Nagpur High Court
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नागपुर. हाई कोर्ट ने 28 अप्रैल 2022 को आदेश जारी कर याचिकाकर्ताओं को प्रति माह 75,000 रुपए का भुगतान करने के आदेश राज्य सरकार के शिक्षा विभाग को दिए थे. आदेश के बाद विभाग ने अप्रैल और मई माह में भुगतान तो किया किंतु उसके बाद से भुगतान करना बंद कर दिया. इस तरह से अदालत के आदेश की अवमानना होने के कारण हाई कोर्ट में पुन: याचिका दायर की गई.

याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश विनय जोशी और न्यायाधीश भरत देशपांडे ने राज्य सरकार की जमकर खिंचाई की. अदालत ने आदेश में कहा कि बिना वेतन सेवाएं दे रहे स्पेशल टीचर्स के प्रति राज्य सरकार को संवेदनशीलता रखनी होगी. गत समय भी अदालत ने गलती सुधारने का मौका देकर 12 अक्टूबर 2022 को दिए गए उसके आदेश का पालन करने के सख्त आदेश दिए थे. याचिकाकर्ता की ओर से अधि. आनंद परचुरे ने पैरवी की.

आदेश का पालन कराने कड़ी प्रक्रिया अपनानी पड़ेगी

अदालत की नाराजगी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि गत समय दिए आदेश का पालन ज्यों के त्यों सुनिश्चित कराने के लिए कड़ी प्रक्रिया अपनाने के संकेत दिए. अदालत ने अवमानना के लिए जवाब देने राज्य सरकार के शिक्षा सचिव रणजीत देओल और अंडर सेक्रेटरी संतोष गायकवाड को अदालत में हाजिर रहने के आदेश देते हुए 28 मार्च तक के लिए सुनवाई स्थगित कर दी. अदालत ने आदेश में कहा कि लगातार आदेश देने के बावजूद शिक्षा सचिव और अंडर सेक्रेटरी कानून की प्रक्रिया को तवज्जो नहीं दे रहे हैं जिससे कोर्ट को इस अप्रिय स्थिति का सामना करना पड़ रहा है. 

वेतन नहीं मिलने से शिक्षक ने की आत्महत्या

याचिकाकर्ताओं की ओर से बताया गया कि विकलांगों को शिक्षा देने वाले विशेष शिक्षकों की अलग-अलग समय पर नियुक्तियां की गई थीं. कुछ वर्षों तक सेवाएं करने के बाद अचानक 2015 में इन शिक्षकों की सेवाएं समाप्त कर दी गई थीं. इसी तरह के एक मामले में औरंगाबाद हाई कोर्ट ने सेवाएं समाप्त करने के आदेश को खारिज कर दिया था जिसके आधार पर नागपुर हाई कोर्ट में 13 शिक्षकों ने याचिका दायर की. सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि 4 वर्षों से भुगतान नहीं होने के कारण मानसिक त्रासदी से गुजर रहे हैं. यहां तक कि एक शिक्षक ने आत्महत्या तक कर ली. इसे गंभीरता से लेते हुए अदालत ने याचिकाकर्ताओं को भुगतान करने के आदेश दिए थे जिसका पालन नहीं होने पर अब अवमानना की याचिका दायर की गई.