MNREGA became a boon for migrant workers, unemployed, more than 49 lakhs of jobs in Rajasthan

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    नई दिल्ली: राज्यसभा में मंगलवार को विभिन्न विपक्षी दलों के सदस्यों ने कोविड के कारण मनरेगा के तहत काम की मांग बढ़ने के बावजूद इस योजना के लिए समुचित कोष का आवंटन नहीं करने और गैर भाजपा शासित राज्यों के साथ भेदभाव करने का केंद्र सरकार पर आरोप लगाया। हालांकि सत्ता पक्ष के सदस्यों ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि सरकार ने महंगाई पर लगाम कसते हुए विकास की गति तेज की है। उच्च सदन में अनुदान की अनुपूरक मांगों पर चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस की अमी याग्निक ने कहा अनुपूरक मांगों को देखकर लगता है कि बजट में खर्चों की गणना में भारी भूल की गयी है।

    उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) के लिए काफी कम आवंटन किया गया जबकि कोविड महामारी के दौरान मनरेगा के तहत रोजगार की मांग बढ़ गयी थी।  उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने निरंतर मनरेगा के महत्व को कम करके आंका है। उन्होंने कहा कि अभी तक देश महामारी से पूरी तरह नहीं उबर पाया है। कांग्रेस सदस्य ने कहा कि यदि ग्रामीण रोजगार विशेषकर महिलाओं को मिलने वाले रोजगार को देखा जाए तो महिलाओं ने बड़ी संख्या में रोजगार गंवाये हैं और पुरुषों की तुलना में उन्हें कार्य बल में फिर से शामिल होने में बहुत कठिनाइयां आ रही हैं।

    उन्होंने कहा कि महिलाएं इसी स्थिति का सामना मनरेगा में भी कर रही हैं।  उन्होंने मनरेगा के लिए अधिक कोष आवंटित किए जाने का सुझाव देते हुए कहा कि ग्रामीण क्षेत्र में मनरेगा योजना की मांग में काफी वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि मनरेगा की शुरुआत कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने 2006 में की थी। याग्निक ने कहा कि महिलाओं का ग्रामीण स्तर पर अधिक सशक्तीकरण हो, इसके लिए आवश्यक है कि मनरेगा को अधिक कोष आवंटित किया जाए और इसका ढंग से नियोजन किया जाए। उन्होंने कहा कि पिछले साल 13 प्रतिशत ऐसे लोग रहे जिन्हें मांग के बावजूद मनरेगा के तहत काम नहीं मिला।

    उन्होंने कहा कि ‘‘वर्ल्ड हंगर इंडेक्स” में भारत को 121 देशों में से 107वां स्थान मिला है।  याग्निक ने कहा कि वरिष्ठ सांसद पी. चिदंबरम पहले ही सवाल कर चुके हैं कि भूख सहित देश के वास्तविक मुद्दों की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कब सुध लेंगे? उन्होंने कहा कि देश में 22.4 करोड़ लोग कुपोषित हैं और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए भोजन का अधिकार बहुत ही महत्वपूर्ण है। कांग्रेस सदस्य ने सवाल किया कि देश की 80 करोड़ आबादी को जब पांच किलोग्राम अनाज का आवंटन किया जा रहा है तो उन्हें गरीबी की रेखा से उबारने में मदद क्यों नहीं मिल रही है? उन्होंने कहा कि वह इसके लिए धन आवंटित करने पर प्रश्न नहीं उठा रहीं किंतु प्राथमिकताओं की ओर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। 

    उन्होंने सरकार से प्रश्न किया कि सूक्ष्म एवं लघु उद्योग इकाई (एमएसएमई) क्षेत्र को प्रोत्साहन देने के लिए वह क्या कर रही है विशेषकर उन इकाइयों में जिन्हें महिलाओं द्वारा चलाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि केवल बड़े उद्योगों पर ध्यान देने से काम नहीं चलेगा।  उन्होंने महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध और बच्चियों के बीच में ही स्कूल छोड़ने की ऊंची दर पर भी चिंता जतायी। उन्होंने सवाल किया कि यदि महिलाएं पढ़ेंगी ही नहीं तो वे निर्णय करने की प्रक्रिया में कैसे शामिल होंगी?

