Court retains rights of Travancore royalty in administration of Sri Padmanabhaswamy temple

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नई दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने ऐतिहासिक श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर की संपदा और प्रबंधन अपने हाथ में लेने के लिये एक न्यास गठित करने का केरल सरकार को आदेश देने संबंधी उच्च न्यायालय का 2011 का फैसला सोमवार को निरस्त कर दिया। शीर्ष अदालत ने श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रशासन में त्रावणकोर राजघराने के अधिकार बरकरार रखे हैं। श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर को देश के सबसे धनी और प्रसिद्ध मंदिरों में गिना जाता है। न्यायमूर्ति यू यू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अंतरिम उपाय के रूप में मंदिर के मामलों के प्रबंधन वाली प्रशासनिक समिति की अध्यक्षता तिरुवनंतपुरम के जिला न्यायाधीश करेंगे। शीर्ष अदालत ने इस मामले में उच्च न्यायालय के 31 जनवरी, 2011 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया। इस फैसले को चुनौती देने वालों में त्रावणकोर राजघराने के कानूनी प्रतिनिधियों भी शामिल थे।

शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर पिछले साल 10 अप्रैल को सुनवाई पूरी करते हुये कहा था कि इस पर निर्णय बाद में सुनाया जायेगा। इस भव्य मंदिर का पुनर्निर्माण 18वीं सदी में इसके मौजूदा स्वरूप में त्रावणकोर शाही परिवार ने कराया था, जिन्होंने 1947 में भारतीय संघ में विलय से पहले दक्षिणी केरल और उससे लगे तमिलनाडु के कुछ भागों पर शासन किया था। शीर्ष अदालत ने यह फैसला सुनाते हुये कहा कि त्रावणकोर राजपरिवार के पूर्व शासक की मृत्यु हो जाने से राजघराने के अंतिम शासक के भाई मार्तंड वर्मा और उनके कानून वारिसों के सेवायत के अधिकार (पुजारी के रूप में देवता की सेवा करने और मंदिर का प्रबंधन करने का अधिकार) पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि शाही परिवार के अंतिम शासक की मृत्यु राज्य सरकार को समिति के प्रबंधन अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं देती है क्योंकि इस मामले में संपदा राज्य को वापस मिलने संबंधी कानून लागू नहीं होता है और मंदिर का प्रबंधन त्रावणकोर के राज परिवार के न्यास में ही बना रहेगा। मंदिर के मामलों के प्रबंधन के लिए एक अंतरिम व्यवस्था करते हुए न्यायालय ने कहा कि यह नई समिति का गठन होने तक जारी रहेगी और इस समिति के सभी सदस्य हिन्दू होने चाहिए।

इस ऐतिहासिक मंदिर के प्रशासन और प्रबंधन का विवाद कथित वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों के मद्देनजर पिछले नौ वर्षों से शीर्ष अदालत में लंबित था। भारत की आजादी के बाद भी पूर्ववर्ती शाही परिवार के नियंत्रण वाला न्यास ही इस मंदिर का संचालन करता था। गौरतलब है कि उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को मंदिर, उसकी संपत्ति और प्रबंधन पर नियंत्रण रखने और परंपराओं के अनुसार मंदिर को संचालित करने के लिए एक निकाय या ट्रस्ट की स्थापना के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया था। उच्चतम न्यायालय ने 2 मई, 2011 को मंदिर की संपत्ति और प्रबंधन को संभालने के संबंध में उच्च न्यायालय के निर्देश पर रोक लगा दी थी। साथ ही शीर्ष अदालत ने इस मंदिर के तहखानों में रखी कीमती वस्तुओं और आभूषणों आदि का विवरण तैयार करने का निर्देश दिया था। हालांकि, आठ जुलाई, 2011 को न्यायलय ने कहा था कि मंदिर के तहखाने के ‘बी’ द्वार को खोलने की प्रक्रिया उसके अलगे आदेश तक विलंबित रहेगी। न्यायालय ने जुलाई, 2017 को कहा था कि वह इस दावे की जांच करेगा कि मंदिर के तहखाने के एक दरवाजे के भीतर रहस्यात्मक ऊर्जा के साथ अभूतपूर्व खजाना रखा है। हालांकि इस मामले में न्याय मित्र की भूमिका निभाने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमणियम ने न्यायालय से अनुरोध किया था कि तहखाने के इस दरवाजे को भी खोला जाना चाहिए।(एजेंसी)