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सीमा कुमारी

नई दिल्ली: सनातन धर्म में एकादशी तिथि को सर्वाधिक फलदायी तिथि के रूप में जाना जाता है। इस विशेष दिन पर भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है और व्रत का पालन किया जाता है। लेकिन फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का विशेष महत्व है।फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को ‘रंगभरी एकादशी’ (Rangbhari Ekadashi) मनाई जाती है। इस साल यह एकादशी 3 मार्च, शुक्रवार को मनाई जाएगी। इसे ‘आमलकी एकादशी’ और ‘आंवला एकादशी’ के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है, लेकिन ‘रंगभरी एकादशी’ का संबंध भगवान शिव और माता पार्वती से है। ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार, ‘रंगभरी एकादशी’ के दिन कुछ विशेष उपाय करने से जातक को लाभ मिल सकता है। आइए जानें इन उपायों के बारे में-

ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार, ‘रंगभरी एकादशी’ (Rangbhari Ekadashi) पर भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है, इसलिए इस दिन शिवलिंग पर जल अर्पित करने के बाद उनका श्रृंगार सफेद चंदन, बेलपत्र इत्यादि से करें। साथ ही उन्हें गुलाल और अबीर अर्पित करें। शिव चालीसा का पाठ अवश्य करें। ऐसा करने से आर्थिक वृद्धि होती है।

इस दिन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए श्री विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करें और उन्हें आंवला अर्पित करें। ऐसा करने से कर्ज की समस्या से जल्द मुक्ति मिल जाती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

ज्योतिष-शास्त्र में बताया गया है कि ‘रंगभरी एकादशी’ के दिन शिव मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती को लाल रंग का गुलाल अर्पित करें और दाम्पत्य जीवन में सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें।

शुभ मुहूर्त

फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि आरंभ-

2 मार्च, गुरुवार को सुबह 6 बजकर 39 मिनट से शुरू

फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि समाप्त-

3 मार्च , शुक्रवार को सुबह 9 बजकर 11 मिनट तक

तिथि

उदया तिथि के हिसाब से रंगभरी एकादशी 3 मार्च 2023 को है।

सर्वार्थ सिद्धि योग-

सुबह 06 बजकर 45 बजे से दोपहर 03 बजकर 43 मिनट तक

सौभाग्य योग-

सुबह से शाम 06 बजकर 45 मिनट तक

धार्मिक महत्व

‘रंगभरी एकादशी’ का महत्व शिवजी और माता पार्वती के लिए विशेष होता है। ‘रंगभरी एकादशी’ का दिन भगवान शंकर और माता पार्वती के वैवाहिक जीवन में बड़ा महत्व रखता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव, माता गौरी का गौना कराकर उन्हें पहली बार काशी लाए थे। उनके स्वागत में रंग-गुलाल उड़ाते हुए खुशियां मनाई थी, तब ही से इस दिन भगवान भोलेनाथ गौरा और अपने गणों के संग गुलाल की होली खेलते है। ‘रंगभरी एकादशी’ के दिन बाबा विश्वनाथ को दूल्हे की तरह सजाया जाता है।