Ignoring the border villages of Maharashtra, ready to go to the neighboring states

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    जब महाराष्ट्र सरकार पड़ोसी राज्य की सीमा से सटे अपने गांवों की विकास के मामले में सरासर अनदेखी करे और मूलभूत सुविधाएं तक मुहैया न कराए तो ऐसी हालत में ये गांव महाराष्ट्र से नाता तोड़ने का मन बना लेते हैं. यदि राज्य को एकजुट और संगठित रखना है तो कुछ क्षेत्रों के सौतेला व्यवहार करने की स्वार्थपूर्ण मानसिकता छोड़नी होगी. महाराष्ट्र में न जाने क्यों विकास की गंगा सिर्फ बारामती, नाशिक व पुणे में बहाई जाती है. राजधानी मुंबई की चमक-दमक को बरकरार रखा जाता है. सीमावर्ती गांव इस भेदभाव को प्रत्यक्ष रोशनी से वंचित रखा जाता है.

    सीमावर्ती गांव इस भेदभाव को प्रत्यक्ष महसूस करते हैं. उन्हें नजर आता है कि पड़ोसी राज्य का लगा हुआ गांव सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य सेवा और संचार के मामले में अच्छी स्थिति में है लेकिन महाराष्ट्र के बार्डर वाले गांव में विकास का नामोनिशान भी नहीं है. इससे जनता का दिल जलता है कि हमने कौन सा कसूर किया कि आजादी के 75 वर्ष बाद भी गांवों को पिछड़ा रखा गया. महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा से सटे क्षेत्र के कुछ ग्रामीणों ने महाराष्ट्र के अपने गांवों को कर्नाटक में मिलाने की मांग की थी. इसके बाद अब नाशिक जिले के गुजरात बार्डर से लगे गांवों में भी यही आवाज उठाई जा रही है. नाशिक जिले के सुरगना तालुका के कुछ गांवों ने गुजरात के साथ अपने विलय की मांग की है.

    एनसीसी तालुका अध्यक्ष चिंतामन गावित ने सुरगना के तहसीलदार को एक लिखित बयान दिया जिसमें कहा गया कि स्वाधीनता के 75 वर्ष बाद भी तालुका के कई गांव आधारभूत सुविधाओं से वंचित हैं. यदि इन गांवों का विकास नहीं किया जाता तो इन सभी गांवों को गुजरात में विलय कर दिया जाना चाहिए. दोनों राज्यों के सीमावर्ती गांवों में उपलब्ध सुख-सुविधाओं और विकास कार्यों में जमीन-आसमान का अंतर है. सुरगुना गांव की सड़कें बहुत खराब हालत में हैं.

    महाराष्ट्र सरकार और प्रशासन को सीमावर्ती गांवों का दुखदर्द समझना और उनके विकास को अग्रक्रम देना होगा. यदि सीमावर्ती गांवों की जनता ने कर्नाटक, गुजरात, तेलंगाना या छत्तीसगढ़ में शामिल होना तय कर लिया तो यह महाराष्ट्र के लिए अत्यंत चिंताजनक होगा. गड़चिरोली जिले के 12 गांव तो महाराष्ट्र और तेलंगाना दोनों राज्यों की सुविधा का लाभ उठा रहे हैं और दोनों राज्यों की मतदाता सूची में उनका नाम है. क्या महाराष्ट्र सरकार को यह स्थिति स्वीकार्य है? अपने राज्य की एकता-अखंडता बनाए रखना सरकार का कतव्यि है परंतु इसे सिर्फ भावनात्मक मुद्दा बनाकर हासिल नहीं किया जा सकता.

    विकास का असंतुलन व्यापक जनअसंतोष सहित अनेक समस्याएं उत्पन्न कर देता है. जब जनता महसूस करती है कि यहां मामूली सी सुविधाओं के लिए भी वर्षों से तरसाया जा रहा है और पड़ोसी राज्य के उसी से लगे गांव में तेजी से विकास किया गया है तो असंतोष का गुबार फूट पड़ता है. उसे लगता है कि यह सारी शरारत जानबूझकर की जा रही है और इस तरह की उपेक्षा और सौतेले बर्ताव के पीछे कोई न कोई राजनीतिक स्वार्थ है.

    महाराष्ट्र सरकार पर कुछ क्षेत्रों की उपेक्षा करने का आरोप लंबे समय से लगता रहा है. विदर्भ, मराठवाडा तथा खानदेश (उत्तर महाराष्ट्र) व कोंकण को पिछड़ा रखकर केवल पश्चिम महाराष्ट्र के अधिकतम विकास को प्राथमिकता दी जाती रही. यही हाल पड़ोसी राज्यों की सीमा से लगे क्षेत्रों का किया गया. संतुलित विकास ही इस समस्या का समाधान है. अब हर हालत में पिछड़े क्षेत्रों के विकास को प्राथमिकता देनी चाहिए अन्यथा जनाक्रोश को रोक पाना मुश्किल होगा.