माघ पूर्णिमा के दिन मनाई जा रही ‘ललिता जयंती’, जानें पूजा की कथा और इसकी अपार महिमा

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    -सीमा कुमारी

    इस साल ‘ललिता जयंती’ (Lalita Jayanti) 16 फरवरी को है। यह पर्व हर साल माघ महीने की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। ‘मां ललिता’दस महाविद्याओं में से एक है। ‘ललिता जयंती’का व्रत श्रद्धालुओं के लिए बहुत ही फलदायक होता है।

    मान्यता है कि, यदि कोई साधक इस दिन मां ललिता देवी की पूजा भक्ति-भाव सहित करता है, तो उसे देवी मां की असीम कृपा अवश्य प्राप्त होती है और जीवन में हमेशा सुख-शांति एवं समृद्धि बनी रहती है। इस दिन मां ललिता मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। आइए जानें ‘ललिता जयंती’ की महिमा –

    पौराणिक कथा के मुताबिक, मां सती और भगवान शिव के विवाह से प्रजापति दक्ष प्रसन्न नहीं थे। कालांतर में एक बार प्रजापति दक्ष ने महायज्ञ का आयोजन किया। इस आयोजन में प्रजापति दक्ष ने भगवान शिव और पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किया। उस समय मां सती ने पिता के यज्ञ में जाने की इच्छा भगवान शिव से जताई। साथ ही अनुमति भी मांगी। तब भगवान शिव ने मां सती से कहा- “बिना आमंत्रण के किसी घर पर जाना उचित नहीं होता है। ऐसी परिस्थिति में सम्मान की जगह अपमान होता है। इसके लिए आप अपने पिता के घर न  जाएं।”

    हालांकि, मां सती के न मानने पर भगवान शिव ने उन्हें जाने की अनुमति दे दी। जब मां सती अपने पिता के यज्ञ में शामिल होने पहुंची, तो वहां भगवान शिव के प्रति कटु और अपमानजनक शब्द सुनकर मां सती बेहद कुंठित हुई। उस समय मां सती पिता द्वारा आयोजित यज्ञ कुंड में समा गईं।

    इसके बाद शिव जी क्रोधित हो उठे और माता सती को कंधे पर रख तांडव करने लगे। इससे तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। उसी समय भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से मां सती के शरीर को 51 टुकड़ों में बांट दिया। ये सभी अंग धरती पर गिरे। ये सभी स्थल शक्तिपीठ कहलाया। इनमें एक स्थान मां ललिता आदिशक्ति का भी है। कालांतर में मां सती ‘ललिता देवी’ के नाम से पुकारी जाने लगी।