यवतमाल वाशिम लोकसभा सीट: ‘शिवसेना बनाम शिवसेना’ की लड़ाई, उद्धव और शिंदे की प्रतिष्ठा दांव पर, जानें इस सीट का समीकरण

यवतमाल-वाशिम लोकसभा क्षेत्र की एक और खास बात यह है कि इस क्षेत्र के सभी विधानसभा क्षेत्रों में महायुति के विधायक हैं। बीजेपी के 4 विधायक, शिंदे ग्रुप के संजय राठौड़ और एनसीपी अजित पवार ग्रुप के इंद्रनील नाइक। ऐसे में यह सीट महाविकास अघाड़ी के लिए जीतना आसान नहीं होगा।

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नवभारत डिजिटल टीम: महाराष्ट्र समेत पूरे देश में लोकसभा चुनाव (Lok sabha Elections 2024) की सरगर्मियां तेज हो गई है। ऐसे में विदर्भ की यवतमाल-वाशिम लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र (Yavatmal Washim Lok Sabha Seat) भी चर्चा का विषय बन गया है। यह निर्वाचन क्षेत्र महाराष्ट्र के 48 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। यह सीट 2009 में अस्तित्व में आई। इससे पहले यवतमाल सीट और वाशिम सीट अलग-अलग थी। नए परिसीमन के आधार पर इसमें वाशिम को भी शामिल कर लिया जिसके बाद से इसे यवतमाल-वाशिम लोकसभा सीट कहा जाने लगा। इस सीट की इस बार चर्चा में रहने की वजह है लगातार पांच बार सांसद रहीं भावना गवली। भावना गवली को इस बार इस सीट से लोकसभा का टिकट नहीं दिया गया, उनका पत्ता कट होने की चर्चा पूरे महाराष्ट्र में होने लगी। उनकी जगह इस बार महायुती ने हेमंत पाटिल की पत्नी राजश्री पाटिल को टिकट दिया है। 

यवतमाल वाशिम निर्वाचन क्षेत्र 

यवतमाल वाशिम निर्वाचन क्षेत्र विदर्भ में शामिल है। इस संसदीय क्षेत्र में कुल 6 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। इसमें यवतमाल जिले के 4 और वाशिम जिले के 2 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। इसमें यवतमाल में रालेगांव, यवतमाल, दिग्रस, पुसाद और वाशिम में वाशिम और करंजा विधानसभा क्षेत्र हैं। यवतमाल लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र 2009 के लोकसभा चुनाव से अस्तित्व में है। तब से यहां पर शिवसेना का दबदबा रहा है। निर्वाचन क्षेत्र के गठन के बाद से भावना गवली तीन बार चुनाव जीत चुकी हैं। इसलिए कहा जा रहा है कि लोगों में उनके प्रति नकारात्मकता देखकर पार्टी ने उनका टिकट काटने का फैसला किया है।

निर्वाचन क्षेत्र का दो बार पुनर्गठन

यवतमाल वाशिम एक ऐसे निर्वाचन क्षेत्र के रूप में जाना जाता है जो निर्वाचन क्षेत्र पुनर्गठन में 2 बार बदला गया है। 1977 से पहले इस निर्वाचन क्षेत्र को खामगांव लोकसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। 1962, 1967, 1971 में तीन बार खामगांव लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार जीते। उसमें अर्जुन कस्तूरे ने 1967 और 1971 में लगातार दो बार जीत हासिल की। 1977 के बाद इस निर्वाचन क्षेत्र को वाशिम लोकसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाने लगा। 1977 के वाशिम लोकसभा चुनाव में वसंतराव नाईक कांग्रेस से जीते। उसके बाद 1991 के चुनाव तक लगातार कांग्रेस ने यहां जीत हासिल की। 1996 में, शिवसेना ने कांग्रेस से वाशिम लोकसभा क्षेत्र जीता। तब पुंडलिकराव गवली की जीत हुई थी। पुंडलिकराव गवली भावना गवली के पिता हैं।

गुलाम नबी आज़ाद दो बार बने इस सीट से सांसद

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस सरकार में मंत्री गुलाम नबी आज़ाद 1980 और 1984 में लगातार दो बार लोकसभा के लिए चुने गए। उसके बाद अनंतराव देशमुख ने भी दो बार इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। 1996 में शिवसेना ने इस सीट पर अपना वजूद साबित किया। भावना गवली के पिता पुंडलिकराव गवली इस सीट से कांग्रेस से जीते थे। लेकिन दो साल में हुए चुनाव में सुधाकरराव नाईक  ने फिर से यहां कांग्रेस को जीत दिला दी। हालांकि, 1999 में भावना गवली को शिवसेना ने मौका दिया और वह जीत गईं। बाद में शिवसेना ने इस सीट पर अपनी पकड़ ढीली नहीं होने दी। भावना गवली लगातार पांच बार से सांसद हैं।

