Stamp duty Real Estate

  • लाखों का टैक्स लेकर भी असली मालिक की गारंटी नहीं देता रजिस्ट्रार

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मुंबई: आपने 4 महीने पहले सपरिवार गांव जाने के लिए घंटों लाइन में लगकर टिकट बुक करवाई और आप निर्धारित दिन ट्रेन में सवार होते हैं और पाते हैं कि आपकी सीट पर पहले से ही कोई विराजमान हैं। आपके बताने पर वह चुपचाप या तो खुद ही सीट खाली कर देता है या फिर टिकट निरीक्षक सीट खाली करवाकर आपको दे देता है और आप आनंदपूर्वक यात्रा कर पाते हैं। जरा कल्पना कीजिए कि उस व्यक्ति ने आपके कहने पर सीट खाली नहीं की। आप टिकट निरीक्षक से अपनी सीट लेने का आग्रह करते हैं। उस समय आप पर क्या गुजरेगी, जब टिकट निरीक्षक आपसे कहे, “इस मामले में मैं आपकी कोई सहायता नहीं कर सकता, आपको जल्दी आकर अपनी सीट पर बैठ जाना चाहिए था। रेलवे का काम केवल आरक्षण करना है, ना कि सीट खाली करवाकर उसे उपलब्ध कराना।“ घबराइये मत! रेलवे ने कोई नियम नहीं बदला है। भारतीय रेलवे अभी भी 20 रुपए प्रति व्यक्ति आरक्षण शुल्क लेकर आपको सीट देने के लिए प्रतिबद्ध है।

फिर भी आप सीट ना मिलने का झटका तो सहन कर सकते हैं, लेकिन अपनी जिंदगी भर की बचत से अपने लिए खरीदे गए आशियाने का सरकारी रजिस्ट्रार (Registrar) के पास पंजीकरण (Property Registration) करवाने के बाद आपको पता लगे कि आपने जिससे प्रॉपर्टी  खरीदी है, वह उसका असली मालिक ही नहीं है। वहां कोई दूसरा ही आदमी ही कब्जा जमाये बैठा है। यानी वह प्रॉपर्टी  किसी दूसरे के नाम पर है। ऐसे में जब आप रजिस्ट्रार के पास अपनी प्रॉपर्टी  का अधिकार मांगने जायें और वह कहे कि जिस आदमी ने आपको प्रॉपर्टी  बेची है, वह उसका असली मालिक है या नहीं, इस बात की जांच करना विभाग का काम नहीं है, न्याय के लिए आप अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं तो आपको ऐसा झटका लग सकता है कि आप गश खाकर गिर पड़ें। अचल संपत्ति संबंधी कानून में इस बड़ी खामी के कारण धोखेबाजों को शह मिलती है और प्रॉपर्टी  सौदों में धोखेबाजी के शिकार होने वाले ईमानदार ग्राहकों को बेवजह अदालतों में चक्कर काटने के लिए मजबूर होना पड़ता है।  

रजिस्ट्रार का काम केवल पंजीकरण, मालिकाना हक की पुष्टि करना नहीं

लाखों रुपए की स्टॉम्प ड्यूटी (Stamp Duty) भरकर प्रॉपर्टी  का विधिवत रजिस्ट्रेशन कराने के बाद आप यदि सोचते हैं कि आपने प्रॉपर्टी  के असली मालिक से इसे खरीदा है और अब आप इसके वास्तविक मालिक बन गए हैं तो आपकी यह धारणा गलत है, क्योंकि रजिस्ट्रार का काम केवल सौदे और करारनामे का पंजीकरण करना है, उसके मालिकाना हक की पुष्टि करना नहीं। इस बात का खुलासा उस समय हुआ जब सामाजिक कार्यकर्ता एस. पी. शर्मा ने शिवाजी पार्क, गोखले रोड़ उत्तर, दादर (प.) मुंबई स्थित रजिस्ट्रेशन की जा चुकी तमाम सम्पत्तियों से संबंधित यथास्थिति की जानकारी सह जिल्हा निबंधक वर्ग 1 (उ.श्रे.), मुंबई शहर के ओल्ड कस्टम हाउस स्थित कार्यालय से मांगी थी। सह दुय्यम निबंधक वर्ग 2 और सह दुय्यम निबंधक मुंबई शहर क्रमांक 2 से रिपोर्ट मंगवाने के बाद सह जिल्हा निबंधक वर्ग 1 (उ.श्रे.) ने अपने उत्तर के अंत में मराठी भाषा में जो लिखा है, उसका सरल हिंदी में अनुवाद पाठकों की जानकारी के लिए प्रस्तुत है-

