सीमा कुमारी
नई दिल्ली : नवरात्रि में दुर्गा-उपासना के तीसरे दिन की पूजा का अत्याधिक महत्व है। कल नवरात्रि का तीसरा दिन है, तीसरे दिन चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है, माता रानी का चंद्रघंटा स्वरूप भक्तों पर कृपा करती है और निर्भय और सौम्य बनाता है।
मान्यताओं के मुताबिक , माता चंद्रघंटा को राक्षसों की वध करने वाला कहा जाता है। ऐसा माना जाता है मां ने अपने भक्तों के दुखों को दूर करने के लिए हाथों में त्रिशूल, तलवार और गदा रखा हुआ है। माता चंद्रघंटा के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र बना हुआ है, जिस वजह से भक्त मां को चंद्रघंटा कहते हैं। मां चंद्रघंटा को दूध से बनी चीजों का भोग लगाया जाता है, मां को केसर की खीर और दूध से बनी मिठाई का भोग लगाना चाहिए। पंचामृत, चीनी व मिश्री भी मां को अर्पित करनी चाहिए।आइए जानें माता चंद्रघंटा की पूजा विधि, महिमा और मंत्र
ऐसे करें मां चंद्रघंटा की पूजा
इस दिन चंद्रघंटा देवी के इस मंत्र का जाप करना चाहिए। पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता । प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता…। मां की विधिविधान से पूजा अर्चना करनी चाहिए। सबसे पहले मां का साज श्रृंगार करना चाहिए। इसके बाद जल, पुष्प, दुर्वा, अक्षत, गुलाब, लौंग कपूर से मां की पूजा करना चाहिए। इसके अलावा सुबह-शाम आरती करनी चाहिए और मां को खीर, हलवा या फिर किसी मिठाई से भोग लगाना चाहिए।
मां चंद्रघंटा रूप
मां का यह रूप बहुत ही शांत और परोपकारी है। उसके सिर में एक घंटे के आकार का अर्धचंद्राकार है। इनके शरीर का रंग सोने जैसा चमकीला होता है। उसके दस हाथ हैं, जिनमें शस्त्र, शस्त्र और बाण सुशोभित हैं। इनका वाहन सिंह है। इनकी मुद्रा युद्ध के लिए तैयार होने की है।
मां चंद्रघंटा की कृपा से जातक के सभी पाप और बाधाएं दूर हो जाती हैं। मां चंद्र घंटा जल्द ही भक्तों के कष्टों का समाधान करता है। उसका उपासक ‘सिंह’ के समान पराक्रमी और निडर हो जाता है। उनकी घंटी की आवाज हमेशा उनके भक्तों को भूत-प्रेत से बचाती है। उनका ध्यान करने पर शरणार्थी की रक्षा के लिए इस घंटे की आवाज सुनाई देती है।
मां का स्वभाव नम्रता और शांति से भरा रहता है। इनकी पूजा करने से वीरता और निर्भयता के साथ-साथ नम्रता और नम्रता का विकास होता है और चेहरे, आंखों और पूरे शरीर में तेज की वृद्धि होती है। वाणी में दिव्य, अलौकिक माधुर्य समाहित है। मां चंद्रघंटा के भक्त और उपासक जहां भी जाते हैं, लोगों को उनके दर्शन कर शांति और खुशी का अनुभव होता है।
माता के उपासक के शरीर से दिव्य प्रकाशमान परमाणुओं का अदृश्य विकिरण निकलता रहता है। यह दिव्य क्रिया साधारण आंखों को दिखाई नहीं देती, लेकिन साधक और उसके संपर्क में आने वाले लोग इसे महसूस करते हैं।