नवभारत डेस्क : हमारी सुविधाभोगी आदतों व पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है। यदि यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में दुनिया का तापमान 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा और इसके बहुत ही धातक परिणाम होंगे। वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसा होते ही दुनिया भर में गर्मी के कहर से प्रभावित लोगों की संख्या लगभग 15 गुना बढ़ जाएगी और सदी के मध्य तक सालाना गर्मी से होने वाली मौतों में 370 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है।
द लांसेट में प्रकाशित एक विश्लेषण में दी गयी जानकारी में कहा गया है कि अगर सदी के अंत तक तापमान 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया तो इसका खामियाजा इंसानों को भुगतना पड़ेगा। सदी के मध्य तक सालाना गर्मी से होने वाली मौतों में बेतहासा बढोत्तरी होगी। यह आंकड़ा बढ़कर 370 प्रतिशत तक भी जा सकता है।
द लांसेट में प्रकाशित एक विश्लेषण से मिली जानकारी के अनुसार कहा जा रहा है कि दुनियाभर में अरबों लोगों की सेहत और अस्तित्व पर एक अनचाहा विनाशकारी खतरा मंडरा रहा है। वैश्विक अनुमान स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर लांसेट काउंटडाउन की 8वीं वार्षिक रिपोर्ट में इस बात का अंदेशा जताया गया है।
सेहत और अस्तित्व पर खतरा
कहा जा रहा है कि तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी को प्री-इंडस्ट्रियल लेवेल से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की क़वायद में होने वाली किसी भी तरह की देरी से दुनियाभर में अरबों लोगों की सेहत और अस्तित्व को विनाशकारी खतरा कहा जाना चाहिए।
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल के अनुसार, 1880 से 2012 की अवधि के दौरान वैश्विक औसत तापमान 0.85 C (0.65 C से 1.06 C) बढ़ गया है। जलवायु वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि औद्योगिक दुनिया को अब सदी के अंत तक तापमान में दो डिग्री से कम वृद्धि रखने का प्रयास करना चाहिए।
हालांकि यह हमारे लिए आसान काम नहीं होगा। ब्रिटेन में मौसम और जलवायु परिवर्तन पर नज़र रखने वाले कार्यालय ने चेतावनी दी है कि इस साल पहली बार औसत वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक समय से 1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा। इसके लिए आंशिक रूप से अल नीनो के प्रभाव को भी बताया जा रहा है। अल नीनो तापमान के बढ़ने व ला नीना तापमान के कम होने का कारण है। अगर आप मौसम परिवर्तन को समझना चाहते हैं तो इन दोनों को भी जानना होगा।
आखिर अल नीनो क्या है
अगर साधारण शब्दों में समझने की कोशिश करें तो ऊष्ण कटिबंधीय प्रशांत के भूमध्यीय क्षेत्र में समुद्र का तापमान और वायुमंडलीय परिस्थितियों में आये बदलाव के लिए जिम्मेदार समुद्री घटना को अल नीनो कहते हैं। इस बदलाव के कारण समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से अधिक होने लगता है। यह परिवर्तन हमारे मौसम पर बहुत गहरा असर डालता है। इसके आने से दुनियाभर के मौसम में बारिश, ठंड, गर्मी सबमें अंतर दिखाई देने लगता है। बस आपके लिए राहत की बात इतनी है कि ऐसे हालात हर साल नहीं, बल्कि 3 से 7 साल के बीच दिखायी दिया करते हैं।
इसका असर समुद्री जीव-जंतुओं पर काफी नकारात्मक तरीके से पड़ता है। पानी की मछलियां और दूसरे जलीय जीव औसत आयु पूरी करने से पहले ही मरने लगते हैं। इसके असर से बारिश होने वाले क्षेत्रों में बदलाव दिखायी देने लगते हैं। कभी कभी ऐसा होता है कि कम बारिश वाली जगहों पर बारिश अधिक होने लगती है। ऐसा देखा जाता है कि यदि अल नीनो दक्षिण अमेरिका की तरफ सक्रिय हो तो भारत में उस साल कम बारिश होती है।
आखिर ला नीना क्या है
