रिश्वतखोर मंत्री बर्खास्त, गिरफ्तार; पंजाब के CM मान ने दिखाया दम

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    जब ईमानदारी से सरकार चलाने और सुशासन देने की इच्छा हो तो कोई भी मुख्यमंत्री अपनी सरकार में किसी भ्रष्ट मंत्री को कैसे बर्दाश्त कर सकता है? राजनीति में व्याप्त भारी भ्रष्टाचार के घटाटोप अंधकार के बीच पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार के सीएम भगवंत मान ने अपने एक रिश्वतखोर मंत्री को बर्खास्त और फिर गिरफ्तार करवाते हुए अनुकरणीय मिसाल कायम की है. 2 माह पहले बनी आप सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे डा.

    विजय सिंगला अपने विभाग के हर काम और टेंडर के बदले 1 प्रतिशत कमीशन मांग रहे थे. इसकी शिकायत मुख्यमंत्री भगवंत मान तक पहुंची. उन्होंने अफसर को भरोसे में लिया और कमीशन मांगने की रिकार्डिंग करवाई गई. इसके बाद मंत्री को बुलाकर सीएम ने उनके सामने सबूत रख दिए और मंत्री ने गलती कबूल की. दिल्ली के मुख्यमंत्री व ‘आप’ के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि हमें भगवंत मान पर गर्व है. आम आदमी पार्टी ने साबित कर दिया कि चाहे गर्दन कट जाए, पर देश से गद्दारी नहीं करेंगे.

    अन्य प्रदेशों में भ्रष्टाचारियों को बचाया जाता है

    पंजाब में सीएम ने अपने भ्रष्ट मंत्री को एक झटके में बेहिचक बर्खास्त कर दिया और गिरफ्तार भी करवाया लेकिन अन्य प्रदेशों में तो मंत्रियों, नेताओं, अफसरों को बचाने के लिए सरकार पूरा जोर लगा देती है. इसी प्रवृत्ति के चलते पूरा सिस्टम भ्रष्ट हो जाता है. नीचे से लेकर ऊपर तक रिश्वत और वसूली की रकम में हिस्सेदारी होती है. भ्रष्टाचार का घुन संपूर्ण व्यवस्था को खोखला कर देता है. 

    यहां तक देखा गया है कि कोई ईमानदार और नियमों से चलनेवाला अफसर यदि किसी भ्रष्टाचार के प्रकरण में सख्त कदम उठाता है तो उसका एक विभाग से दूसरे विभाग या शहर में तबादला कर दिया जाता है. हरियाणा में आईएएस अधिकारी अशोक खेमका का इसी तरह बार-बार तबादला किया गया क्योंकि वे भ्रष्टाचार के मामले की जांच में सख्त थे. जब उन्होंने रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ जांच शुरू की तो तत्कालीन सीएम भूपेंद्रसिंह हुड्डा ने उनका ट्रांसफर कर दिया था. महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी सरकार ने अपने मंत्रियों अनिल देशमुख और नवाब मलिक को बचाने की काफी कोशिश की लेकिन उन्हें जेल जाना ही पड़ा.

    भ्रष्टाचारी पहले भी रहे हैं

    प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार में मंत्री रहे टीटी कृष्णमाचारी को निजी बीमा कंपनियों के साथ मिलीभगत के कारण अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था. कृष्णमाचारी का भ्रष्टाचार फिरोज गांधी ने लोकसभा में तीखी बहस कर उजागर किया था. पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रतापसिंह कैरों को भी भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाने पर नेहरू ने बर्खास्त किया था. जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री बख्शी गुलाम मोहम्मद को भी भ्रष्टाचार के मामले में बर्खास्त किया गया था. 

    केंद्रीय मंत्रिमंडल से पेट्रोलियम मंत्री केशवदेव मालवीय को ऐसे ही आरोप से हटाया गया था. इसी प्रकार नेहरू ने अपने निकटवर्ती वीके कृष्ण मेनन को रक्षा मंत्री पद से बर्खास्त किया था क्योंकि विपक्ष ने मेनन पर जीप घोटाले में लिप्त होने के आरोप लगाए थे. नरसिंहराव सरकार के समय दूरसंचार घोटाले में सुखराम को केंद्रीय मंत्री पद से हटाया गया लेकिन बाद में वह कांग्रेस से निकलकर बीजेपी में चले गए. उन्हें बीजेपी ने हिमाचल प्रदेश का उपमुख्यमंत्री बना दिया था. अभी पिछले दिनों सुखराम का निधन हुआ. पीवी नरसिंह राव की अल्पमत सरकार को गिरने से बचाने के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों शिबू सोरेन, शैलेंद्र महतो और साइमन मरांडी को रिश्वत दी गई थी.

    राजीव ने विवशता जताई थी

    स्व. राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए ऊपर से नीचे तक व्याप्त भ्रष्टाचार की ओर संकेत करते हुए कहा था कि हम केंद्र से गरीबों के लिए 1 रुपया भेजते हैं लेकिन उस तक सिर्फ 15 पैसे ही पहुंच पाते हैं. समाजसेवी अन्ना हजारे ने भी भ्रष्टाचार के खिलाफ व्यापक जनआंदोलन चलाया लेकिन आज भी हालत यह है कि मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की! भ्रष्टाचार कम होने की बजाय बढ़ता ही चला जा रहा है.