Patricia Eriksson

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नई दिल्ली: हिंदू महाकाव्य रामायण (Ramayan) में एक बड़ी बात कही गई है कि, ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी’ इस माने हुए कि”मित्र, धन्य, धान्य आदि का संसार में बहुत अधिक सम्मान है। (किन्तु) माता और मातृभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर है।”, इससे साफ़ जाहिर है कि, दुनिया में माँ से बढ़कर कुछ भी नहीं। हम माँ के आँचल के लिए उम्र भर खुद को किस्मतवाली मानते हैं और उसके चले जाने पर अकेले हो जाते हैं। फिर सोचिये ऐसे शख्स के बारे में जिसने पैदा होने के बाद से ही अपनी मां को देखा न हो, और जो अब उसकी तलाश में 7 समंदर को पार करके आया हो।

बात हो रही 41 साल की पेट्रीसिया एरिकसन की, जो स्वीडन से भारत आई हैं, फिलहाल वे महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर में है। दरअसल वे अपनी अपनी मां को तलाश रही हैं, जो बिन ब्याही मां बनी थीं और फिर उन्होंने अपनी बेटी को एक अनाथालय में छोड़ दिया था। उस बच्ची को बाद में स्वीडन के एक परिवार ने गोद लिया था और अब 40 साल बाद वह अपनी मां को ढूंढने के लिए भारत आई है। उसका कहना है कि वह अपनी मां से मिले बिना नहीं जाएगी।

पेट्रीसिया एरिकसन ने बताया कि फरवरी 1983 में उसका जन्म हुआ था, लेकिन अविवाहित मां बनी उसकी मां ने उसे एक अनाथ आश्रम में छोड़ दिया। जब वह एक साल की थी तो एक स्वीडिश परिवार ने उसे गोद लिया और वह स्वीडन चली गई। जब उसे पता चला कि उसकी बॉयोलॉजिकल मदर इंडिया में है तो वह उन्हें तलाशने आ भारत और फिर नागपुर आ गई।

वह नागपुर के उस अनाथ आश्रम में भी गई, जहां उसे छोड़ा गया था, लेकिन वहां उनके बारे में कोई जानकारी नहीं थी। उसने भारतीय नियमों के अनुसार, जहां-जहां बच्चों और उनके माता-पिता का रिकॉर्ड हो सकता है, सब जगह तलाश कर लिया, लेकिन मां का सुराग नहीं लगा। आंगनबाड़ियों, स्कूलों, पुलिस स्टेशनों और नागपुर के ‘शांतिनगर’ के पुराने इलाकों का दौरा भी कर लिया, लेकिन उसकी मां ‘शांता’ नहीं मिली।

पेट्रीसिया यह भी बताती है कि उसे सिर्फ अपनी मां का नाम ‘शांता’ ही पता है, बीते सोमवार को वह उनकी तलाश में नागपुर के रेड-लाइट एरिया में भी गई, लेकिन वहां भी शांता नाम की महिला नहीं मिली। पेट्रीसिया कहती हैं कि वे खुद 3 बेटों की मां हैं और मां होना क्या होता है, वह समझ सकती हैं। मैं यहां किसी को जज करने के लिए नहीं आई हूं। अपने स्वीडिश माता-पिता की दिल से आभारी हूं, उन्होंने मेरी अच्छी परवरिश की।

इस बाबत पेट्रीसिया की वकील और मददगार अंजलि पवार कहती हैं, “हम पेट्रीसिया को उसकी खोज में मदद कर रहे हैं। जो कोई भी 1983 में शांतिनगर में रहता था और उसे जानता है या शांता और रामदास के बारे में जानता है, हम उनसे अपील करते हैं कि वे आगे आएं और हमारी मदद करें। पेट्रीसिया एक बार बस अपनी मां से मिलना चाहती है।” खुद पेट्रीसिया भी इस बाबत कहती हैं कि, “प्लीज कोई मुझे मेरी मां का पता दे, उनसे एक बार मिला दे। मुझे उन्हें गले लगाना है। उनके सीने से लगकर चैन की नींद सोना चाहती हूं। मुझे उनसे कोई गिला शिकवा नहीं।”