विपक्ष की एकजुटता कितनी संभव

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    केंद्र की मजबूत मोदी सरकार और देश में बीजेपी के निरंतर बढ़ते प्रभाव को देखते हुए अब विपक्ष एकजुटता की आवश्यकता महसूस कर रहा है. केंद्र में सत्ता हासिल करने की लालसा के अलावा जांच एजेंसियों के दबाव से बचने के लिए भी विपक्षी नेता ऐसा गठबंधन बनाना चाहते हैं जो बीजेपी को चुनौती देने में सक्षम हो. यदि विपक्षी नेताओं का व्यक्तिगत अहं आड़े आया तो उनके आपसी तालमेल में कठिनाइयां आ सकती हैं लेकिन यदि उनकी नरम, उदार और सहयोगात्मक भूमिका रही तो वे साथ आ सकते हैं. 

    इतना तो सभी के ध्यान में आ गया है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता. 2024 के आम चुनाव में बीजेपी से टक्कर लेनी है तो विपक्षी पार्टियों को परस्पर तालमेल का समीकरण बनाना ही होगा. वे चाहें तो सम्मिलित उद्देश्यों के आधार पर न्यूनतम समान कार्यक्रम लेकर एक मंच पर आ सकती हैं.

    प्रश्न यह भी उठता है कि विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व कौन करेगा? एनसीपी मानती है कि वर्तमान राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में शरद पवार ही एकमात्र नेता हैं जो सभी क्षेत्रीय दलों को एक साथ लाकर बीजेपी के खिलाफ राष्ट्रीय महागठबंधन बना सकते हैं. एनसीपी की युवा इकाई राष्ट्रवादी युवा कांग्रेस की कार्यकारिणी की बैठक में शरद पवार को यूपीए का अध्यक्ष बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई. 

    इस बैठक में पवार मौजूद थे. इससे जाहिर है कि इस जिम्मेदारी के लिए उनकी सहमति है. यह भी कहा जा रहा है कि अगर पवार यूपीए के अध्यक्ष नहीं बनते हैं तो इसमें टीएमसी और टीआरएस जैसे प्रभावी क्षेत्रीय दल शामिल नहीं होंगे.

    ममता की अपील

    टीएमसी प्रमुख व बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सभी विपक्षी दलों के नेताओं और गैर बीजेपी मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर कहा कि बीजेपी के खिलाफ लड़ाई में सभी को एकजुट होना होगा. लोकतांत्रिक दलों को आगे आना चाहिए. ममता ने पत्र में लिखा कि देश में द्वेष व बदले की राजनीति जारी है. ईडी, सीबीआई, आईबी, इनकम टैक्स जैसी एजेंसियों का राजनीतिक कारणों में उपयोग हो रहा है. 

    ममता का पत्र पवार को भी मिला है. इसके बाद दिल्ली या मुंबई में शीघ्र ही बैठक लेने की बात पवार ने कही. पवार, ममता और के.चंद्रशेखर राव मिलकर विपक्षी एकता की शुरुआत कर सकते हैं लेकिन यह भी देखना होगा कि बीजद नेता व ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का क्या रुख रहता है. उन्हें डीएमके नेता व तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन को भी साथ लेना पड़ेगा.

    रास्ता आसान नहीं

    विपक्ष का गठबंधन कांग्रेस के साथ आए बगैर सफल नहीं हो सकता. कांग्रेस की राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकारें हैं और महाराष्ट्र व झारखंड की सरकारों में वह शामिल है. इसके अलावा उसके हजारों विधायक भी हैं. क्या कांग्रेस यूपीए का नेतृत्व किसी अन्य नेता को देना चाहेगी? क्या सोनिया, राहुल इतिहास को दोहराते हुए बाहरी समर्थन देकर गैर बीजेपी सरकार बनवाना चाहेंगे? कांग्रेस ने पहले भी चरण सिंह, चंद्रशेखर, देवगौड़ा व गुजराल की सरकारों को बाहर से समर्थन दिया था. 

    इसके अलावा ‘आप’ के संयोजक व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की महत्वाकांक्षा भी जगजाहिर है. पंजाब में ‘आप’ सरकार बन जाने के बाद केजरीवाल का जोश और बढ़ गया है. वे भी 2024 के आम चुनाव में मोदी को टक्कर देने का मनसूबा बना सकते हैं. क्या वे पवार की अगुवाई स्वीकार करना पसंद करेंगे? उनका तर्क हो सकता है कि ममता बंगाल और पवार महाराष्ट्र तक सीमित हैं, जबकि आप की दिल्ली व पंजाब में 2 जगह सरकारें हैं.