Birthday Specialऐसा रहा धीरुभाई अंबानी का पकोड़े बेचने से रिलायंस तक का सफ़र, मैन ऑफ 20th सेंचुरी से हैं सम्मानित
अक्सर ऐसा ही समझा जाता है कि जो खानदानी अमीर है वो ही जिंदगी भर अमीर बना रहता है, लेकिन इस बात को गलत साबित किया है धीरूभाई अंबानी (Dhirubhai Ambani) ने. उन्होंने कड़ी मेहनत करके अपना कारोबार जमाया. उनकी इस लगन और मेहनत का आज भी देश सराहना करता है. तो आइए उनके जन्मदिन पर जानते हैं उनके बारे में कुछ बातें…
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धीरूभाई अंबानी का जन्म 28 दिसंबर 1932 को हुआ था. उनका बचपन बेहद ही गरीबी में गुज़रा था.
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अपना घर चलाने के लिए वह फल और नाश्ता बेचा करते थे. बाद में गांव के पास एक धार्मिक स्थल पर उन्होंने पकौड़े बेचने का काम शुरू किया. लेकिन इस काम का मुनाफा पर्यटकों पर निर्भर करता था. जिसके चलते साल के कुछ ही महीने उन्हें फायदा हुआ करता था.
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इस काम में मुनाफा नहीं होने की वजह से उन्होंने नौकरी शुरू कर दी. उन्होंने अपनी पहली नौकरी यमन में की थी. वहां उन्हें 300 रुपये प्रति माह के वेतन पर पेट्रोल पंप पर काम मिला था. अपनी मेहनत के दम पर 2 साल में धीरुभाई वहां के मैनेजर बन गए थे. लेकिन फिर भी वह नौकरी नहीं करना चाहते थे.
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धीरुभाई अंबानी का सपना था कि वह खुद का अपना कारोबार खड़ा करें. उनका जूनून इतना था कि जब वह एक कंपनी में काम कर रहे थे, तो वहां के कर्मियों को 25 पैसे में चाय मिला करती थी. पर वह फिर भी पास के एक दुकान में जाया करते थे, जहाँ चाय 1 रुपये की थी. उनका कहना था कि वहां बड़े-बड़े कारोबारी आते हैं और उनकी बातें सुनकर बहुत कुछ सिखने मिलता है.
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धीरुभाई अंबानी को यमन की आज़ादी के समय चल रहे आन्दोलन की वजह से 1950 के दशक में भारत वापस लौटना पड़ा था. भारत आकर उन्होंने चम्पकलाल दमानी के साथ मिलकर पॉलिएस्टर धागे और मसालों के आयात-निर्यात का कारोबार शुरू किया. इस कंपनी का नाम रिलायंस कमर्शियल कार्पोरेशन था.
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यहीं से रिलायंस का जन्म हुआ था. लेकिन यह साझेदारी ज़्यादा दिन तक नहीं चल पाई. फिर धीरुभाई ने सूत के व्यापार में काम शुरू किया. जहाँ उन्हें कपड़ा कारोबारी की अच्छी समझ हो गयी. बाद में उन्होंने 1966 में अहमदाबाद के नैरोड़ा में एक कपड़ा मिल शुरू किया. वहां के बने कपड़े को वह विमल ब्रांड के नाम से बेचा करते थे.
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धीरुभाई अंबानी ने 1977 में रिलायंस ने आईपीओ (IPO) जारी किया. जिसमें 58,000 से अधिक निवेशकों ने रिलायंस में निवेश किया. यहीं से धीरुभाई और रिलायंस ने सफलता पाई. जहाँ उनके और निवेशकों के पैसे बढ़ते ही चले गए.
रिलायंस का नाम आज इतना ऊँचा है कि यह देश का सबसे बड़ा कारोबार माना जाता है. साथ ही यह विदेशों में भी जाना माना नाम है. विदेशों में भी इस कंपनी का काम चलता है. इस कंपनी को खड़ा करने में धीरुभाई ने बहुत मेहनत की थी.
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धीरुभाई को वर्ष 1998 में पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय द्वारा ‘डीन मैडल’ का पुरुष्कार दिया गया था. साल 1999 में इंडिया-बिज़नेस मैन ऑफ द ईयर से सम्मानित किया गया. वहीं उन्हें भारत में केमिकल उद्योग के विकास में अपना योगदान देने के लिए ‘केमटेक फाउंडेशन एंड केमिकल इंजीनियरिंग वर्ल्ड’ द्वारा ‘मैन ऑफ़ द सेंचुरी’ घोषित किया गया था. इसके अलावा वर्ष 2000 में उन्हें ‘मैन ऑफ 20th सेंचुरी’ भी कहा गया था.
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धीरूभाई का निधन दिल का दौरा पड़ने की वजह से हुआ था. उन्हें मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में 24 जून, 2002 को भर्ती कराया गया था, जहाँ उन्होंने 6 जुलाई 2002 को अंतिम सांसे ली.
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