  • “महाराष्ट्र पंजीकरण अधिनियम, 1961 के नियम क्रमांक 44 के अनुसार दस्तावेज़ की वैधता की जांच करने की जिम्मेदारी उप रजिस्ट्रार के पास नहीं है और नियम 44 (1) के अनुसार, राज्य सरकार या केंद्र सरकार के अधिनियम के तहत, उप रजिस्ट्रार उपरोक्त अधिनियम और नियमों के अनुपालन में न्यायालय के निरोधात्मक आदेश को छोड़कर, पंजीकरण के लिए दायर किसी भी दस्तावेज को अस्वीकार नहीं कर सकता है, लेकिन यदि किसी एक पक्ष को लगता है कि उसके साथ धोखा किया गया है तो वह इसके खिलाफ सक्षम अदालत में अपील कर सकता है।
  • पंजीकरण अधिनियम के नियमों में उप रजिस्ट्रार के लिए यह सत्यापित करने का कोई प्रावधान नहीं है कि संपत्ति को स्थानांतरित करने वाले व्यक्ति के पास संपत्ति का स्वामित्व है या नहीं। इसलिए, अचल संपत्ति के हस्तांतरण दस्तावेज को पंजीकृत करते समय, उस संपत्ति का अधिकार सत्यापन उप रजिस्ट्रार कार्यालय द्वारा नहीं किया जाता है। संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, (Transfer of Property Act)  1882 की धारा 55 के अनुसार यह जिम्मेदारी लेनदेन में शामिल दोनों पक्षों की है। संपत्ति के स्वामित्व से संबंधित उत्पन्न विवादों के न्याय निर्णयन के लिए सक्षम न्यायालय उत्तरदायी है।”

लाखों रुपए की स्टॉम्प ड्यूटी देने का औचित्य क्या?

बड़े अफसोस और आश्चर्य की बात है कि खरीदार के नाम प्रॉपर्टी हस्तांतरण (Property Transfer) के लिए उससे 5% की ऊंची दर से स्टॉम्प ड्यूटी लेने के बाद भी सरकार इस बात की गारंटी नहीं देती कि जिस व्यक्ति से वह प्रॉपर्टी खरीद रहा है, वही उसका वास्तविक मालिक है। कानून में इस बड़ी खामी का फायदा उठाकर तो कोई भी ‍व्यक्ति किसी भी प्रॉपर्टी का मालिक बनकर बिक्री करारनामे (Sale Agreement) का पंजीकरण करवा सकता है और लाखों-करोड़ों की चपत लगा सकता है। और ऐसे कई मामले हुए भी हैं। मालिकाना हक के मामले में विवाद होने पर खरीददार को रजिस्ट्रार के कार्यालय से कोई राहत नहीं मिलती। पीड़ित व्यक्ति को अदालत का दरवाजा ही खटखटाना पड़ता है। ऐसी स्थिति में बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि जब रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज (Registrar of Companies) सहित सरकार के अनेक विभागों में दस्तावेजों का सबमिशन और पंजीकरण कुछ सौ रुपये देकर हो जाता है तो फिर वहीं लाखों रुपए की स्टॉम्प ड्यूटी भरकर वैसे ही उद्देश्य की पूर्ति के लिए रजिस्ट्रशन करवाने का औचित्य क्या है? इसलिए घर खरीददारों के हित में यह बहुत जरूरी है कि सरकार नियमों में संशोधन करके इस विभाग की जबाबदेही निर्धारित करे, ताकि स्टॉम्प ड्यूटी वसूलना जायज रहे।

-एस. पी. शर्मा, अध्यक्ष, राइट्स

5% की भारी स्टॉम्प ड्यूटी के अलावा खरीददार को 1% या अधिकतम 30 हजार रुपए रजिस्ट्रेशन शुल्क (Registration Charge) भी देना पड़ता है और प्रति पेज 20 रुपए स्कैनिंग चार्ज अलग से देना होता है। लाखों रुपए देकर भी ग्राहक को रजिस्ट्रार कार्यालय में घंटों इंतजार करना पड़ता है। कई कार्यालयों में तो बैठने और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं रहती हैं। भारी स्टॉम्प ड्यूटी लेकर भी प्रॉपर्टी स्वामित्व की गारंटी नहीं देना ग्राहक अधिकारों का हनन है। इसलिए सरकार को पूरी जवाबदेही लेते हुए खरीददार को यह गारंटी देनी चाहिए कि आप जो भी प्रॉपर्टी खरीद रहे हो, वह बिलकुल जायज है। इसका लैंड रिकार्ड और प्रॉपर्टी टाइटल (स्वामित्व) कानूनों के मुताबिक पूर्णत: वैद्य है। यदि सरकार यह सब गारंटी देती है तो ही उसे 5% स्टॉम्प ड्यूटी लेनी चाहिए अन्यथा इसे बंद कर केवल रजिस्ट्रेशन शुल्क ही लेना चाहिए।

-शंकर ठक्कर, मुंबई अध्यक्ष, कन्फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स