सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से मराठा आरक्षण को आघात

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    महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का मुद्दा काफी ज्वलंत और भावनात्मक रहा है. आरक्षण की मांग को लेकर मराठा समुदाय ने बहुत बड़े-बड़े और शांतिपूर्ण मोर्चे भी निकाले थे. राजनीति में सक्रिय होने पर भी यह समुदाय आर्थिक, सामाजिक व शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ा है. महाराष्ट्र सरकार ने 16 प्रतिशत मराठा आरक्षण दिया था. तब बाम्बे हाईकोर्ट ने जून 2019 को इस कानून को बरकरार रखते हुए कहा था कि 16 प्रतिशत आरक्षण उचित नहीं है और रोजगार में आरक्षण 12 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए. बाम्बे हाईकोर्ट के आरक्षण कायम रखने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. अपने फैसले में न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने स्पष्ट कर दिया कि आरक्षण के लिए 50 प्रतिशत की तय सीमा का उल्लंघन नहीं किया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने 26 मार्च को ही याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जून 1992 के इंदिरा साहनी फैसले पर पुनर्विचार करने की जरूरत नहीं है जिसमें आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत निर्धारित की गई थी.

    निराश करने वाला निर्णय

    महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण के संदर्भ में जो निर्णय दिया है, वह अनपेक्षित और निराश करने वाला है. राज्य सरकार और मराठा समाज संगठनों ने अदालत में वकीलों की फौज खड़ी कर अपना पक्ष मजबूती से रखा. पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट व सिफारिश रहने के बावजूद ऐसा निर्णय होना आघातकारी है. अजीत पवार ने आश्वासन दिया कि मराठा बंधुओं को न्याय व उनका हक देने के लिए जो भी संभव होगा, राज्य सरकार अवश्य करेगी. राज्य में किसी भी समाज पर अन्याय नहीं होने दिया जाएगा. मराठा समाज ने आज तक शांतिपूर्ण, संयमी व लोकतांत्रिक मार्ग से अपना संघर्ष किया है. सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद भी वे ऐसी ही भूमिका कायम रखें. कोरोना संकट के दौर में सभी की जान की रक्षा करना सरकार की जिम्मेदारी है. मराठा समाज के लोगों को उनका अधिकार दिलाने के लिए राज्य सरकार आगे भी हर संभव कदम उठाएगी.

    वरिष्ठ कानून विशेषज्ञों की समिति हल निकाले

    विपक्ष के नेता व पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से राज्य सरकार को करारा झटका लगा है. इसे देखते हुए सरकार सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के वरिष्ठ कानून विशेषज्ञों की समिति बनाए जो मराठा आरक्षण मुद्दे का हल निकाले. यह समिति एक रिपोर्ट तैयार करे और उसे सर्वपक्षीय बैठक के सम्मुख प्रस्तुत करे. फडणवीस ने कहा कि ठाकरे सरकार सिर्फ न्याय की भाषा न बोले, बल्कि सामाजिक न्याय की भावना को कार्यरूप में परिणत करे. इसके लिए ठोस रणनीति बनाकर आगे बढ़े. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार में समन्वय का अभाव होने से कोर्ट ने कानून को स्थगित किया था, तभी हमारे मन में शंका पैदा हुई थी. कोर्ट किसी अध्यादेश (आर्डिनेंस) को स्थगित कर सकता है, कानून को स्थगित नहीं किया जाता. इस सरकार ने गायकवाड कमीशन की रिपोर्ट का अंग्रेजी अनुवाद नहीं किया, इसलिए उसे कोर्ट के सामने पेश नहीं किया जा सका.

    समन्वय के अभाव का आरोप

    देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि मराठा आरक्षण का कानून बनाने के बाद इसे लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी. हाईकोर्ट ने सरकार के पक्ष में निर्णय दिया था व हमारे कानून को वैध ठहराया था. इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई. उस वक्त मैं मुख्यमंत्री था. तब हमने अपना पक्ष मजबूती से सुप्रीम कोर्ट में रखा था. बाद में नई बेंच गठित की गई, तब उसके सामने मामला रखते समय समन्वय का अभाव था. वकीलों को जानकारी नहीं थी इसलिए केस एडजोर्न किया गया. सरकार ने बड़ी बेंच के समक्ष जाने की घोषणा की लेकिन उसके सामने भी समन्वय का अभाव देखा गया. फडणवीस ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 50 प्रतिशत से ऊपर का आरक्षण रद्द किया किंतु देश के 9 राज्यों में 50 फीसदी से अधिक आरक्षण है, उसे रद्द नहीं किया गया. उनके मामले चालू हैं.

    धारा 342 ए कायम

    सुप्रीम कोर्ट के जज अशोक भूषण ने कहा कि जहां तक संविधान की धारा 342 ए का सवाल है, वह कायम है. संविधान संशोधन के जरिए जोड़ी गई इस धारा में प्रावधान किया गया है कि राष्ट्रपति किसी राज्य अथवा केंद्र शासित प्रदेश के किसी समुदाय को सामाजिक व शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की मान्यता दे सकते हैं. संसद भी कानून बनाकर किसी समुदाय को सामजिक व शैक्षिक रूप से पिछड़े समुदाय की सूची में डाल सकती है.