File Photo - Social Media
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    -राजेश मिश्र

    लखनऊ : नेपाल (Nepal) के जंगलों (Forests) से निकल कर हाथी (Elephants) बड़े पैमाने पर उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में तराई इलाके में डेरा डालने लगे हैं। भरपूर खाने-पानी की मौजूदगी में यूपी के जंगलों में आ गए हाथी अब वापस नहीं जा रहे हैं। बीते दो सालों में बड़ी तादाद में बहराइच और लखीमपुर की सीमा से सटे नेपाल के जंगलों से हाथी उत्तर प्रदेश में आ गए हैं। नेपाल से आए हाथियों का झुंड तराई इलाके में फसलों को नुकसान पहुंच रहे हैं। 

    किसानों ने ड्रम बजाकर हाथियों को जंगल की ओर खदेड़ा

    बीते शुक्रवार को ही हाथियों के एक बड़े समूह ने बहराइच जिले में कतरनियाघाट टाइगर रिजर्व में निशानगाड़ा रेंज के गांवों में गन्ने की 52 बीघे के लगभग फसल को रौंद डाला है। जंगली हाथियों के झुंड ने रमपुरवा गांव के किसानों का 52 बीघे गन्ने की फसल को रौंद कर बर्बाद कर दिया। किसानों ने ड्रम बजाकर हाथियों को जंगल की ओर खदेड़ा। किसानों का आरोप है कि सूचना देने पर भी वन विभाग के कर्मचारी इन इलाकों में कांबिंग करने नहीं आते हैं, इससे उनकी मेहनत की फसल चौपट हो रही है। 

    फसलों को नुकसान पहुंचा रहे है 

    इससे पहले लखीमपुर के दुधवा नेशनल पार्क से सटे गांवों और पीलीभीत टाइगर रिजर्व के करीब के इलाकों में जंगली हाथी बड़े पैमाने पर फसलों को नुकसान पहुंचा चुके हैं। किसानों का कहना है कि जंगली हाथियों के आवागमन से गन्ने की फसल खत्म हो रही है वहीं रौंद दिए जाने के बाद धान की ताजा फसल भी बरबाद हो जा रही है। 

    हाथियों ने यहां बनाया अपना ठिकाना

    कतरानियाघाट में नेपाल के जंगली हाथियों के आने का सिलसिला एक दशक से चल रहा है। अधिकारियों का कहना है, कि पहले पड़ोसी देश नेपाल के रायल चितवन नेशनल पार्क से हाथी इधर आ जाते थे और फिर वापस चले जाते थे। इधर कुछ समय से हाथियों ने यहीं अपना ठिकाना बना लिया है। कतरानियाघट रिजर्व फारेस्ट से सटे दुधवा नेशनल पार्क में तो हाथियों की बड़ी तादाद जमा हो गयी है। दुधवा नेशनल पार्क के हाथियों ने अपनी पहुंच अब पीलीभीत के जंगलों में बनानी शुरु कर दी है। 

    गन्ना और धान की फसल खाने के लिए उपलब्ध 

    विशेषज्ञों का कहना है कि तराई इलाकों में हाथियों को खाने के लिए गन्ना और धान की फसल मिल जाती है। पीलीभीत में हाल में देखा गया हाथियों का उत्पात गन्ने की फसल के चलते था। इसके अलावा नेपाल के जंगलों में पहले माओवादियों और अब स्थानीय लोगों को शिकार और आवाजाही बढ़ने से भी हाथियों को उत्तर प्रदेश के तराई इलाके के जंगल रास आने लगे हैं। 

    जंगली हाथियों को आवाजाही से लेकर खानपान के लिए तराई के जंगलों में अनुकूल माहौल मिलता है। यहां गेरुआ और शारदा नदी में साल भर पानी की उपलब्धता भी रहती है जो हाथियों को स्थाई तौर पर रुकने में मदद कर रही है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक इस समय अकेले कतरानियाघाट के पांच वन क्षेत्रों में निशानगाड़ा, मूर्तिहवा, बिछिया में दो दर्जन जंगली हाथी हैं। वहीं दुधवा और पीलीभीत के जंगलों में इनकी तादाद काफी बढ़ चुकी है। इतना ही नहीं दुधवा के हाथी तो आबादी के इलाकों की ओर भी रुख करने लगे हैं।