आमतौर पर भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर क्षेत्र के सतह पर निम्न हवा का दबाव होने पर ये स्थितियां पैदा होने लगती हैं। इसकी उत्पत्ति के अलग-अलग कारण माने जाते हैं। जब ट्रेड विंड, पूर्व से बहने वाली हवा काफी तेज गति से बहने लगती हैं। तो ऐसी स्थिति बनने लगती है। इससे समुद्री सतह का तापमान काफी कम होने लगता है। इसका सीधा असर दुनियाभर के तापमान पर दिखायी देता है। तापमान औसत से कम होता है और मौसम अधिक ठंडा हो जाता है।
इसके प्रभाव के कारण उत्तरी ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण-पूर्व एशिया में बहुत अधिक नमी वाली स्थिति उत्पन्न होती है। इससे इंडोनेशिया और आसपास के इलाकों में काफी बारिश हो सकती है। वहीं ईक्वाडोर और पेरू में सूखे जैसे हालात बन जाते हैं, जबकि ऑस्ट्रेलिया में बाढ़ आने के आसार होते हैं। ला नीना से आमतौर पर उत्तर-पश्चिम में मौसम ठंडा और दक्षिण-पूर्व में मौसम गर्म होता है। भारत में इस दौरान भयंकर ठंड पड़ती है और बारिश भी ठीक-ठाक होती है।
सरल शब्दों में, देखा जाय तो सामान्य तापमान दो-डिग्री की सीमा तक पहुंचने में का व्यापक असर होगा, जिसके कारण कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि ग्लेशियर पिघल रहे हैं, समुद्र का स्तर बढ़ रहा है, फसल की पैदावार कम हो रही है। यह हमारे लिए खतरनाक स्थिति का संकेत है।
तेजी से बदल रहे हालात
आमतौर पर जो लैगून कभी चट्टानी ग्लेशियरों से भरे हुए थे, दशकों के दौरान हरी-भरी घास और झाड़ियों से भर गए हैं। जैसा कि अलास्का के पेडर्सन ग्लेशियर के की तस्वीरों में देखा जा सकता है। अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार, ग्लेशियर दो किलोमीटर तक पीछे खिंच गया है। बर्फ के पृथक टुकड़े अब केवल इसी क्षेत्र में बहुत अधिक ऊंचाई पर पाए जा सकते हैं। जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि गर्म होते महासागर ने ग्लेशियर के पिघलने की दर को बढ़ा दिया है। परिणामस्वरूप, समुद्र का स्तर बढ़ जाता है जबकि तटरेखाएं डूब जाती हैं।
संयुक्त राष्ट्र की ये है चेतावनी
संयुक्त राष्ट्र ने यह भी चेतावनी दी है कि वैश्विक स्तर पर प्रत्येक एक डिग्री की वृद्धि के लिए, अनाज की पैदावार में लगभग पांच प्रतिशत की गिरावट आती है, जो कि लगातार बढ़ती वैश्विक आबादी को देखते हुए एक बड़ी चेतावनी है। प्रौद्योगिकी और प्रबंधन में प्रगति का मतलब है कि मक्का, गेहूं और अन्य प्रमुख फसलों की कुल पैदावार में वृद्धि हुई है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के अभाव में 1981 और 2002 के बीच प्रति वर्ष 40 मेगाटन तक वृद्धि हुई होगी।
पिछले तीन दशकों में से प्रत्येक दशक में पृथ्वी की सतह 1850 के बाद से पिछले किसी भी दशक की तुलना में लगातार अधिक गर्म रही है। 1983 से 2012 तक की अवधि संभवतः उत्तरी गोलार्ध में पिछले 1,400 वर्षों की सबसे गर्म 30-वर्षीय अवधि थी, ऐसा एक सामान्य आकलन है।
वैज्ञानिकों द्वारा संकलित 2014 आईपीसीसी रिपोर्ट
लांसेट काउंटडाउन के कार्यकारी निदेशक मरीना रोमानेलो ने यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन में एक बयान में कहा कि हमारे स्वास्थ्य आकलन से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे दुनियाभर में जीवन और आजीविका पर भारी पड़ रहे हैं।
2023 की अपेक्षा 2024 अधिक गर्म होगा
साल 2023 की अपेक्षा साल 2024 अधिक गर्म रह सकता है। एक तरफ जहां इस साल अक्टूबर का महीना अब तक का सबसे गर्म महीना रहा है, वहीं 2023 का सबसे गर्म वर्ष होना करीब-करीब तय माना जा रहा है।विश्व मौसम विज्ञान संगठन की रिपोर्ट के अनुसार देखा जाए तो यह स्थिति 2023 के बसंत के सीजन में बढ़नी शुरू हुई थी। यह स्थिति गर्मियों में दौरान और तेजी से बढ़ती रही। सितंबर 2023 के दौरान यह मध्यम स्तर तक पहुंच गई। वैज्ञानिकों ने इस बात की आशंका जाता है कि इस सर्दी में अल नीनो का प्रभाव 90 फ़ीसदी प्रबल रहने की संभावना है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन के दावे के अनुसार अल नीनो की घटना अप्रैल 2024 तक जारी रह सकती है। इससे न केवल मौसम के मिजाज पर असर पड़ेगा, बल्कि जमीन और समुद्र दोनों के तापमान में वृद्धि देखी जा सकेगी। इसका असर खाद्यान्न पर भी पड़ेगा।