की है।

कुरुम्बा की एक बस्ती ‘कुडी’ में चुनाव का जिक्र आते ही आदिवासी हंसी उड़ाते हैं। हालांकि, वे जानते हैं कि यही वह समय है जब उन्हें अपनी मांगों पर सबसे ज्यादा जोर देना है। पिछले कुछ वर्षों में चुनाव के समय अपनी मांगों को उठाने वाले इरुमद को पानी और बिजली तथा पक्का मकान मिल गया है। कर्नाटक में 26 सीटों पर लोकसभा चुनाव दो चरणों में 26 अप्रैल और सात मई को होगा।

(एजेंसी)