निर्वाचन क्षेत्र ने महाराष्ट्र को दिए दो मुख्यमंत्री

इस निर्वाचन क्षेत्र ने महाराष्ट्र को दो मुख्यमंत्री वसंतराव नाईक और सुधाकरराव नाईक दिए हैं। 2019 में, कांग्रेस ने इस निर्वाचन क्षेत्र को भावना गवली और शिवसेना के हाथों से छीनने के लिए माणिकराव ठाकरे को मैदान में उतारा था। लेकिन भावना गवली ने ये चुनाव जीत लिया। इस चुनाव में भावना गवली ने माणिकराव ठाकरे को एक लाख से ज्यादा वोटों से हराया था। कहा जा सकता है कि इसमें वंचित बहुजन अघाड़ी की अहम भूमिका रही। इस चुनाव में वंचित के उम्मीदवार को करीब 95 हजार वोट मिले थे। इसलिए कहा जाता है कि इससे महायुति को लाभ होगा। यवतमाल-वाशिम लोकसभा क्षेत्र की एक और खास बात यह है कि इस क्षेत्र के सभी विधानसभा क्षेत्रों में महायुति के विधायक हैं। बीजेपी के 4 विधायक, शिंदे ग्रुप के संजय राठौड़ और एनसीपी अजित पवार ग्रुप के इंद्रनील नाइक हैं। ऐसे में यह सीट महाविकास अघाड़ी के लिए जीतना आसान नहीं होगा।

संजय देशमुख और राजश्री पाटिल के बीच मुकाबला

महायुति उम्मीदवार बनते समय ऐसी चर्चा थी कि भावना गवली का टिकट कट जायेगा। लेकिन आखिर तक इसकी घोषणा नहीं हुई कि उनकी जगह किसे टिकट मिलेगा। आखिरकार हेमंत पाटिल की पत्नी राजश्री पाटिल को टिकट देने की घोषणा की गई। कहा जा रहा है कि हिंगोली लोकसभा क्षेत्र से हेमंत पाटिल की नाराजगी दूर करने के लिए उनकी पत्नी को टिकट दिया गया है।
वहीं महाविकास अघाड़ी से संजय देशमुख चुनावी  मैदान में उतरे हैं। शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पार्टी ने घर वापसी करने वाले पूर्व मंत्री संजय देशमुख की उम्मीदवारी की घोषणा की है। राजनीतिक करियर शुरू होने के बाद संजय देशमुख लंबे समय तक निर्दलीय विधायक रहे। उन्होंने 10 वर्षों तक विधान सभा में दिग्रस और आर्नी  निर्वाचन क्षेत्रों का नेतृत्व किया। निर्दलीय विधायक होने के बावजूद वह मंत्री पद पाने में कामयाब रहे। वह 2002 से 2004 तक राज्य मंत्री रहे। संजय देशमुख और संजय राठौड़ का राजनीतिक करियर काफी हद तक समसामयिक रहा है। जिले में ये दोनों नेता एक दूसरे के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के तौर पर देखे जाते हैं। 2019 में संजय देशमुख को संजय राठौड़ ने हराया था। संजय देशमुख का जनसंपर्क अच्छा रहा है क्योंकि वह पार्टी संगठन में शिवसेना तालुका प्रमुख के पद से काम कर चुके हैं। इसके अलावा, अगर शिवसेना के दो गुटों के उम्मीदवार एक-दूसरे के सामने आते हैं, तो संजय देशमुख एक मजबूत चुनौती पेश कर सकते हैं।

संजय राठौड़ की बेहद अहम भूमिका

इस विधानसभा क्षेत्र में संजय राठौड़ की बेहद अहम भूमिका होगी। क्योंकि यवतमाल वाशिम लोकसभा क्षेत्र में बंजारा समुदाय सबसे ज्यादा है, वहाँ है मतदाता सूची में राठौड़ उपनाम वाले मतदाता अधिक हैं। इसलिए राजश्री पाटिल की लड़ाई इस बात पर होगी कि संजय राठौड़ कितनी ताकत लगाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में मतदाताओं की अच्छी-खासी संख्या को देखते हुए, किसानों के मुद्दे, कपास को भाव, कृषि प्रसंस्करण उद्योग भी निर्वाचन क्षेत्र में महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। साथ ही स्वास्थ्य, बेरोजगारी और रेलवे के मुद्दों पर भी लोग अपनी राय जाहिर करते नजर आ रहे हैं। इस विधानसभा क्षेत्र में जातीय समीकरणों का काफी प्रभाव देखा जा सकता है। इस निर्वाचन क्षेत्र में मुख्य रूप से बंजारा और मराठा-कुनबी समुदाय प्रमुख हैं। इसलिए इस सीट पर कब्जा करने के लिए किसकी चाल ज्यादा कारगर होगी और मतदाता किसके पाले में वोट डालेंगे, यह तो 4 जून के नतीजों में ही सामने आएगा।