क्या सरकार को हजम होगी गडकरी की आत्मपरीक्षण की सलाह?

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    ऐसे समय जबकि संसद में हंगामा व गतिरोध चरम पर चलते मानसून सत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ तथा सरकार और विपक्ष के बीच मतभेदों की खाई और गहरी हो गई तब संसदीय लोकतंत्र बचाने के लिहाज से केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का यह सुझाव अत्यंत सार्थक है कि सत्ता पक्ष के साथ-साथ विपक्ष के लोगों को भी आत्मपरीक्षण करना चाहिए. गडकरी ऐसे वरिष्ठ व कर्मठ नेता हैं जिनकी पक्ष-विपक्ष में समान रूप से लोकप्रियता है. इसके अलावा बीजेपी के अभिभावक संगठन आरएसएस के भी वे विश्वासपात्र हैं. तो क्या गडकरी के कथन को संघ की परिपक्व व दूरदर्शी सोच के रूप में लिया जाए? गडकरी ने यदि प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू की तारीफ की है तो इसके पीछे संघ की दूरगामी विचारधारा हो सकती है. जिस समय बीजेपी पूरी तरह नेहरू की कटु आलोचक बनी हुई है तथा उसके अनेक सांसद व नेता हर विफलता या गलती के लिए उनपर दोषारोपण करती है तभी स्पष्टवादी गडकरी की नेहरू-प्रशंसा चौंका देनेवाली है.

    नेहरू व अटल की तारीफ

    गडकरी आंख मूंद कर चलनेवाले लकीर के फकीर नहीं हैं. वे नेहरू के प्रति अन्य बीजेपी नेताओं के समान द्वेषभाव भी नहीं रखते और न कभी नेहरू को लेकर अनर्गल आरोप या काल्पनिक किस्सों को उन्होंने बढ़ावा या सहमति दी है. पॉजिटिव सोच रखनेवाले गडकरी मानते है कि दूसरे की यशोरेखा को मिटाकर छोटी करना सही नहीं है बल्कि लगन के साथ कर्तव्यपथ पर आगे बढ़कर अपनी लकीर को बड़ा बनाना श्रेयस्कर है.

    लोकतंत्र के आदर्श नेता

    गडकरी ने कहा कि पं. जवाहरलाल नेहरू और अटलबिहारी वाजपेयी भारतीय लोकतंत्र के 2 आदर्श नेता थे और दोनों कहते थे कि मैं अपनी लोकतांत्रिक मर्यादा का पालन करूंगा. अटल की विरासत हमारी प्रेरणा है और नेहरू का भी भारत कि लोकतंत्र में बड़ा योगदान है. सत्तारुढ़ दल और विपक्ष एक बार आत्मनिरीक्षण करें क्योंकि आज जो विपक्ष है वह बीते हुए कल का सत्ताधारी है, आज की सत्ताधारी पार्टी कल का विपक्ष है. हमारी भूमिका बदलती रहती है. एक स्वस्थ लोकतंत्र में सरकार पर अंकुश रखने के लिए मजबूत विपक्ष अनिवार्य है. गडकरी ने अत्यंत निष्पक्ष तरीके से जो कुछ कहा है वह सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों के लिए अनुकरणीय तथा भारतीय लोकतंत्र के हित में है. सवाल यह भी उठ सकता है कि क्या नेहरू की तारीफ कर गडकरी ने पार्टी लाइन के खिलाफ बात कही है? बीजेपी के कितने ही नेता कश्मीर समस्या, भ्रष्टाचार, महंगाई, गरीबी, पिछड़ेपन का ठीकरा नेहरू के सिर पर फोड़ते आए हैं. नेहरू के बारे में कितने ही मनगढ़ंत किस्से भी प्रचारित किए गए हैं ताकि जनमानस में उनकी प्रतिमा मलिन हो.

    विपरीत माहौल में भी साहस दिखाया

    ऐसे माहौल के बीच गडकरी ने बड़े साहस के साथ अपनी बात कही. नेहरू सचमुच लोकतंत्र के आदर्श नेता थे जिन्होंने आजादी के बाद संसदीय प्रणाली को अपनाया. वे अपनी अपार लोकप्रियता के बावजूद तानाशाह नहीं बने बल्कि हिटलर, मुसोलिनी जैसे तानाशाहों के कट्टर आलोचक थे. संसद में विपक्ष के नेता डा. राममनोहर लोहिया, आचार्य रंगा, हीरेन मुखर्जी, आचार्य कृपलानी, एचवी कामथ, भूपेश गुप्त, फिरोज गांधी उनकी आलोचना करते हुए लंबे भाषण देते थे और नेहरू धैर्य के साथ सब सुनते थे और बाद में उसका जवाब देते थे. आज संसद में स्वस्थ बहस या चर्चा का माहौल ही नहीं रह गया.

    इसीलिए पक्ष और विपक्ष दोनों से गडकरी की अपील सार्थक प्रतीत होती है कि दोनों पक्ष संसदीय लोकतंत्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझें. नेहरू ने बड़े उद्योगों को बढ़ाया दिया जबकि पड़ोसी पाकिस्तान में आज तक कोई औद्योगिक क्रांति नहीं हुई. पंचवर्षीय योजनाएं भी नेहरू की देन हैं. इस्पात कारखाने, भाखडा-नंगल जैसे बांध उनकी दूरदर्शी सोच का नतीजा थे. वाजपेयी भी श्रेष्ठ वक्ता होने के साथ उदारमना, कविहृदय नेता थे. उन्होंने 24 पार्टियों की मिलीजुली सरकार चलाई थी. क्या आज सत्तापक्ष वाजपेयी जितना उदार है? गडकरी ने विपक्ष को भी सही ताकीद दी है कि आत्मपरीक्षण करे.