भए प्रगट कृपाला दीनदयाला, आज अयोध्या में भव्य रामजन्मोत्सव

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भारत की संस्कृति और लोकजीवन में राम चिरंतन हैं। महात्मा गांधी ने भी रामराज्य का स्वप्न देखा था। रामराज्य का अर्थ है प्रजा के हित में सुरक्षित, संपन्न, प्रगतिशील, लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना। ये वही राम हैं जिन्होंने निषाद को गले लगाया और शबरी के जूठे बेर प्रेम से खाए। वे शरणगत वत्सल हैं। रावण ने शिवजी को 10 सिर अर्पित कर जो संपदा पाई वह भगवान राम ने अपनी शरण में आए विभीषण को तुरंत दे दी। सुग्रीव को बाली के भय से मुक्ति दी। राम ने प्रजा को सुखी रखनेवाले राजा का आदर्श स्थापित किया।
 
रामराज्य की कल्पना ही आदर्श लोकतंत्र का अधिष्ठान है। रामराज्य के लिए कहा जाता है- दैहिक, दैविक, भौतिक तापा, रामराज्य में कछु नहीं व्यापा! रामकृपा से सारी व्याधियां, विघ्न-बाधाएं मिट जाती हैं। अखंड ब्रम्हांड नायक होने पर भी राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। उन्होंने आदर्श आज्ञाकारी पुत्र, भाइयों के प्रति स्नेह रखनेवाले न्यायप्रिय प्रजापालक की भूमिका निभाई। उस शक्तिशाली रावण का विनाश किया जो शिव और ब्रम्हा के वरदान से मदमस्त हो गया था तथा जिसे कोई नष्ट नहीं कर पाया था। समाज में आसुरी शक्तियों के विनाश की प्रेरणा राम से ही मिलती है।

साकार हुआ स्वप्न

5 शताब्दियों से कितनी ही पीढि़यां अपने रामलला के लिए व्याकुल रहीं क्योंकि राम जन्मभूमि अयोध्या पर विधर्मी तत्वों का अवैध कब्जा था। यह वही भूमि है जिसकी मुक्ति के लिए सदियों तक संघर्ष होता रहा और असंख्य बलिदान दिए जाते रहे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से राम जन्मभूमि में भव्य राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ और इस दिशा में पहल हुई। गत 22 जनवरी को रामलला की प्रतिमा की प्राणप्रतिष्ठा हुई। यह पहली रामनवमी है जब सदियों के अंतराल के बाद अयोध्या में रामलला अपने भव्य मंदिर में पधार चुके हैं और भक्तों को दर्शन दे रहे हैं।
 यह मंदिर कोटि-कोटि हिंदुओं ही नहीं समस्त भारतवासियों के लिए अपने स्वाभिमान की वापसी है। वही आस्था पुन: प्रस्फुटित हुई है जो सदियों से दबी हुई थी। भारत की लोकात्मा जागृत हो उठी है। यदि ईसाइयों के लिए वेटिकन सिटी है, मुस्लिमों के लिए मक्का मदीना है तो हिंदुओं के लिए भी पावन नगरी अयोध्या है। वास्तुशास्त्र और शिल्प शास्त्र के नियमों के साथ ही गहन आस्था से राम मंदिर निर्मित हुआ है। सगुण साकार भक्ति का महत्व कौन नहीं जानता। भक्तों की आस्था जहां प्रतिरोपित हो जाए वहां देवप्रतिमा अलौकिक कृपा वृष्टि करने लगती है।

आस्था के साथ तकनीक

रुड़की सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने अयोध्या के राम मंदिर में ऐसे उपकरण लगाए हैं जिनकी वजह से 17 अप्रैल को रामनवमी के दिन अभिजीत मुहूर्त में दोपहर 12 बजे से 4 मिनट तक सूर्य की किरणें रामलला के मुखमंडल पर पड़ेंगी। रामलला का यह सूर्य तिलक देखने के लिए लोग उत्सुक हैं क्योंकि भगवान राम सूर्यवंशी हैं वैज्ञानिकों ने मूर्ति के मस्तक पर सूर्यकिरण पड़ने का अचूक स्थान निश्चित किया। इसके लिए प्रतिमा के माथे पर चंदन तिलक लगाया गया और शाल ओढ़ा दी गई। इससे सही अंदाजा लग गया कि उपकरण कैसे फिट किए जाने चाहिए। सूर्याभिषेक के लिए मंदिर के तल मजले पर 2 आईने और एक लेंस लगाया गया।

 तीसरी मंजिल के झरोखे के पास लगाए गए आईने से 3 लेंस और 2 आईनों के माध्यम से सूर्य प्रकाश परावर्तित होकर रामलला के ललाट पर पड़ेगा और मस्तक पर तिलक का आकार बनाएगा। सूर्य प्रकाश 75 मि। मी। की गोलाकृति में पड़ेगी। वैज्ञानिकों ने प्रकाश परावर्तन या लाइट रिफ्लेक्शन के सिद्धांत के लिए अचूक तरीके से नाप-जोख की। भक्तों के लिए यह बड़ा चमत्कार होगा कि मंदिर में सूर्य की किरण सिर्फ रामलला के मुखमंडल पर केंद्रित होगी। अयोध्या धम की पंचकोशी परिक्रमा में 100 एलईडी स्क्रीन पर इस सूर्यतिलक का सीधा प्रसारण करने की व्यवस्था की गई है। इस सूर्यतिलक या किरणोत्सव को देखने के लिए लाखों भक्तों की भीड़ एकत्र होने की संभावना व्यक्त की जा रही है।