चुनावी प्रक्रिया पूरी होने के पूर्व अपराधी प्रत्याशियों पर कार्रवाई जरूरी

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    राजनीति के अपराधीकरण की समस्या अत्यंत गंभीर है. यह लोकतंत्र की विडंबना है कि जिन दागी-अपराधियों पर संगीन आरोप लगे हैं, वे जेल के सींखचों के पीछे न रहकर सत्ता की कुर्सियों या राजनीति के गलियारे में पहुंच जाते हैं. आश्चर्य होता है कि कानून तोड़ने वाले ही कानून निर्माता की भूमिका निभाते हैं. कोई तर्क कर सकता है कि गलती जनता की है जो अपराधियों को निर्वाचित करती है और ऐसा कर जानबूझकर मक्खी निगलती है.

    सच तो यह है कि राजनीतिक पार्टियां इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं जो सब कुछ जानते हुए भी किसी अपराधी, भ्रष्ट, दुष्चरित्र या दबंग व्यक्ति को अपना उम्मीदवार बनाती हैं. इसकी वजह राजनीतिक प्रतिस्पर्धा है. जब एक पार्टी किसी बाहुबली को टिकट देती है तो विपक्षी दल भी उसके मुकाबले किसी अन्य दबंग को प्रत्याशी बनाता है.

    वह ऐसा मानकर चलता है कि जहर ही जहर को मारता है अथवा लोहा ही लोहे को काट सकता है. पार्टियां उम्मीदवार का चरित्र या अपराधिक रिकार्ड न देखकर उसकी चुनाव जीतने की क्षमता देखती हैं. यदि वह अपने दबदबे या आतंक की वजह से सीट जीत सकता है तो पार्टी बेहिचक उसे टिकट देती हैं. यदि वह ऐसा न करें तो दूसरी पार्टी उसे अपना उम्मीदवार बना लेगी, इसलिए राजनीतिक बाध्यता की आड़ में राजनीति का अपराधीकरण पनपता है. कोई भी राजनीतिक दल यह दावा नहीं कर सकता कि उसके यहां सभी दूध के धुले हैं.

    सब बाधाओं को पार कर चुनाव जीत जाते हैं

    देखा गया है कि अपराधी सब बाधाओं को पार कर साम-दाम-दंड-भेद से चुनाव जीत जाते हैं. जब वे विधायक या मंत्री बन जाते हैं तो उनके खिलाफ दर्ज शिकायतें व मामले भी ठंडे बस्ते में डाल दिए जाते हैं. पुलिसकर्मी उन्हें हथकड़ी लगाने की बजाय सलामी देते हैं या उनके बॉडीगार्ड की भूमिका निभाते हैं. जब कोई गैंगस्टर चुनाव जीत जाता है तो अपने अपराध के दायरे को बेखटके और बढ़ाने लगता है. अपराधी से नेता बना हुआ नेता कुछ ऐसा होता है जैसे करेला और नीम चढ़ा!

    उससे ईमानदारी, सद्व्यवहार, लोगों की भलाई या जनसेवा की दूर-दूर तक कोई उम्मीद नहीं की जा सकती. पहले नेता चुनाव जीतने के लिए अपराधियों की मदद लिया करते थे जिससे राजनीति में अपराध की मिलावट शुरू हुई. बाद में अपराधियों ने खुद भी चुनाव लड़ना शुरू कर दिया. कुछ तो जेल में रहते हुए भी भारी बहुमत से जीत जाते हैं क्योंकि उनके क्षेत्र की भयभीत जनता जानती है कि यदि वह चुनाव हार गया तो बाहर आने के बाद कोहराम मचा देगा, इसलिए उसे वोट देने में ही अपनी खैरियत समझती है.

    कानूनी कार्यवाही चलते पूरी टर्म मंत्री, सांसद, विधायक बने रहते हैं

    कानूनी प्रक्रिया धीमी होने से आपराधिक बैकग्राउंड वाले मंत्री, सांसद और विधायक पूरी टर्म अपने पद पर बने रहते हैं. एक अदालत दोषी ठहराए तो उससे ऊंची अदालत में अपील करते हैं. कितने ही मामलों में पुलिस और अन्य एजेंसियां निष्क्रिय होकर बैठ जाती हैं. जब तक ऊपर से इशारा नहीं होता, तब तक कोई एक्शन नहीं लेतीं. दागी-अपराधियों को टिकट देने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी दर्शाई है.

    सुप्रीम कोर्ट के फरवरी 2020 के फैसले में दिए गए निर्देश के मुताबिक प्रत्याशी का नाम घोषित होने के 48 घंटे के भीतर उसके आपराधिक रिकार्ड और उसे चयन करने के कारण को इलेक्ट्रानिक, सोशल और प्रिंट मीडिया में जाहिर करना आवश्यक है. एक याचिका दायर कर कहा गया है कि सपा ने यूपी के कैराना निर्वाचन क्षेत्र से कथित गैंगस्टर नाहिद हसन को उम्मीदवार बनाया है, जिसने प्रथम चरण में नामांकन दाखिल कर दिया है. लेकिन पार्टी ने उसकी आपराधिक पृष्ठभूमि का विवरण सार्वजनिक नहीं किया है.

    अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की याचिका में कहा गया कि राजनीतिक दल और उम्मीदवार शीर्ष अदालत के 2 फैसलों का खुलेआम उल्लंघन कर रहे हैं. इस पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना व न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि वह इस याचिका को सूचीबद्ध करने पर विचार करेगी.