अब और कैसा लॉकडाउन महाराष्ट्रवासी वैसे ही कड़े निर्बंधों से त्रस्त

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    महाराष्ट्र (Maharashtra) की जनता पहले ही पिछले 1 माह से कोरोना की वजह से लागू किए गए कड़े प्रतिबंधों से त्रस्त है और अब पूर्ण लॉकडाउन लगाने की बात की जा रही है. ऐसा कदम उठाना जनता के साथ ज्यादती होगी. यह तर्क सही है कि सरकार राज्य में कोरोना की (Coronavirus) चेन तोड़ना चाहती है. उसकी दलील है कि स्थिति भयंकर हो गई है, जिसे देखते हुए सख्त प्रतिबंधों की आवश्यकता है. इलाज के लिए ऑक्सीजन व रेमडेसिविर दवा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है, ऐसे में पूरा लॉकडाउन (Lock down) ही एकमात्र विकल्प रह जाता है.

    यह कहा गया है कि लॉकडाउन की रूपरेखा काफी हद तक पिछले वर्ष मार्च महीने में घोषित किए गए लॉकडाउन के समान काफी कड़ी होगी. इस दौरान राज्य के एक जिले से दूसरे जिले में जाने पर पाबंदी लगाई जा सकती है. इस समय इधर कुआं, उधर खाई जैसी स्थिति है. एक ओर कोरोना से हजारों लोग संक्रमित हो रहे हैं और सैकड़ों की मौत हो रही है तो दूसरी ओर लोगों के रोजी-रोजगार का भी ज्वलंत प्रश्न है. उद्योग, कारखाने, दूकानें बंद होने से बड़े पैमाने पर बेरोजगारी फैलेगी. रोजंदारी मजदूर व हॉकर भी बेकार हो जाएंगे.

    पिछली बार भी कितने ही लोगों ने बेरोजगारी और पैसों के अभाव में त्रस्त होकर खुदकुशी कर ली थी. केंद्र हो या राज्य सरकार, उनकी स्थिति ऐसी नहीं है कि बेरोजगारों को जीवनयापन के लिए अमेरिका के समान पैकेज दें. घरेलू काम करने वाली  ‘मोलकरिण बाई’ पहले ही बेरोजगार हो चुकी हैं. जहां वर्क फ्रॉम होम है, वहां भी लोगों की जिंदगी अत्यंत अनियमित हो गई है. अदालतों का काम कम होने से वकील भी बेरोजगार हो गए हैं. या तो व्यक्ति कोरोना की चपेट में आए या फिर बेरोजगारी में भूख से दम तोड़े. सरकार ने समय रहते उपयुक्त व्यवस्था नहीं की इसलिए हालात बिगड़ते चले गए. ऑक्सीजन और बेड की कमी जानलेवा साबित हो रही है.