    याग्निक ने कहा कि बच्चों, महिलाओं, वरिष्ठ नागरिकों सहित समाज के विभिन्न वर्गों के लिए सरकार ने तमाम पोर्टल बना दिये हैं किंतु असल प्रश्न है कि इन वर्ग के लोगों की डिजिटल पहुंच कितनी है? भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अरुण सिंह ने कहा कि अनुदान की अनुपूरक मांगों को देखें तो इसमें सबसे अधिक राशि गरीबों और किसानों से जुड़े विषयों के लिए मांगी गयी है। उन्होंने कहा कि इससे पता चलता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच के केंद्रबिन्दु में गरीब और किसान ही हैं।  उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की सोच के कारण किसानों को आज बेहतर फसल बीमा सुविधा मिल रही है।

    उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने देश के वित्तीय समावेश की प्रक्रिया को गति देने के लिए बैंक कर्मियों से गरीबों एवं किसानों के बैंक खाते खुलवाने का आह्वान किया।  सिंह ने कहा कि एक समय ऐसा था कि जब तत्कालीन प्रधानमंत्री ने देश के संसाधनों पर अल्पसंख्यकों का पहला अधिकार बताया था। उन्होंने कहा कि आज के प्रधानमंत्री ऐसे हैं जो कहते हैं कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार गरीबों का है और उनकी सरकार ने यह अधिकार उन्हें दिलवाया भी है।  उन्होंने विभिन्न देशों की मुद्रास्फीति दर का हवाला देते हुए कहा कि इनके मुकाबले भारत की वर्तमान महंगाई दर बहुत कम है।

    उन्होंने कहा कि भारत में करीब सात प्रतिशत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) दर है। उन्होंने कहा कि सरकार ने खपत बढ़ाने के बजाय आधारभूत ढांचे के निवेश की नीति पर चलने का जो निर्णय किया है, उससे देश की विकास दर बढ़ रही है।  तृणमूल कांग्रेस की डोला सेन ने चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि कृषि क्षेत्र पर सरकारी आवंटन घटता जा रहा है। उन्होंने सरकार से कहा कि केंद्र द्वारा गैर भाजपा शासित राज्यों को रासायनिक उर्वरकों के आवंटन में इतनी ‘‘कंजूसी” नहीं की जानी चाहिए, नहीं तो ‘सबका साथ सबका विकास’ कैसे होगा? उन्होंने केंद्र सरकार पर सार्वजनिक क्षेत्र के विभिन्न महत्वपूर्ण उपक्रमों का विनिवेश करने का आरोप लगाते हुए प्रश्न किया कि यह क्या ‘‘मेक इन इंडिया” है? उन्होंने कहा, ‘‘यह तो सेल इंडिया” हो गया।

    द्रमुक सदस्य एस. कल्याण सुंदरम ने समाज के पिछड़े वर्गों के लिए सरकार से समुचित कदम उठाने का सुझाव दिया। उन्होंने अपनी बात तमिल भाषा में रखी। तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के डॉ के. केशव राव ने अनुदान की अनुपूरक मांगों का समर्थन करते हुए कहा कि सरकार जिसको ‘‘रेवड़ी” कहती है, उन्हीं रेवड़ी के कारण देश को फायदा पहुंचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि संप्रग सरकार के शासनकाल में पेट्रोल 42 रूपये प्रति लीटर था जो आज 92 रूपये पहुंच गया है।

    उन्होंने कहा कि आज बेरोजगारी दर पिछले 45 साल में सबसे अधिक हो गयी है।  राव ने अनुदान की अनुपूरक मांगों के तहत प्रवर्तन निदेशालय को 30 लाख रूपये आवंटित करने के प्रावधान का जिक्र करते हुए एक खबर का हवाला दिया जिसके अनुसार 2014 के बाद ईडी के मामलों में चार गुना बढ़ोत्तरी हुई है जिसमें 95 प्रतिशत राजनीतिक नेताओं के खिलाफ हैं तथा ईडी के मामलों में दोष सिद्धि की दर महज 0.5 प्रतिशत है। उन्होंने दावा किया कि केंद्र के सौतेले एवं असहयोगात्मक व्यवहार के बावजूद आर्थिक मोर्चे पर तेलंगाना प्रगति कर रहा है और पिछले सात साल में तेलंगाना में प्रति व्यक्ति आय दोगुनी हो गयी है।(एजेंसी)