कांवड़ यात्रा में इन नियमों का अवश्य करें पालन, वरना निष्फल हो सकती है आपकी आराधना, जानिए कब से कब तक चलेगी कांवड़ यात्रा

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सीमा कुमारी

नई दिल्ली: भगवान भोलेनाथ को समर्पित ‘श्रावण मास’ का शिवभक्त पूरे साल इंतजार करते है।  क्योंकि, इसी पावन मास की जाती है ‘कांवड़ यात्रा’। शिव भक्तों के लिए ‘कांवड़ यात्रा’ किसी तीर्थ यात्रा से कम नहीं होती है।इस साल ‘कावड़ यात्रा’ (Kawad Yatra 2023) 4 जुलाई से शुरु हो चुकी है। 31 अगस्त तक चलेगी। क्योंकि, इस बार सावन एक महीना का नहीं बल्कि, दो महीना का होगा। सावन के दो महीने के होने की वजह से कावड़ियों को भी शिव भक्ति के लिए इस बार ज्यादा समय समय मिल जाएगा।

हिंदू मान्यता के अनुसार, जो हिंदू श्रद्धालु विधि-विधान से कांवड़ यात्रा करता है, उस पर भगवान शिव की असीम कृपा बरसती है और महादेव उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते है। यदि आप भी इस साल शिव भक्ति में डुबोने वाले श्रावण मास में कांवड़ यात्रा करने जा रहे हैं तो आपको इससे जुड़े धार्मिक नियम अवश्य जानने चाहिए। आइए जानें इस बारे में-

कांवड़ यात्रा से जुड़े धार्मिक नियम

यात्रा के दौरान व्यक्ति को किसी भी प्रकार का नशा, मदिरा, मांस और तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए।

साथ ही कांवड़ को बिना स्नान किए हाथ नहीं लगा सकते हैं। इसके अलावा कांवड़ को चमड़ा का स्पर्श नहीं होना चाहिए।

कांवड़ यात्रा के दौरान वाहन का प्रयोग नहीं करना है। यानी, पैदल चलकर ही कावड़ लेकर आना चाहिए।

जो शिवभक्त कांवड़ लेकर आता है। उसे अपनी कांवड़ चारपाई या वृक्ष के नीचे नहीं रखनी चाहिए। साथ ही कांवड़ को सिर के ऊपर से भी नहीं लेकर जाना चाहिए।

कांवड़ यात्रा के दौरान गंगाजल से भरी कांवड़ को भूलकर भी जमीन पर न रखें और एक बार जब विश्राम के बाद दोबारा अपनी कांवड़ यात्रा प्रारंभ करें तो उससे पहले स्नान अवश्य करें। इसके अलावा, इस दौरान कांवड़िये को भूलकर भी किसी के साथ वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।

मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति कावड़ लेकर आता है उसे अश्वमेघ यज्ञ के समान फल मिलता है। साथ ही सभी पापों का अंत भी हो जाता है। इसके अलावा कहा जाता है कि व्यक्ति जीवन मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। मृत्यु के बाद उसे शिवलोक की प्राप्ति होती है।