यदि किसी किसान पर डेढ़-दो लाख का कर्ज चढ़ जाता है तो वसूली में इतनी सख्ती दिखाई जाती है कि वह आत्महत्या करने को विवश हो जाता है लेकिन करोड़ों रुपए की मोटी रकम का लोन लेने वाले का कुछ नहीं बिगड़ता। जब बैंक उनसे कर्ज वसूल नहीं कर पाता तो मजबूरी में इस मोटी रकम को राइट आफ करना पड़ता है ताकि बैलेंसशीट पर बोझ नजर न आए।
देश की औद्योगिक प्रगति की रफ्तार न रुके, इसलिए उद्योगपतियों को बड़ी रकम कर्ज के रूप में मंजूर की जाती है। माना कि व्यवसाय में जोखिम होता है लेकिन कुछ कर्ज लेने वाले जानबूझकर रकम नहीं लौटाते। ऐसे बिलकुल डिफाल्टरों से निपटना टेढ़ी खीर है। ऐसा बैड लोन या बुरा कर्ज काफी बढ़ गया है। वर्तमान वित्त वर्ष में बैंकों ने दिसंबर तिमाही तक 1.15 लाख कर हेतु रुपए के कर्जकों राइट आफ किया है।
भारतीय स्टेट बैंक ने सबसे ज्यादा 52,362 करोड़ रुपए का कर्ज राइट आफ किया जबकि निजी बैंकों में आईसी आईसीआई बैंक ने सबसे ज्यादा 10,942 करोड़ रुपए का कर्ज राइट आफ किया। वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर ने स्पष्ट किया कि राइट आफ से कर्जवार को कोई फायदा नहीं होगा।
कर्ज वसूली के लिए बैंकों के पास अनेक रास्ते हैं जैसे कि सिविल कोर्ट में मामला दाखिल करना, डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल में जाना तथा नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में मामला चलाना। बैंकों के बुरे कर्ज में कमी आई है। 31 दिसंबर 2020 तक एनपीए घटकर 7.56 लाख करोड़ पर आ गया। कमर्शियल बैंकों ने 9 महीनों में 3।68 लाख करोड़ रुपए का कर्ज वसूल किया है।