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मुंबई: आज वीर सावरकर (Veer Savarkar) की पुण्यतिथि (death anniversary) है देश उन्हें नमन कर रहा है। वीर सावरकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी एवं प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। उनका जन्म 28 मई 1883 को नासिक के भगूर गांव में हुआ। 26 फरवरी 1966 को भारत के इस महान क्रांतिकारी का निधन हुआ। उनके पिता का नाम दामोदर पंत सावरकर (Damodar Pant Savarkar) था, जो गांव के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में जाने जाते थे। उनकी माता का नाम राधाबाई था। लेकिन उनके सर पर ज्यादा दिन तक माँ का हाथ नहीं रहा। जब विनायक 9 साल के थे, तब ही उनकी माता का देहांत हो गया था। ऐसे में उनके पिता ने ही उनकी देखभाल की। बचपन से ही उनके भीतर देश भक्ति की भावना थी। 

वीर सावरकर नाम से जानें जाने वाले सावरकार का पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर था। लेकिन ज्यादातार लोग उनको इस नाम से कम जानते हैं। वह बचपन से पढ़ने लिखने में अच्छे थे। यही कारण है कि बचपन में उन्होंने कुछ कविताएं भी लिखी थीं। उनकी प्राथमिक शिक्षा दीक्षा महाराष्ट्र के नाशिक में स्थित शिवाजी हाईस्कूल में हुई। 1901 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। आजादी के लिए काम करने के लिए उन्होंने एक गुप्त सोसायटी बनाई थी, जो ‘मित्र मेला’ के नाम से जानी गई। 

विदेशी वस्त्रों की होली जलाई

1905 के बंग-भंग के बाद उन्होंने पुणे में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। फर्ग्युसन कॉलेज, पुणे में पढ़ने के दौरान भी वे राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत ओजस्वी भाषण देते थे। उनके यह लक्षण बड़े नेता की ओर इशारा कर रहे थे। देश भक्ति की भावना लिए वह आखिरकार आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। 

 रूसी क्रांतिकारियों से थे ज्यादा प्रभावित 

1906 में उन्हें श्यामजी कृष्ण वर्मा छात्रवृत्ति मिली। ‘इंडियन सोसियोलॉजिस्ट’ और ‘तलवार’ में उन्होंने अनेक लेख लिखे, जो बाद में कोलकाता के ‘युगांतर’ में भी छपे। वे रूसी क्रांतिकारियों से ज्यादा प्रभावित थे। लंदन में रहने के दौरान सावरकर की मुलाकात लाला हरदयाल से हुई। लंदन में वे इंडिया हाउस की देखरेख भी करते थे। मदनलाल धींगरा को फांसी दिए जाने के बाद उन्होंने ‘लंदन टाइम्स’ में भी एक लेख लिखा था। उन्होंने धींगरा के लिखित बयान के पर्चे भी बांटे थे।

जेल में ‘हिन्दुत्व’ पर शोध ग्रंथ लिखा

पुस्तक द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस में सावरकर ने इस लड़ाई को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आजादी की पहली लड़ाई घोषित किया। वीर सावरकर 1911 से 1921 तक अंडमान जेल में रहे। 1921 में वे स्वदेश लौटे और फिर 3 साल जेल में रहे। जेल में ‘हिन्दुत्व’ पर शोध ग्रंथ लिखा। 1937 में वे हिन्दू महासभा के अध्यक्ष चुने गए। 

गांधीजी और सावरकर का नजरिया अलग-अलग 

1943 के बाद वे मुंबई के दादर में रहे। 9 अक्टूबर 1942 को भारत की स्वतंत्रता के लिए चर्चिल को समुद्री तार भेजा और आजीवन अखंड भारत के पक्षधर रहे। आजादी के माध्यमों के बारे में गांधीजी और सावरकर का नजरिया अलग-अलग था। इसलिए आज भी उन्हें विवादीत माना जाता है। देश में कई लोग उनके समर्थक हैं तो कुछ लोग उनकी निंदा भी करते हैं। 

कांग्रेस ने किया विरोध 

बीजेपी और आरएसएस हमेशा से ही वीर सावरकर के प्रशंसक रहे हैं। वहीँ हाल ही कांग्रेस सांसद राहुल गांधी द्वारा वीर सावरकर पर तमाम सवाल खड़े किए गए। इससे उनके प्रति कांग्रेस की मानसिकता प्रकट होती है। राहुल गांधी द्वारा भारत जोड़ो यात्रा के दौरान वीर सावरकर के खिलाफ कई विवादित टिप्पणियां भी की गईं थी। 

कील और कोयले से कविताएं लिखीं 

दुनिया के वे ऐसे पहले कवि थे जिन्होंने अंडमान के एकांत कारावास में जेल की दीवारों पर कील और कोयले से कविताएं लिखीं और फिर उन्हें याद किया। इस प्रकार याद की हुई 10 हजार पंक्तियों को उन्होंने जेल से छूटने के बाद पुन: लिखा। 26 फरवरी 1966 को भारत के इस महान क्रांतिकारी का निधन हुआ। उनका संपूर्ण जीवन स्वराज्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष करते हुए ही बीता। वे एक महान क्रांतिकारी, इतिहासकार, समाज सुधारक, विचारक, चिंतक, साहित्यकार थे।