File Photo
File Photo

Loading

पटना: पटना उच्च न्यायालय ने उन शिकायतों की जांच के आदेश दिये हैं जिनमें कहा गया है कि बैंक और वित्तीय संस्थान वसूली एजेंटों/गिरोहों के माध्यम से कर्ज नहीं चुकाने वालों के वाहनों को जबरदस्ती जब्त नहीं कर सकते हैं। कोर्ट में टाटा मोटर फाइनेंस लिमिटेड, इंडसइंड बैंक लिमिटेड, श्रीराम फाइनेंस कंपनी, आईसीआईसीआई बैंक और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के खिलाफ याचिका दायर की गई थी। याचिकाकर्ताओं ने इन संस्थाओं की आर्थिक मदद से वाहन खरीदे थे। इन सभी ने शिकायत की कि किश्तें न चुकाने के कारण गुंडों की मदद से उनके वाहनों को जबरन उठा लिया गया। एक मामले में बस सवारियों को उतार कर बस को भगा दिया गया।

वाहनों को जब्त करने की शक्ति से इनकार किया

फाइनेंसरों की भूमिका यह थी कि मालिकों ने स्वेच्छा से वाहनों को सरेंडर कर दिया। उन्होंने यह भी दावा किया कि उनके पास बकाएदारों के वाहनों को जब्त करने और लोन समझौते के अनुसार लोन की वसूली करने का अधिकार है। इस दलील को खारिज करते हुए कोर्ट ने बैंकों और फाइनेंस कंपनियों की कार्रवाई पर नाराजगी जताई। अदालत ने मामला दर्ज करने और जांच करने का निर्देश देते हुए कहा कि कानून के प्रावधानों का पालन किए बिना किसी वाहन को जब्त करना पूरी तरह से अवैध है। अदालत ने बैंकों को मुकदमेबाजी खर्च के रूप में प्रत्येक याचिकाकर्ता को 50,000 रुपये का भुगतान करने का भी आदेश दिया।

वाहन को कब्जे में लेने की क्या है प्रक्रिया

  1. उधारकर्ता को 60 दिनों का डिमांड नोटिस जारी किया जाना चाहिए।
  2. नोटिस पर आपत्ति की स्थिति में 15 दिन के अंदर निर्णय लेना होगा।
  3. आपत्ति स्वीकार न करने का कारण लिखित रूप में सूचित किया जाना चाहिए।
  4. अधिकृत अधिकारी को दो गवाहों की उपस्थिति में कब्जा लेना होगा।
  5. अधिहरण पंचनामा की एक प्रति ऋणी को या ऋणी की ओर से किसी सक्षम व्यक्ति को दी जानी चाहिए।
  6. उधारकर्ता को सभी नोटिस पंजीकृत एडी पोस्ट, स्पीड पोस्ट या कूरियर और इलेक्ट्रॉनिक रूप से दिए जाने चाहिए।

    बैंक और वित्तीय संस्थान भारत की मौलिक नीति के विरुद्ध काम नहीं कर सकते। किसी भी व्यक्ति को सम्मान के साथ जीने के अधिकार से वंचित नहीं किया जाएगा। व्यक्तियों के संवैधानिक अधिकार बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा वसूली के अधिकार से अधिक महत्वपूर्ण हैं।

    राजीव रंजन प्रसाद, न्यायमूर्ती